Book Title: Bharateshwar Bahubali Ras tatha Buddhiras
Author(s): Shalibhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya

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Page 31
________________ १८] भारतीय विद्या अनुपूर्ति [वर्ष २ गडयड गयघड ढींचा ढलइं, सूना समा तुरंग मल तुलई। वाजई धणुही तणा धोंकार, भाजई भिडत नभेडीगार ॥ १७९ वहई रुहिर नइ सिरवर तरई, रीरी या टरणि राषस करई । हयदल हाकइ भरह नरिंद, तु साहसु लहइ सम्गि सुरिंद ॥ १८० भरहजाउ सरभु संग्रामि, गांजइ गजदल आगलि सामि । तेर दिवस भड पडीउ घाइ, धूणी सीस बाहूबलि राइ ॥ १८१ तीह प्रति जंपइ सुरवर सार, देषी एवडु भडसंहार । काइ मरावउ तम्हि इम जीव, पडसिउ नरकि करंता रीव ।। १८२ गज उतारीय बंधव बेउ, मानिउं वयण सुरिंदह तेउ । पइसई मालाखाडइ वीर, गिरिवरं पाहिइं सबल सरीर ॥ १८३ वचनझुझि भड भरहु न जिणइ, दृष्टिझूझि हारिउं कुण अ णइ। दंडिझूझि झड झंपीय पडइ, बाहु पासि पडिउ तडफडइ ॥ १८४ गूडासमु धरणि मझारि, गिउ बाहूबलि मुष्टिप्रहारि । भरह सबल तई तीण घाइ, कंठसमाणउ भूमिहिं जाइ ।। १८५ कुपीउ भरह छ खंडह धणी, चक्र पठावइ भाई भणी । पाखलि फिरी सु वलीउं जाम, करि बाहूबलि धरि ताम ॥ १८६ बोलइ बाहुबलि बलवंत, लोहखंडि तउं गरवीउ हंत । चक्रसरीसउ चूनउ करउं, सयलहं गोत्रह कुल संहरउं ॥ १८७ तु भरहेसर चिंतइ चींति, मई पुण लोपीय भाईय भीति ।। जाणउं चक्र न गोत्री हणइ, माम महारी हिव कुण गिणइ॥ १८८ तु बोलइ बाहूबलि राय(उ), भाईय मनि म म धरसि विसाउ । तई जीत मई हारिलं भाइ, अम्ह शरण रिसहेसर पाय ॥ १८९ ठवणि १४. तउ तिहिं ए चिंतइ राउ, चडिउ संवेगिई बाहुबले । दूहविउ ए मई वडु भाय, अविमांसिइं अविवेकवंति ॥ १९० धिग धिग ए एय संसार, घिग धिग राणिम राजरिद्धि । एवडु ए जीवसंहार, कीधउ कुण विरोधवसि ॥ १९१ कीजइ ए कहि कुण काजि, जउ पुण बंधव आवरई ए । काज न ए ईणइं राजि, घरि पुरि नयरि न मंदिरिहि ॥ १९२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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