Book Title: Bharateshwar Bahubali Ras tatha Buddhiras
Author(s): Shalibhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya
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अंक १]
भरतेश्वर-बाहुबली रास [१५ भडहडइं भय भडवाइ भुयबलि, भरीय हुइ जिम भीभरी, तहिं चंद्रचूडह पुत्र परबलि, अपिउ नरवइ नर नरतरी । वसमतीय नंदण वीर विस, सेल सर म दिखाडए, रह रहु रे हणि हणि......भणंतू, अपड पायक पाडए ॥ १४७
धउल-पाडीय सुखेय सेणावए दंत, पूंठिहिं निहणीय रणरणीय,
सूर कुमारह राउ पेखंत, भिरडए भूयदंड बेउ......। नयणिहिं निरषीय कुपीयउ राउ, चक्करयण तउ संभरइए, मेल्हइए तेह प्रति अति सकसाउ, अनलवेगो तहिं चिंतवइ ए ॥ १४८
Jटक-चिंतवईय सुहडह राउ, जो अई उषूटउं आउ ।
हिव मरण एह जि सीम, रंजईअ चक्रवृत्ति जीम ॥ रंजवईय चक्रवृत्ति जीम इम, भणि चकु मुहिहिं षडषली, संचरिउ सूरउ सूरमंडलि, चकु पुहचइ तहिं वली । षडषडीउ नंदण चंद्रचूडह, चंद्रमंडल मोहए, झलहलीय झालि झमालि तुहिहिं, चक्क तहिं तहिं रोहए ॥
१४९
धउल-रोहीउ राउत जाइ पातालि, विजाहर विजाबलिहिं,
चक्क पहूचए पूठि तीणि तालि, बोलए बलवीय सहसजखो । रे रे रहि रहि कुपीउ राउ, जित्थु जाइसि तित्थु मारिखु ए, तिहूयणि कोइ न अछइ अपाय, जय जोषिम जीणइ जीवीइ ए ॥१५०
Jटक-जीविवा छंडीय मोह, मनि मरणि मेल्हीय थोह,
समरीय तु तीणि ठामि, इकु आदि जिणवर सामि । [इकु आदि जिणवर सामिा] समरीय, वजपंजर अणसरइ, नरनरीउ पालि फिरीउ तस सिरु, चक्क लेई संचरइ । पयकमल पुज्जइ भरह भूपति, बाहुबलि बल खलभलइ, चक्रपाणि चमकीय चीति कलयलि, कलह कारणि किलगिलह ॥ १५१
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मूळ प्रतिमा अहिं लखनारना हाये आ पादनो ए पूर्व अर्ध भाग लखतां छूटी गयो छे.
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