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प्रस्तावना. " कड्डाण कम्मा न मोख्क अत्थी" ॐ (कृत कर्मके फल भोगवे विन छूटका नहीं. )
इस जगतमें जीव और कर्म दोनो अनादी है. जीव दो तरहके है १ सिद्ध नगवंतके जीव जो सर्व कर्मका नाश कर अनंत अदय अव्याबाध सुखमें लीन हुये मोक्षस्थानमें विराजमान है.
और २ संसारी जीव अनादी कर्मके संयोगी हैं. कर्मका कर्ता और उनके फलका नुक्ता जीवही है.वो कर्म विपाक दो तरहसे नोगवे जाते है.१ शुनपुण्यरूप काम करते जीवको मुशकिल मालुम पडता है. परंतु उस्के फल मुख दाता. और २ अ. शुन-पापरुप काम करतें जीवको अच्छा लगता है. परंतु उसके फल दुःख दाता होते हैं. पाप कर्म जोगवते जीव रोता हैं और रोते २ नी वोकर्म