Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2 Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi View full book textPage 6
________________ दो शब्द 'भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन संभावनायें' नामक शीर्षक का यह दूसरा भाग विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत हो रहा है । 'दर्शन संकाय' की गोष्ठियों का यह विवरण तुलनात्मकदर्शनविभाग के प्राध्यापक श्रीराधेश्यामधर द्विवेदी ने तैयार किया है। श्री द्विवेदी ने संस्कृत विश्वविद्यालय के सामाजिक सन्दर्भों के विचारदर्शन को प्रस्तुत करने हेतु इन गोष्ठियों का समय-समय पर संयोजन किया है तथा आधुनिक एवं परम्परावादी चिन्तकों से आधुनिक सन्दर्भ के प्रश्नों को उठाकर समाहित करने का प्रयत्न किया है । इनको अभिलाषा थी कि सामाजिक सन्दर्भों के स्वतन्त्र चिन्तन पर परम्परागत पण्डितों से स्वतन्त्र विचार का एक खण्ड और प्रस्तुत किया जाये, पर परिसंवाद के कलेवर के बढ़ने के भय से यह विचार अभी छोड़ दिया गया है । और विद्वज्जनों की प्रतिक्रिया के बाद उसको भी प्रकाशित करने की योजना बनायी जायेगी । फिलहाल एक परम्परावादी विश्वविद्यालय का सामाजिक चिन्तन का स्वरूप आपके समक्ष प्रस्तुत हो रहा है । आप इसे पढ़ें तथा अपनी प्रतिक्रियायें अभिव्यक्त करें। यदि ये विचार सामाजिक हित की दिशा में किञ्चित् मात्र भी सफल साबित हुए तो इससे इन संगोष्ठियों के आयोजकों को बल मिलेगा तथा आज की बढ़ती हुई coratथा को कुछ हद तक ठोक करने में सफलता मिलेगी । हम अपनी परम्परा से सामाजिक दिशा देने का प्रयास मात्र कर सकते हैं । मूल्यांकन करने का दायित्व विद्वज्जन को है । इति शम् । Jain Education International श्री गौरीनाथ शास्त्री कुलपति सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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