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॥श्री जिनवरेंद्राय नमः ॥ ॥ कर्म और धर्मका फल दर्शाने वाला ॥ ॥ भीमसेण हरीसेण चरित्र.॥
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॥ दुहा ॥ जग नायक जिनरायजी, सब नायक सिद्ध देव ॥ गंण नायक प्राचार्यजी, श्रृंत नायक श्रुती सेव ॥ ॥ १॥ श्रमण श्रंमणी आदि सहू, अष्टोत्तर शत गुण धार ॥ तस चरण सरण लही, चरित्र कहूं मनोहार ॥२॥ ॥ ढाल-सती ने सिरोमणी अंजना। यह देशी।
श्री गुरूदेव प्रशाद सें, कर्म ग्रन्थ को कहूं अधिकार तो ॥ कर्म बली डे जगत्में, नमावें जीव १ संप्रदाय. २ श्रुती-बुद्धि वा शास्त्र. ३ उपाध्याय. ४ साधू ५ साध्वी.