Book Title: Bharateshwar Bahubali Ras tatha Buddhiras
Author(s): Shalibhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya

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Page 10
________________ अंक १] भरतेश्वर वाहुवलि रास-किंचित् प्रास्ताविक [५] आ रासनी मने मात्र एक ज प्राचीन प्रति उपलब्ध थई छे जे वडोदरामां अवस्थित प्रवर्तक श्री कांतिविजयजी शास्त्र - संग्रहनी छे । प्रति कागळनी छे अने तेना कुल ६ पानां छे। दरेक पानानी लंबाई आशरे ११३ इंच अने चोडाई ४३ ईच जेटली छे। प्रति उपर लख्या साल नथी, पण अनुमाने ४००थी ५०० वर्ष जेटली जूनी होय तेम जणाय छे । __ जेम घणा भागे बधा ज जुना भाषा - लेखकोना विषयमा अनुभवाय छे, तेम आनी प्रतिनो लखनार पण जोडणीनी बाबतमा एकरूप नथी । खास करीने इकार उकारना हख - दीर्घनो कोई चोक्कस नियम आपणी भाषाना जूना लेखको साचवता नथी । जेओ संस्कृत प्राकृतना महाधुरंधर विद्वानो हता अने जेमणे हजारो श्लोकोवाळा मोटा मोटा ग्रंथो-कान्यो-शास्रो लख्या छे, तेओ पण ज्यारे पोतानी मातृभाषामां कांई रचना करे छे के लखे छे तो तेमां भाषानी विशुद्धता के जोडणीनी एकरूपतानी कशी पण चोकसाई देखाती नथी। अने तेनुं कारण ए छे के देश अने काळना भेदने लईने लोकभाषा हमेशां अनवस्थित अने अनेकरूपी बनती रहेवाथी, ते समयमां तेनी विशिष्ट व्याकरणबद्धता शक्य न हती अने तेथी देशभाषामा लखनारा विद्वानो के कविओ शब्दोना रूपो के वर्णसंयोजनाना नियमो माटे कोई खास काळजी राखता नहि । आ वस्तु प्रस्तुत रासमां पण जणाई आवे छे । लखनारे 'इ' कार के 'उ' कारना हख-दीर्घनो कोई खास भेद राख्यो होय तेम देखातुं नथी। एकना एक ज शब्दमां ए खरोने ते कोई ठेकाणे ह्रखरूपे लखे छे तो कोई ठेकाणे दीर्घरूपे। तेम ज ज्यां ह्रखनी अपेक्षा होय छे त्यां दीर्घ करी दे छे अने ज्यां दीर्घनी आवश्यकता होय छे त्यां हख पण लखी काढे छे । केटलांक ठेकाणे तो 'इ' अने 'उ' नी वच्चे मेद पण जाणे न गणतो होय तेम एकना बदले बीजो अक्षर अर्थात् इ के उ ना बदले उ के इ सुधां लखी नांखे छे । ए सिवाय शब्दोनी वर्ण-संयोजना ( अक्षरजोडणी )नी बाबतमां पण आपणा जूना लेखको एकरूपता नथी जाळवता अने अव्यवस्थितरीते लखाण करता रहे छे । एकला 'हवे' ए शब्दने 'हिवं' 'हि' 'हिवउ' 'हिवि' 'हिवई' 'हिविई' 'हविं' 'हव' इत्यादि अनेक रूपे लखता होय छे। वर्णसंयोजनानी आवी अनवस्थाने लीघे कोई पण जूना देशभाषा-लेखकनी रचनामां आपणे तेनी पोतानी चोक्कस भाषाशैली के लोकोनी उच्चारण पद्धतिनो निश्चित परिचय नयी मेळवी शकता। अने जो कोई एवी जूनी कृति परिमाणमां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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