Book Title: Bharateshwar Bahubali Ras tatha Buddhiras
Author(s): Shalibhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya
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शालिभद्रसूरिकृत
बु द्धि
रा स
पणमवि देवि अंबाई, पंचाइण गामिणी ।
समरवि देवि सीधाई, जिण सासण सामिणि ॥ १ पणमिउ गणहरु गोयम स्वामि, दुरिउ पणासइ जेहनइ नामिछ। सुहगुरु वयणे संग्रह कीजई, भोलां लोक सीषामण दीजइ ॥ २ केई बोल जि लोकप्रसिद्धा, गुरुउवएसिई केई लीद्धा । ते उपदेश सुणउ सवि रूडा, कुणहइ आल म देयो कूडा ॥ ३ जाणीउ धरमु म जीव विणासु, अणजाणिइ घरि म करिसि वासु । चोरीकारु चडइ अणलीधी, वस्तु सु किमइ म लेसि अदीधी ।। ४ परि घरि गोठि किमइ म जाइसि, कूडउ आलु तुं मुहियां पामिसि । जे घरि हुइ एकली नारि, किमई म जाइसि तेह घरबारि ॥ ५ घरपच्छोकडि राषे छीडी, वरजे नारि जि बाहिरि हीडी। परस्त्री बहिनि भणीनइ माने, परस्त्री वयण म धरजे काने ॥ ६ मइ एकलउ मारगि जाए, अणजाणिउ फल किमई म पाए । जिमतां माणस द्रेठी म देजे, अकहिं परि घरि किंपि म लेजे ॥ ७ वडां ऊतर किमइं न दीजई, सीष देयंतां रोस न कीजई। ओछइ वासि म वसिजे कीमई, धरमहीणु भव जासिइ ईमइ ॥८ छोरू वीटी ज हुइ नारि, तउ सीषामण देजे सारी । अति अंधारइ नइ आगासई, डाहउ कोइ न जिमवा बइसई ॥ ९ सीषि म पिसुनपणु अनु चाडी, वचनि म दूमिसि तू निय माडी। मरम पीयारु प्रगट न कीजइ, अधिक लेइ नवि ऊर्छ दीजइ ॥१० विसहरु जातु पाय म चांपे, आविइ मरणि म हीयडइ कांपे।। ग्रहणा पाषइं व्याजि म देजे, अणपूछिइ घरि नीर म पीजे ॥ ११ कहिसि म कुणहनीय घरि गूझो, मोटां सिर म मांडिसि झूजो। अणविमास्यां म करिसि काज, तं न करेवं जिणि हुई लाज ॥ १२ जणि वारितउ गामि म जाए, तं बोले जं पुण निरवाहे । षातु काइ हीडि म मागे, पाछिम राति बहिल जागे ॥ १३
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