Book Title: Daivat Bramhanam tatha Shadvinshat Bramhanam
Author(s): Samveda, Sayanacharya, Jivanand Vidyasagar
Publisher: Jivanand Vidyasagar
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देवतब्राह्मणे
यहा। सयुग्वेत्य त्तरत्र सम्बध्यते । अग्ने : सकाशा डायत्रो अजायत इत्यधः । तथा उष्णिहया उष्णिकछ न्दसा सह, सयुग्वा सह युज्यमाना ककुप् सविता देवः सम्बभूव तस्मात्पुजापतेय ने 'आपञ्चापि हलन्सानामिति (१०) बननादुषिण हशब्दादापप्रत्ययः । तथा. उकथै मन्त्र : महम्बान तेजवी सोमः अनुष्टुभा अनुष्टुप छन्दसा साई तस्मादेव प्रजापते रजायत। तथा वृहस्पतर्वाचं वाक्य वृहती छन्दः अभवत् अक्षरत् अगच्छद्दा। हत्या साई वृहस्पतिरपि तस्मात्प्रजापतेर्य जेऽजायतेत्यर्थः ॥ अथ हितोयं मन्त्रमुदाहरति -
८। विराणमित्रावरुण योरभिश्रौरिन्द्रस्य विष्ट वेह भागो अङ्गः। विश्वान् देवाञ्जगत्या विवेश तेन चाकृप्तऋषयो मनुष्याः ।
अपि च मित्रावरुणयो दैवयोविराट छन्द: अभिश्रीः प्राप्ताश्रया आसीत् । अथ इन्द्रस्य विष्टप छन्दः अङ्गी भागो माध्यन्दिनसवताख्यश्चाभूत् । तथा जगतीच्छन्द: विश्वान् देवान् आ विवेश प्रविष्टा । तेन अंग्न्यादिदेवताकेन गा. यत्यादिच्छन्द उपनिवडून ऋषयो मनुष्या मरणशीला मानवाश्च चाल ताः चल पिरे क्ल प्ता: सृष्टा आमन्त्रित्यर्थः । अतो गायत्रया अग्न्यादिदेवताकन गायनवादि छन्दः इत्युक्त
भवति। .. अयोपरितनानां छन्दसा देवतामाह
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