Book Title: Chintan ke Vividh Aayam
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 8
________________ में रखकर यह विविध रस-मय संकलन तैयार किया है। जो संक्षेप में विविध जानकारी दे सकेगा। साहित्यिक क्षेत्र में ही नहीं, अपितु आध्यात्मिक साधना के क्षेत्र में भी मैंने जो कुछ भी विकास किया है, वह परमश्रद्धे य, राजस्थानकेसरी, अध्यात्मयोगी, उपा-ध्याय, श्रद्धय सद्गुरुवर्य श्री पुष्करमनि जी म० की असीम कृपा का ही सुफल है। उस असीम कृपा को ससीम शब्दों में व्यक्त किया भी नहीं जा सकता । उनकी कृपा सदा बनी रहैं, यही हार्दिक मंगलकामना ! पं० शोभाचन्द्रजी भारिल्ल के स्नेह को भी भूल नहीं सकता, जिन्होंने 'ईश्वर : एक चिन्तन' निबन्ध का अवलोकन कर अपने अनमोल सुझाव से मुझे सूचित किया । श्री रमेशमुनि, श्री राजेन्द्र नुनि, श्री दिनेशमुनि, श्री नरेशमुनि आदि की सेवा-भावना लेखन में सतत सहयोगी रही हैं तथा परमादरणीया ज्येष्ठ भगिनी साध्वी रत्न महासती श्री पुष्पवती जी म० का मार्गदर्शन भी मेरे लिए परम उपयोगी रहा है। मैं पूजनीया स्वर्गीया मातेश्वरी, प्रतिभामूर्ति श्री प्रभावती जी म० को भी विस्मृत नहीं हो सकता, जिनकी हित-शिक्षाओं के कारण मैं विकास कर सका हूँ। तथा मेरे हाथ में कुछ दर्द होने के कारण बोलकर निबन्ध आदि लिखवाता रहा हूँ। उस दृष्टि से स्नेह सौजन्यमूर्ति एस० श्री कण्ठमूर्ति जो एवं स्नेह सौजन्यमूर्ति एस० जयसिंह जी जैन 'रत्नेश' (गुलाबपूरा) का सहयोग भी भुलाया नहीं जा सकता ! मुद्रणकला की दृष्टि से ग्रन्थ को सर्वाधिक सुन्दर बनाने में स्नेह की साक्षात् मूर्ति श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' को भी विस्मृत नहीं हो सकता जिनके कारण ग्रन्थ शीघ्र पाठकों के पाणिपद्मों में पहुंचा है। ज्ञात और अज्ञात रूप से जिनका भी सहयोग मिला, उनका हृदय से आभारी हूँ। जैन स्थानक सिंहपोल जोधपुर -देवेन्द्र मुनि अक्टूबर, १९८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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