________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र कर चुकी हूँ। मैं ने मन-ही-मन उनका ही वरण किया हैं।" इतना कहते-कहते लज्जा से मुँह नीचा कर के भूमि की ओर देखते हुए वह लडकी चुप-चाप खड़ी रही। कुछ देर बाद वह धैर्य धारण कर फिर से बोली, "हे स्वामिनाथ, मैं आपको अपना संक्षिप्त परिचय देती हूँ। कृपा कर के आप मेरी बातें ध्यान से सुनिए / आभापुरी से पच्चीस योजन की दूरी पर पद्मापुरी नामक नगरी है। इस नगरी के राजा पद्मशेखर और पटरानी रतिरुपा की मैं कन्या हूँ। मेरा नाम चंद्रावती है। जैन धर्म के प्रति मेरे मन में बहुत श्रद्धा और प्रेम का भाव होने से मैं जैन धर्म की आराधना करती हूँ। जैसे ही मैं ने बचपन समाप्त कर योवनावस्था में प्रवेश किया, मेरे माता-पिता को मेरे विवाह की चिंता सताने लगी / एक दिन राजदरबार में एक भविष्यवेत्ता महान् ज्योतिषी आया। मेरे पिताजी ने ज्योतिषी का उचित रीति से सम्मान कर उसे बैठने के लिए आसन दिया / फिर मेरे पिताजी ने ज्योतिषी से पूछा, मेरी युवा कन्या चंद्रावती का विवाह किसके साथ होगा ? “इस पर ज्योतिषी ने अपने ज्योतिषज्ञान के बल पर निर्णय कर के मेरे पिताजी को बताया, "हे राजन, आपकी इस भाग्यवती कन्या का विवाह आभारनरेश के साथ होगा।" ज्योतिषी की बातें सुन कर मेरे माता-पिता बहुत आनंदित हुए। मैं भी ज्योतिषी के मुख से अपने भावि पतिदेव का नाम, गुण, रुप, सौंदर्य, पराक्रम, कुल आदि के बारे में जान कर हर्ष से नाच उठी / इष्टपति के समागम के समाचार से कौन खुश नहीं होता ? मेरे पिताजी ने ज्योतिषी को उत्तम वस्त्रालंकारों से सम्मानित कर विदा दी। एक दिन की बात.... मैं अपनी अंतरंग सखियों के साथ जलक्रिडा करने के लिए राज महल से निकल कर उधान में स्थित सरोवर की ओर चली गई। हम सखियाँ सरोवर के निर्मल शीतल जल में क्रिड़ामग्न थीं कि उस दुष्ट योगी की दृष्टि अचानक मुझ पर पड़ी। मेरा अपहरण कर लेने का दुष्ट विचार उसके मन में आया। उसने अपनी मंत्रविद्या से इंद्रजाल कर मेरी सभी सखियों की आंखें बंद कर दी। फिर सम्मोहन विद्या का मुझ पर प्रयोग कर वह मुझे यहाँ खींच कर ले आया। योगी ने मुझे रस्सी की सहायता से हक खंभे जकड़ दिया और वह पूजा करने के लिए बैठा। उसकी पूजाविधि देखते ही मुझे तुरंत पता चला कि वह मुझे यहाँ क्यों खींच लाया P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust