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चन्द्रप्रमचरितम्
ग्रन्थकतु प्रशस्तिः। बभूव भव्याम्बुजपद्मबन्धुः पतिर्मुनीनां गणभृत्समानः । सदग्रणीदशिगणाग्रगण्यो' गुणाकरः श्रीगुणनन्दिनामा ॥१॥ गुणग्रामाम्भीधेः सुकृतवसते मित्रमहसा-४
मसाध्यं यस्यासीन किमपि महीशासितुरिव । स तच्छिष्यो ज्येष्टः शिशिरकरसौम्यः समभव
त्प्रविख्यातो नाम्ना विबुध गुणनन्दीति भुवने ।।२।। मुनिजननुतपादः प्रास्तमिथ्याप्रवादः ___ सकलगुणसमृद्धस्तस्य शिष्यः प्रसिद्धः । अभवदभयनन्दी जैनधर्माभिनन्दी
स्वमहिमजितसिन्धुभव्यलोकैकबन्धुः॥३॥ भव्याम्भोजविबोधनोद्यतमते स्वित्समानत्विषः ।
शिष्यस्तस्य गुणाकरस्य सुधियः श्रीवीरनन्दीत्यभूत् । स्वाधीनाखिलवाङ्मयस्य भुवनप्रख्यातकीर्तेः सतां संसत्सु व्यजयन्त यस्य जयिनो वाचः कुतर्काङ्कुशाः ।।४।।
शब्दार्थसुन्दरं तेन रचितं चारुचेतसा।
श्रीजिनेन्दुप्रभस्येदं चरितं रचनोज्ज्वलम् ॥५॥ ___ श्री गुणनन्दी नामके आचार्य थे। वे भव्यजीव रूपी कमलोंको विकसित करनेके लिए सूर्य थे; समस्त मुनियोंके नायक थे गणधरके समान सम्मानित थे; सज्जनोंके अग्रसर थे; देशिगणके मुनियोंमें प्रमुख थे और थे गुणोंकी खान ॥१॥ एक राजाकी भाँति उनके लिए कोई भी काम कठिन नहीं था। उनके प्रथम शिष्य विबुध गुणनन्दी थे, जो समस्त गुणोंके समुद्र थे; पुण्यके निवास स्थान थे; सूर्य सरीखे तेजस्वी थे; प्रकृत्या चन्द्रमाकी भाँति सौम्य थे और अपने नामसे सारे संसारमें प्रसिद्ध थे ॥२॥ उन ( विबुध गुणनन्दी ) के शिष्य अभयनन्दी थे, जो समस्त मुनियोंके द्वारा पूज्य थे जिन्होंने समस्त मिथ्यावादोंका निरसन किया था; जो समस्त गुणोंमें समृद्ध थे; जिन्होंने जैन धर्मकी वृद्धिकी थी; जिन्होंने अपनी गम्भीरताकी महिमासे समुद्रको मातकर दिया था और जो भव्य जीवोंके एक मात्र बन्धु थे ।।३। उनकी बुद्धि भव्यजीव रूपी कमलोंके विकासके लिए सदा तत्पर रहा करती थी; वे सूर्यके समान तेजस्वी थे; बड़े गुणी थे और थे अत्यन्त बुद्धिमान् । उनके शिष्य श्री वीरनन्दी थे; जिन्होंने समस्त वाङ्मय को अपने अधीनकर लिया था; जिनकी कीर्ति सारे संसार में फैली हुई थी; जिनके वचन कुतर्कोका निवारण करनेवाले थे और इसीलिए जो सत्पुरुषोंकी सभामें विजयी होते थे ।।४। उन्हों सहृदय वीरनन्दीने यह चन्द्रप्रभचरित लिखा है । यह क्या शब्द और क्या अर्थ दोनों ही दष्टियोंसे सुन्दर, और रचनामें मोतियों जैसा उज्ज्वल है ।।५।।
१. अदेशगणी हि गण्यो । २. अग्रामाम्भोधिः । ३. अ सुकृतवसतिः । ४. क ख ग घ मन्त्रमहसा ५. अ क ख ग घ स तस्याद्यः शिष्यः शिशिर । ६. क ख ग घ विविधगुण । ७. क ख ग घ 'मिथ्यापवादः ८. अ'नोद्धतमते । ९. अ° ख्यातकीतिः । १०. अ क ख ग घ मौक्तिकोज्ज्वलम ।
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