Book Title: Bharateshwar Bahubali Ras tatha Buddhiras
Author(s): Shalibhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya
View full book text
________________
अंक १]
भरतेश्वर-बाहुवली रास [१९ सिरिवरि ए लोच करेइ, कासगि रहीउ बाहुबले ।। भंसूर ए अंखि भरेउ, तस पय पणमए भरह भडो॥ १९३ बांधव ए कांइ न बोल, ए अविमांसि मई की ए। मेल्हिम ए भाई निटोल, ईणि भवि हुं हिव एकलु ए ॥ १९४ कीजई ए आजु पसाउ, छडि न छंडि न छयल छलो । हीयडइ ए म धरि विसाउ, भाई य अम्हे विरांसीया ए ॥ १९५ मानई ए नवि मुनिराउ, मौन न मेल्हइ मन्नवीय । मुक्कई ए नहु नीय माण, वरस दिवस निरसण रहीय ॥ १९६ बंभीउ ए सुंदरि बेउ, आवीय बंधव बूझवई ए। ऊतरि ए माणगयंद, तु केवलिसिरि अणसरइ ए॥ २९७ ऊप, ए केवल नाण, तु विहरइ रिसहेस सिउं । आवीउ ए भरह नरिंद, सिर परगहि अवझापुरी ए॥ २९८ हरिषीया ए हीइ सुरिंद, आपण पई उच्छव करई ए । वाजई ए ताल कंसाल, पडह पखाउज गमगमई ए॥ आवई ए आयुधसाल, चक्क रयण तउ रंगभरे। संख न ए जस केकाण, गयघड रहवर राणिमहं॥ २०० दस दिसि ए वरतई आण, भड भरहेसर गहगहइ ए। रायह ए गच्छ सिणगार, वयरसेण सूरि पाटधरो ॥ २०१ गुणगणहं ए तणु भंडार, सालिभद्र सूरि जाणीइ ए । कीधउं ए तीणि चरितु, भरहनरेसर राउ छंदि ए॥ २०२ . जो पढइ ए वसह वदीत, सो नरो नितु नव निहि लहइ ए । संवत ए बार" कएतालि" फागुण पंचमिई एउ कीउ ए ॥ २०३
२९९
॥ इति भरतेश्वर-बाहूबलि रास श्रीसालिभद्रसूरिकृतसमाप्तः ॥
॥श्लोक संख्या ३४० ॥ छ । विमलमतिगणिविलोकनाय ॥ कल्याणं भूयाश्चिरं नन्दतु यावश्चन्द्र-रवी॥
*
*
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38