Book Title: Chandraprabhacharitam
Author(s): Virnandi, Amrutlal Shastri
Publisher: Lalchand Hirachand Doshi Solapur

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Page 609
________________ चन्द्रप्रभचरितम् विवप्सु (१३.१९): बोनेके दिक्करी (५.३४) : दिग्गज बन्दिन् (४.६८): स्तुतिपाठक लिए इच्छुक दीपोत्सव (२.१३०) : दीपावली बल्लव (१३.३०) : अहीर विस्रसा (१७.३१) : स्वभावतः दून (८.३५) : सन्तप्त बिस (१०.१७) : कमलदण्ड वैवधिक (१३.३१): कांवरसे बुभुत्सा (६.१३) : जिज्ञासा बोझ ढोनेवाले व्यपहस्तित (५.६५) : अपहृत धरणीध्र (६.१८): पर्वत भ श धर्मी (२.४६): पदार्थ भीलुक (११.३०) : भीरू शक्ति (७.६९) : प्रभुशक्ति, भोग (७.१७) : भोग्य पदार्थ __ मन्त्रशक्ति और उत्साहशक्ति नाथ (१२,८७) : बैलकी नाकमें शतक्रतु (५.८६) : इन्द्र पिरोयो गयी रस्सी मण्डलिन् (१.४७) : सामन्त शयु (६.१०) : अजगर नान्दीश्वरपर्व (३.६०) : आष्टा- मन्दुरा (१४.४६): घुड़साल शाकनिक (१७.३३): दुष्टग्रह ह्निक पर्व मय (१३.२८) ऊँट शाक्य (१६.१०) : बौद्ध निकुरम्ब (५.३५) : समूह महेच्छ (६.१०८) : महाशय शिखिन् (१२.३८): अग्नि निधि (७.१८): पाण्डुक आदि मीमांसापक्षपातिन् (२.५.०) : शिशिक्षिषा (५.१९): सीखनेनो मीमांसक की इच्छा निबन्धन (१.७) : निमित्त मौल' (४.४७) : वंशपरम्परागत नियति (३.२८): भाग्य मौलि (११.२) : मुकुट षड्वर्ग (४.१४) : काम, क्रोध, निर्वेद (४.७७): वैराग्य हर्ष, लोभ, मान, मद नृकीट (६.२१) : तुच्छ मनुष्य यतिवृष (११.७५) : श्रेष्ठमुनि षाङ्गण्य (१२.१०४): सन्धि, योजन (१७.८३) : चार कोस विग्रह, यान, आसन, संश्रय, पञ्चम कल्याण (१८.१५४) : द्वैधीभाव मोक्ष पटबास (१४.४) : कपड़ोंको रथकड्या (१३.७) : रथसमूह सुवासित करनेवाला चूर्ण रंहसा (१२.१०७) : शीघ्र संघट्ट (१५.३५) : संघर्ष या रल्लक (१३.४१) : कम्बल पयोविकार (४.५२): दही आदि टक्कर सदस् (५.५७) : सभा परभाग (७८०) : शोभा सन्दंशक (१०.३२): संसी-संडसी परिच्छद (९.२७) : सामग्री ललन (१२.९१) : पूछ हिलाना संभ्रम (५.०७) : शीघ्रता परारि (११.१३) : परसों लाघव (११-८९) स्फूर्ति-फुर्ती समुत्क (१४.१९): उत्कण्ठित परुत् (११.१३): कल-अगला लाङ्गल (१३.५१): हल सविसर (११.२): आम सभा दिन लिङ्ग (२.९५) : हेतु सांख्यपूरुष (१२.४१) : अकिपल्ययन (१४.५१) : घोड़ेको लिलचिषु (१२.३५) : लांघने चित्कर जीन का अभिलाषी सिद्धालय (३.५७) : मोक्ष पाण्डुकदृषत् (१७.१९) : लोहकान्तमणि (४.४६): चुम्बक सिद्धि (४.४५): मुक्ति पाण्डुकशिला व सिंहनिष्क्रीडित (१५.१५०) : पुट भेदन (३.५३): नगर वचोहर (१२.१): दूत एकवत पूत्कार (१.५०) : दु:खभरा वणिक्पथ (७.८१) : बाजार सुगत (५.२९): बुद्ध शब्द-चीत्कार वनेचर (११.३४) : माली सुहृत् (३.२३) : कारण प्रणायक (११.५०) : उत्कृष्ट वन्य (१७.९१) : व्यन्तर देव सृणि (११.९०) : अङ्कश __ नायक वंश (१३.४९) : वांसुरी स्मृतिविप्रमोष (७.९०): स्मृतिभ्रंश प्रधुमिता (४.६४) : मलिन वारिक (७.३७) जल भरनेवाले प्रधान (२.८३) : सांख्याभिमत कहार हठक्रिया (१२.४०): बलात्कार जड़तत्त्व-प्रकृति विप्लवि (५.५५) : भ्रमयुक्त हस्तिपाल (१४.६२): महावत १, मन्त्रि-पुरोहित-सेनापति-दुर्गाधिकारि-कर्माधिकारि - कोषागारिक-दैवज्ञा इति सप्तविधं मौलं बलम् । -व्याख्या ४.४७, पृ० १०६ स Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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