Book Title: Daivat Bramhanam tatha Shadvinshat Bramhanam
Author(s): Samveda, Sayanacharya, Jivanand Vidyasagar
Publisher: Jivanand Vidyasagar
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हिनीयखण्डः ।
देवता वक्ष्यामीति प्रतिजानीते
४। यज्ञे या प्रयोक्तव्यास्तषां दैवत उच्यते । अथानुक्तानां विराजां वर्ण दर्शयति
५। विराज: टत्रयो विद्याट्। पिबासोममिन्द्रमन्ददुख त्येवमादवा विराजः, पृश्निवर्णा इति जानीयात् । ___ अथाग्ने यत्नवादिमन्त्रय श्रवणं किमर्थमित्याशयतत्तात्पर्यमाह
। दैवतं तत उत्तरम् । तत उक्तात् उत्तरं वाक्यजातं देवताभिधानमित्यर्थः ।
अथाग्न्यादीनां गायत्रवादिदेवतात्वसम्बन्धपर मन्त्रहयम् । तत्र प्रथमं मन्त्रमुदाहरति
७। अग्न ईयत्नाभवन्मयुग्वोष्णिया सविता सम्बभव अनुष्ट मा सोमा उकधैर्महखान् दृहस्सतेभवति वाचमाभवद् । ____ अग्ने : सयुम्वा सहायभूता गायत्री अभवत् । प्रजापतेमुखात् देवतासु मध्ये अग्निरजायत। छन्द:सु मध्ये गायत्री च उभावप्य जायेतामित्यर्थः । तथाच तैत्तिरीयकं “प्रजापतिरकामयत प्रजायेयेति । स मुखतस्त्रिष निरमिमीत । तमग्निर्देवताया असृजत गायत्री छन्दसः" इति ।
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