Book Title: Dashvaikalaik Nandi Uvavai
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ श्रीदसवैकालिकसूत्र-सप्तमाध्ययनम् (१७) अजए पज्जएवा वि, बप्पो चुल्लपिउत्ति आ माउलो भाइणिज ति, पुत्ते णत्तुणिअ ति अ॥ १८ ॥ हे भो! हलित्ति अन्नित्ति, भट्टा सामि अगोमि। होला गोल वमुलिति, पुरिसं नेवमालवे ।। १९॥ नामधिज्जेणणं बूआ, परिगुत्तण वा पुणो। जहारिहमभिगिज्झ, आलविज लविज वा ॥ २० ॥ पंचिंदिआण पाणाण, एस इत्थी अयं पुमं । जाव णं नो विजाणिज्जा, ताव जाइ ति आलवे ॥ २१ ॥ तहेव मणुस एसुं, पक्खि वा वि सरीसिवं । थूले पमेइले वज्झे, पाइमि त्ति अ नो वए ॥ २२ ॥ परिवुड्ढे त्ति णं बूआ, बूआ उवविए ति अ। संजाए पीणिए वावि. महाकाय ति आलवे ॥ २३ ॥ तहेव गाओ दुज्झाओ, दम्मा गोरहग त्ति अ। वाहिमा रहजोगि त्ति, नेवं भासिन्ज पण्णवं ।। २४ ।। जुवं गवि त्ति णं बूआ, घेणुं रसदय त्ति अ । रहस्से महल्लए वा वि, वए संवहाणि त्ति अ ॥ २५ ॥ तहेव गंतुमुज्जाणं, पव्वयाणि वणाणि अ। रुक्खा महल पेहाए, नेवं भासिज पण्णवं ॥ २६ ॥ अलं पासायखंमाणं, तोरणाणि गिहाणि अ । फलिहग्गलनावाणं, अलं उदगदोणिणं ॥ २७ ॥ पीढए चंगबेरे अ, नंगले मइयं सिआ। जंतलट्ठी व नाभी वा, गंडिआ व अलं सिआ !॥ २८ ॥ आसणं सयणं जाणं, हुज्जा वा किंचुवस्सए। भूओवघाइणि भासं, नेवं भासिज पण्णवं ॥ २९॥ तहेब गंतुमुज्जाणं, पच्चयाणि वणाणि अ । रुक्खा महल्ल पेहाए, एवं भासिज्ज पण्णवं ॥ ३० ॥ जाइमंता इमे रुक्खा, दीहवट्टा महालया। पयायसाला विडिमा, वए दरिसणि त्ति अ ॥ ३१ ॥ तहा फलाई पक्काई, पायखजाइ नो वए । वेलोइयाई टालाइं, वेहिमाइ ति नो वए ॥ ३२॥ असंथडा इमे अंबा, बहुनिवडिमा फला। वइज बहुसंभूआ, भूअरूव चि वा पुणो ॥ ३३ ॥ तहेवोसहीओ पक्काओ, नीलिआओ छवीइ अ। लाइमा भन्जिमाउत्ति, पिहुखज्ज त्ति नो वए ॥ ३४ ॥ रूढा बहुसंभूआ, थिरा ओसढा वि अ। गभिआओ पसूआओ, संसाराउ त्ति आलवे ॥ ३५ ॥ तहेव संखडिं नच्चा, किचं कर्ज ति नो वए। सेणगं वावि वज्झि त्ति, सुतिथि त्ति अ आवगा ॥ ॥३६॥ संखडि संखडि बुआ, पणिअट्ठ त्ति तेणगं । बहुसमानि तित्थाणि, आवगाणं विआगरे । ॥ ३७॥ तहा नईओ पुण्णाओ, कायतिज ति नो वए । नावहिं तारिमाउ त्ति, पाणिपिज त्ति नो वए ॥ ॥ ३८॥ बहुवाहडा अगाहा, बहुसलिलुप्पिलोदगा । बहुवित्थडोदगा आवि, एवं भासिज्ज पण्णवं ॥ ३९ ॥ तहेव सावज जोगं, परस्सट्टा अ निहि। कीरमाणं ति वा नच्चा, सावजं न लवे मुणी ॥ ४०॥ सुकडि त्ति सुपक्कि त्ति, सुच्छिन्ने सुहडे मडे । मुनिट्ठिए सुलट्ठित्ति, सावज्ज वजए मुणी । ४१ ॥ पयत्तपक्कि त्ति व पक्कमालवे, पयत्तछिन्न त्ति व छिन्नमालवे । ___ पयत्तलट्ठित्ति व कम्महेउअं, पहारगाढि त्ति व गाढमालवे । ॥४२॥ सव्वुक्कसं परग्धं वा, अउलं नत्थि एरिसं । अविक्किअमवत्तवं, अचिअत्तं चेव नो वए ॥ ४३ ।। * सबमेअं वइस्सामि, सबमेअं त्ति नो वए। अणुवीइ सव्वं सवत्थ, एवं भासिज्ज पण्णवं ।। ४४ ॥ सुक्की वा सुविक्की, अकिज्ज किजमेव वा । इमं गिण्ह इमं मुंच, पणिणं नो विआगरे ॥ ४५ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50