Book Title: Bharateshwar Bahubali Ras tatha Buddhiras
Author(s): Shalibhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya
Catalog link: https://jainqq.org/explore/034776/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GlasbJuide to જૈન ગ્રંથમાળા, દાદાસાહેબ, ભાવનગર, ફોન : ૦૨૭૮-૨૪૨૫૩૨૨ 300४८४७ शालि भद्रसूरिकृत रतेश्वर-बाहुबलि रास तथा बुद्धि रास [वि. सं. १२४१ मां रचाएली गुजाराती भाषानी प्राचीनतम पद्यकृति ] अमृतं तु विद्या आन्ध्रगिरि ( अन्धेरी) मां भराता गुजराती साहित्य परिषत् संमेलन ना १४ मा अधिवेशन प्रसंगे प्रकाशित संपादक श्री जिन विजय मुनि [भारतीय विद्या, वर्ष २, अङ्क १, मांथी उद्धृत] । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारतीय विद्या, अनुपूर्ति, क्रमाङ्क १ शालिभद्रसूरिकृत भरतेश्वर- बाहुबलि रास बुद्धि रास तथा [गुजराती भाषानी प्राचीनतम पद्यरचना ] आन्ध्रगिरि (अन्धेरी) मां भराता गुजराती साहित्य परिषत् संमेलन ना १७ मा अधिवेशन प्रसंगे प्रकाशित संपादक श्री जिन विजय मुनि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विजया दशमी, सं. १९९७] गुजरातना पुरातन माहित्यना ममुद्धार अने अभिनव वाइमयनः ममत्कर्षनी माधना मांट गुजराती साहित्य संसद् स्थापित करी गुजराती जनताना मावुक मानसमां सांस्कारिक 'अम्मिता उदभावित करनार भारतीय संस्कृतिना उच्चतम अध्ययन - अध्यापन अने सवांगीण शिक्षणप्रसार निमित्त भारतीय विद्या भवन तथा तदन्तर्गत गुजरातना अनन्य ज्ञानज्योतिर्घर श्रीमद् हेमचन्द्राचार्यन मार्वजनीन स्मृतिमन्दिर म्यापित करनार सहृदय सुहृद्वर श्रीमत् कन्हैयालाल माणेकलाल मुंशी ना कर्तव्यनिरत करकमलमा हैमयुगीन गुजराती भाषानो आ प्राचीनतम पद्य प्रबन्ध नूतन प्रतिष्ठित हेमचन्द्रस्मृतिमन्दिरमा सर्वाय स्थापन करवा माटे मादर समर्पित जिन विजय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किंचित् प्रास्ताविक * भारतीय विद्या भवनना सुयोग्य सूत्र-संचालन नीचे, एना पो | अभिनव रचाएला भव्य भवनना प्रशस्त प्रांगणमां, शरत्पूर्णिमा जेवा शुभ्रतर अने शुभकर पर्वदिवसे भराता, गुजराती साहित्य परिषद् संमेलनना, १४मा अधिवेशनरूप आनन्दोत्सव प्रसंगे, गूर्जरगिराना गुण-गौरवमां गर्व अनुभत्रनारा सुविज्ञ सज्जनोना करकमलमां, गुजराती भाषानी अद्यावधि अप्रकाशित अने अपरिचित एवी एक सौधी प्राचीन पद्यकृति सादर समर्पित करुं हुं । आ कृतिनुं नाम भरतेश्वर बाहुबलि रास छे । एना कर्ता जैन श्वेतांबर संप्रदायना राजगच्छ नामना आम्नायमां थरला शालिभद्र सूरि छे । आनो रचना समय विक्रम संवत् १२४१, ना फाल्गुन मासनी पंचमी तिथि छे । आपणने गुजराती भाषाना पुरातन साहित्यना विशाल संग्रहनी वास्तविक अने विश्वस्त ओळखाण तथा भाळ आपवानुं प्रथम मान सद्गत विद्वान् चीमनलाल डाह्याभाई दलाल एम्. ए. ने प्राप्त थाय छे । इ. स. १९१४नी अन्तमां, वडोद-राना साहित्यविलासी सद्गत श्रीसयाजीराव महाराजनी आज्ञाथी, मने पाटणना जैन भंडारोनुं व्यवस्थितरीते निरीक्षण करवानो परम सुयोग प्राप्त थयो; अने तेमां, पाटणना भंडारोना अग्र उद्धारक पूज्यपाद प्रवर्तक मुनिवर श्रीकांतिविजयजी महाराज तथा तेमना अनन्य सहायक अने शास्त्रसुरक्षक स्वर्गस्थ शिष्यवर श्रीमुनि चतुरविजयजी महाराजनी विशिष्ट सहानुभूति भरेली इष्ट सहायता थी, तेमनुं ए निरीक्षणकार्य बहु ज सुंदररीते सफळ थयुं । तेमणे ए भंडारोमां छुपाएली विशाळ साहित्य संपत्तिनी सारा प्रमाणमां व्यवस्थित नोंध करी; अने ते उपरथी, सन् १९१५मां भराएली पांचमी गुजराती साहित्य परिषद् वास्ते एक विस्तृत निबंध तैयार कर्यो, जेमां 'पाटणना भंडारो अने खास करीने तेमां रहेलुं अपभ्रंश तथा प्राचीन गुजराती साहित्य' ए विषय उपर गूर्जर साक्षरोने बहु ज विगतपूर्ण अने अभिनव प्रकाश आप्यो । ए पहेलां, आपणी जूनी पेढीना बुजर्ग विद्वानो, गुजराती भाषाना आदि कवि तरीके नरसी महेताने ओळखता अने 'मुग्धावबोध औक्तिक' मां मळी आवतां गुजराती वाक्योने गुजराती भाषाना आदि गद्य तरीके उल्लेखता । घणुं करीने, ख० मनःसुख कीरतचंद महेता अने मनःसुखलाल खजी भाई महेताए, जैन साहित्यना कांईक सविशेष अवलोकनथी, पुराकालीन जैन (1) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२] भारतीय विद्या अनु पूर्ति [वर्ष २ विद्वानोए पोषेली गुजराती भारतीना भंडोळनो केटलोक नवीन परिचय, गुजराती साहित्य परिषद् आगळ निबंधरूपे उपस्थित कर्यो हतो अने नरसिंह महेता करतां पण बहु पहेला अनेक जैन विद्वानो थई गया जेमणे गुजराती भाषामां घणी रचनाओ करी छे -- एबुं बताववा प्रयत्न कर्यो हतो। पण ए प्रयत्नमां काईक तो सांप्रदायिक अनुराग विशेष देखातो हतो, अने बीजं तेमा मौलिक साहित्यना अवलोकननो अभाव जणातो हतो, तेथी विद्वानोमा ए विशेष आदरणीय न बन्यो। ___स्व. श्रीमनःसुखलाल कीरतचंद महेताना ए विषेना उपयोगी सूचनवाळा निबंधना अवलोकनथी, मने पण ए विषयमां कांईक रस पेदा थयो, अने तेथी उक्त पूज्य मुनिवरोना वात्सल्यपूर्ण अने विद्यावर्द्धक अन्तेवास तेम ज प्रोत्साहनथी, पाटण अने वडोदरा आदिना भिन्न भिन्न भंडारोमां रक्षाएली अने छुपाएली विशाळ ग्रंथराशिनो यथेष्ट परिचय मेळववानो इष्टतम सुयोग प्राप्त थतां, में पण प्राचीन गुजराती साहित्यनां अन्वेषण, अवलोकन अने संपादन आदि करवामां यथाबुद्धि प्रयत्न करवा मांड्यो।। __ सौथी प्रथम, ई. स. १९१२-१३ मां, में प्राचीन भाषा साहित्य अवलोकवा अने संग्रहवा मांड्यु । पाटणना एक भंडारमा कागळनी एक प्राचीनतम हस्तलिखित प्रति मारा जोवामां आवी जे संवत् १३५७-५८मां लखेली हती अने जेमां प्रतिक्रमण सूत्र आदि अनेक प्रकीर्ण कृतिओनो संग्रह हतो. तेमां संस्कृत - प्राकृत- अपभ्रंश आदिमां रचाएली नानी मोटी अनेक कृतिओ उपरांत, सर्वतीर्थ नमस्कार अने नमस्कार व्याख्यान आदि गुजराती गद्य लेखो, तथा विनयचंद्र सूरिकृत नेमिनाथ चतुष्पदिका आदि पद्य कृतिओ पण लखेली मारा जोवामां आवी । एमांनी नेमिनाथ चतुष्पदिका के जे एक तो शुद्ध एवी प्राचीन गुजरातीमां रचाएली हती, अने बीजुं तेमांनुं वर्णन बे सखीओना बारमासना संवादरूपनुं हतुं, तेथी भाषा अने कविता-बंने दृष्टिए एनी रचना मने उपयोगी लागी अने तेथी ते वखते प्रसिद्ध थता, जैनश्वेतांबर कॉन्फरन्स हेरल्डना सने १९१३ना 'पर्युषणा' अंकमां में तेने प्रसिद्ध करावी । माणिक्यचन्द्र सूरि कृत गद्य पृथ्वीचंद्र चरितनी मूल प्रति पण ए ज समये मारा अवलोकवामां आवी । गुजराती गद्यना एक उत्तम संदर्भ अने अभ्यसनीय प्रबंध तरीके मने तेनी विशिष्टता जणाई अने तेथी तेने प्रसिद्ध करवानी दृष्टिए तेनी अविकल नकल में मारा हाथे करी लीधी । आ रीते गुजराती Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भंक १] भरतेश्वर बाहुबलि रास- किंचित् प्रास्ताविक [३] भाषाना अभ्यासनी सामग्रीनो सौथी प्राथमिक परिचय मने ते समये थयो, अने त्यारथी में तेनो उत्साह पूर्वक संग्रह आदि करवानो प्रारंभ कर्यो । बेत्रण वर्ष पाटणना भंडारोनुं अवलोकन कर्या पछी, उक्त पूज्य मुनिवरोना वात्सल्यपूर्ण सहवासमां ज परिभ्रमण करतां, मारुं वडोदरा आवq थयु । त्यो भाई श्री चिमनलाल दलालना विशिष्ट समागम अने सौहार्दपूर्ण सहकारथी में मारा प्राचीन साहित्यना संशोधन अने संपादन कार्यनो व्यवस्थित उपक्रम आरंभ्यो । भाई दलाले पण ए ज समयमा गायकवाडस् ओरिएन्टल सीरीझना संपादन अने प्रकाशननुं काम हाथमां लीधुं । ए सीरीझना प्रारंभ समये ज काव्यमीमांसा, हमीरमदमर्दन, वसंतविलास, मोहराजपराजय, कुमारपाल प्रतिबोध, उदयसुंदरी कथा आदि अनेकविध संस्कृत -प्राकृत ग्रंथो साथे गुजराती भाषाना प्राचीन साहित्यना संग्रहरूपे पण एक ग्रंथ तैयार करवानो विचार थयो । ए विचार अने कार्यमां अमे बने सहयोगी- सहसंपादक हता । एना फळरूपे ए ग्रंथमाळामां प्रसिद्ध थएल ते प्राचीन गूर्जरकाव्यसंग्रह छ । ए संग्रहमा प्रकट थएल सामग्रीमाथी केटलीक मारी मेळवेली हती अने केटलीक भाई दलालनी हती । ए संग्रहमा प्रथम तो मात्र पद्यात्मक कृतिओ ज संग्रहवानी योजना हती, अने तेथी प्रथम पृष्ठ उपरनुं मुख्य नाम पण ए ज वस्तुसूचक राखवामां आव्युं । पण पाछळथी एमां अमुक समय पर्यंतनो गद्य संग्रह पण आपवानो विचार स्फुर्यो अने ते साथे गद्यमय समग्र पृथ्वीचंद्र चरित पण दाखल करवानो निर्णय थयो । अने ए रीते, पाछळथी गद्य पद्य-उभयना संग्रह तरीके एनी संकलना करवामां आवी । ए संग्रह छपातो हतो ते दरम्यान ज-बीजे वर्षे मारु मुंबई अने ते पछी पूना तरफ प्रयाण थयुं । १९१८ना चोमासाना भयंकर इन्फ्लुएंजामा, वडोदरामां भाई चिमनलाल अने पूनामां हुं-बन्ने सारीरीते सपडाया । तेमां भाई चिमनलाल तो ईश्वराज्ञाए, आ लोकयी निर्वेद यई परलोक तरफ चालता पया, अने हुं भ्रमिष्ठ चित्त बनी महिनाओ सुपी निश्चेष्ट थई रह्यो । खैर. भाई दलालनी इच्छा ए प्राचीन गूर्जरकाव्यसंग्रहने बहु ज विस्तृत नोटस् आदि साथे तैयार करवानी हती, अने ए माटे घणी धणी नोंधो अमे तैयार पण करी इती। परंतु तेमना ए अकाल अवसानने लीघे ए कार्य अपूर्ण रह्यु अने गुजराती भाषा अने साहित्यना अभ्यासमां, ए नोंधोथी जे विशिष्ट सामग्री मळवानी आशा हती ते अफळ बनी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४] भारतीय विद्या अनु पूर्ति [ वर्ष २ आम अपूर्ण छतांय ए 'प्राचीनगूर्जरकाव्यसंग्रह'ना प्रकाशनथी, आपणी भाषाना तत्कालीन प्राचीन खरूपनां अध्ययन अने अन्वेषणमां घणी कीमती मदत मळी छे; अने एना अवलोकनथी, आपणी भाषानी विशिष्ट पुरातनता, समुन्नतता अने विकस्वरता विषयक जूनी पेढीमा जे अति अल्पज्ञता छवाएली हती ते दूर थई छ । उक्त प्राचीन गूर्जरकाव्यसंग्रहमां मुख्यपणे वि० सं० १४०० सुधीमां रचाएली कृतिओनो संचय करवामां आवेलो छ । एमां सौथी जूनी कृति तरीके जे प्रकट करवामां आवी छे ते महेन्द्रसूरिशिष्य धर्म नामना विद्वाने बनावेल जंबूस्वामिरास छ । सं० १२६६मां ते रासनी रचना पूर्ण थई छे, एम तेनी छेल्ली कडीमां कहेलं छे । ते वखतना अवलोकन दरम्यान पाटणना भंडारमा शुद्ध गुजराती भाषानी जूनामां जूनी जे एक स्वतंत्र रचना जोवामां आवी ते ए जंबूस्खामिरासरूप हती अने तेथी भाई श्री दलाले पोताना उक्त साहित्यपरिषद्वाळा निबंधमां ते रासनी नोंध आपतां लख्युं हतुं के 'गूजराती भाषामा अत्यार सुधी मळी आवेला रासोमां आ सौथी जूनो छे' । ___ आजे हुँ जे रास गूर्जर गिरानी गुरुताना उपासकोना हाथमा उपस्थित करूं छु ते उक्त जंबूस्खामिरास करतां२५ वर्ष पूर्वे बनेलो छ । एनीरचना, जेम प्रारंभमां ज जणाव्युं छे तेम, वि० संवत् १२४१मां थएली छे। ठीक ते ज वर्षमां-जे वर्षमा सोमप्रभाचार्य कुमारपालप्रतिबोध नामक प्राकृत महाग्रंथनी (जेमां काईक संस्कृत अने कांईक अपभ्रंशना पण प्रकरणो छे) पाटणमां पूर्णाहुति करी हती । प्रस्तुत रासना कर्ता शालिभद्र सूरि पोताना स्थाननो को निर्देश नथी करता । पण घणा भागे ते पाटण ज होय एम लागे छ । गुजरातना अनन्य ज्ञानसूर्य आचार्य हेमचंद्रने खर्गवास थए ते वखते मात्र १०-११ वर्ष ज व्यतीत थयां हतां । तेथी आपणे आ रासने हैमयुगनीज एक कृति तरीके स्वीकारिए तो ते असंगत नथी । अने आ रीते प्रस्तुत रासरूपे आपणने हैमयुगनी चालू गुजराती भाषानो एक खतंत्र अने सुबद्ध प्रबंध मळी आवे छे । एथी कोई अन्य प्राचीनतर कृति उपलब्ध यतां सुधीमां आपणे एने गुजराती भाषाना इतिहासमां सर्व प्रथम स्थान आपq जोईए । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक १] भरतेश्वर वाहुवलि रास-किंचित् प्रास्ताविक [५] आ रासनी मने मात्र एक ज प्राचीन प्रति उपलब्ध थई छे जे वडोदरामां अवस्थित प्रवर्तक श्री कांतिविजयजी शास्त्र - संग्रहनी छे । प्रति कागळनी छे अने तेना कुल ६ पानां छे। दरेक पानानी लंबाई आशरे ११३ इंच अने चोडाई ४३ ईच जेटली छे। प्रति उपर लख्या साल नथी, पण अनुमाने ४००थी ५०० वर्ष जेटली जूनी होय तेम जणाय छे । __ जेम घणा भागे बधा ज जुना भाषा - लेखकोना विषयमा अनुभवाय छे, तेम आनी प्रतिनो लखनार पण जोडणीनी बाबतमा एकरूप नथी । खास करीने इकार उकारना हख - दीर्घनो कोई चोक्कस नियम आपणी भाषाना जूना लेखको साचवता नथी । जेओ संस्कृत प्राकृतना महाधुरंधर विद्वानो हता अने जेमणे हजारो श्लोकोवाळा मोटा मोटा ग्रंथो-कान्यो-शास्रो लख्या छे, तेओ पण ज्यारे पोतानी मातृभाषामां कांई रचना करे छे के लखे छे तो तेमां भाषानी विशुद्धता के जोडणीनी एकरूपतानी कशी पण चोकसाई देखाती नथी। अने तेनुं कारण ए छे के देश अने काळना भेदने लईने लोकभाषा हमेशां अनवस्थित अने अनेकरूपी बनती रहेवाथी, ते समयमां तेनी विशिष्ट व्याकरणबद्धता शक्य न हती अने तेथी देशभाषामा लखनारा विद्वानो के कविओ शब्दोना रूपो के वर्णसंयोजनाना नियमो माटे कोई खास काळजी राखता नहि । आ वस्तु प्रस्तुत रासमां पण जणाई आवे छे । लखनारे 'इ' कार के 'उ' कारना हख-दीर्घनो कोई खास भेद राख्यो होय तेम देखातुं नथी। एकना एक ज शब्दमां ए खरोने ते कोई ठेकाणे ह्रखरूपे लखे छे तो कोई ठेकाणे दीर्घरूपे। तेम ज ज्यां ह्रखनी अपेक्षा होय छे त्यां दीर्घ करी दे छे अने ज्यां दीर्घनी आवश्यकता होय छे त्यां हख पण लखी काढे छे । केटलांक ठेकाणे तो 'इ' अने 'उ' नी वच्चे मेद पण जाणे न गणतो होय तेम एकना बदले बीजो अक्षर अर्थात् इ के उ ना बदले उ के इ सुधां लखी नांखे छे । ए सिवाय शब्दोनी वर्ण-संयोजना ( अक्षरजोडणी )नी बाबतमां पण आपणा जूना लेखको एकरूपता नथी जाळवता अने अव्यवस्थितरीते लखाण करता रहे छे । एकला 'हवे' ए शब्दने 'हिवं' 'हि' 'हिवउ' 'हिवि' 'हिवई' 'हिविई' 'हविं' 'हव' इत्यादि अनेक रूपे लखता होय छे। वर्णसंयोजनानी आवी अनवस्थाने लीघे कोई पण जूना देशभाषा-लेखकनी रचनामां आपणे तेनी पोतानी चोक्कस भाषाशैली के लोकोनी उच्चारण पद्धतिनो निश्चित परिचय नयी मेळवी शकता। अने जो कोई एवी जूनी कृति परिमाणमां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६] भारतीय विद्या अनु पूर्ति [वर्ष २ वधारे लोकप्रिय बनी होय अने तेनो जो पठन-पाठनमां वधारे प्रचार थयो होय तो, तेनी भाषा - रचनामां जुदा जुदा जमानाना अनेक जातनां रूपो अने पाठभेदो उमेराई, ते वघारे अनवस्थित रूप धारण करे छ; अने ते साथे कोई भाषातत्त्वानभिज्ञ संशोधक साक्षरना हाथे जो तेना जीर्ण देहy कायाकल्प थई जाय तो ते तद्दन नूतन रूप पण प्राप्त करी ले छे । आवी जूनी कृतिओनुं मूळ खरूप मेळववा माटे अधिक संख्यामां अने जेम बने तेम वधारे जूनी लखेली प्रतिओ मेळववी जोइए अने तेमना सूक्ष्म अवलोकन अने पृथक्करणना आधारे पाठ - विचारणा थवी जोइए। आ पद्धतिए कार्य करवाथी ज आवी प्राचीन कृतिओनो आदर्शभूत पाठोद्धार थई शके अने कर्तानी शुद्ध भाषानो परिचय मळी शके ।। __ पण जो एवी कृतिनी कोई अन्य प्रति न ज मळी शकती होय तो पछी तेने तो तेना यथालिखित रूपमा ज प्रसिद्ध करवी जोइए अने तेमां जे काई संशोधन आदि करवा जेवू जणातुं होय ते तेनी नीचेनी पादपंक्तिमां, के परिशिष्टरूपे पृथक्-टिप्पण विगेरेना रूपमां, बताव, जोइए । केटलाक विद्वानो आवी जूनी कृतिओमां जे इच्छानुसार पाठसंशोधनो करवानी अने मूळ लेखमां परिवर्तनो करवानी पद्धतिर्नु अवलंबन करे छे, ते सर्वथा अशास्त्रीय अने भाषाभ्रम उत्पन्न करनारी होई परित्यजयनीय छ । प्रस्तुत रासनी मने मात्र उपर जणावेली एक ज प्रति मळी आवी छ । पाटण विगेरेना बीजा बीजा भंडारोमां, घणां वर्षोथी आनी तपास करी रह्यो छु, पण ते क्यायथी उपलब्ध थई शकी नथी । एनी एक बीजी प्रति, आगरामा अवस्थित श्रीविजयधर्मलक्ष्मी ज्ञानमंदिरमा होवानी नोंध, साक्षर श्रीमोहनलाल दलीचंद देशाईना, जैन गूर्जर कविओ नामना महान् ग्रंथना भाग १ पृ. १ उपर, मळे छ । पण, विद्याविहारी मुनिराज श्रीविद्याविजयजी महाराज द्वारा, आगरामां ए प्रतिनी तपास करतां जाणवा मळ्यु के ते प्रति त्यांथी गुम थई गई छे - विगेरे । आम मूळचं बीजं कोई प्रत्यंतर न मळवाथी, आ रास जे रूपे ए एकमात्र जूनी प्रतिमां लख्नेलो मळी आव्यो छे तेवो ज अहिं मुद्रित कर्यो छे।। प्रति सारी पेठे जूनी अने प्रमाणमां शुद्धतापूर्वक लखेली होवाथी, रचनामां उपर सूचवी छे तेवी 'इ-उ' संबंधेनी अनवस्थता अने कांईक जोडणीनी शिथिलता सिवाय, बीजी कोई खास अपभ्रष्टता थई नथी; अने भाषा लगभग असलना जेवा ज रूपमां जळवाई रही छे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक १] भरतेश्वर वाहुबलि रास-किंचित् प्रास्ताविक [७] प्रस्तुत रासनी भाषा आदिना खरूपना विषयमा हुँ अहिं विशेष चर्चा करवा नयी इच्छतो। एनी भाषा अने शैलीनुं खरूप, ते समयनी अर्थात् ते सकानी अने तेनी आसपासनी बीजी उपलब्ध कृतिओ-जेवी के, उक्त जंबूखामिरास, तया विजयसेनसूरि कृत रेवंतगिरिरास, अज्ञातनाम कृत आबूगिरिरास आदि - ना जेवी ज छे । छन्दोरचना पण लगभग ए अन्य कृतिओमां मळी आवे छे तेवी ज छ । दोहा, वस्तु अने चउपइ जेवा ते समयना सौथी प्रसिद्ध अने प्रचलित मात्रामेळ छन्दो उपरांत अमुक लढणमां गवाय एवा ढाळवाळा रागना छन्दोनो पण आमां उपयोग थएलो छे, जे छन्दोने कर्ता पोते रासा छन्दो कहे छे । दरेक ठवणि पछी जे छन्दोवाळी पंक्तिओ-कडीओ आवे छे ते जुदा जुदा रागमां गवाय एवां आ रा सा छ न्दो छे ।। रासगत कथावस्तु जैन साहित्यमां बहु ज सुप्रसिद्ध छे । युगादि पुरुष भगवान् ऋषभदेवना पुत्र नामे भरत अने बाहुबलि-ए बंने वच्चे राजसत्ताना स्वीकारमाटे परस्पर जे विग्रह थयो अने तेनो जे रीते अंत आव्यो तेनुं एमां वर्णन करवामां आव्युं छे । कविनी शैली ओजसू भरी छे अने शब्दोनी झमक पण सारी छे । वीर रसनो वेग वधारे विकसित लागे छे। कथाना प्रसंगो बहु ज संक्षेपयी वर्णववामां आव्या छे तेथी कविने पोतानो काव्यरस खिलववानो अहिं अवकाश ज नथी, एटले एनी काव्यशक्तिनो विशेष विचार करवो अप्राप्त छे। छतां परह आस किणि कारणि कीजइ, साहस सहवर सिद्धि वरीजइ । हीउं अनइ हाथ हत्थीयार, एह जि वीर तणउ परिवार ॥ १०६॥ आवी जे केटलीक हृदयंगम उक्तिओ मळी आवे छे ते उपरथी एनी रसमय वाणीनी कल्पना यत्किचित् थई शके तेम छे । बुद्धिरास आ रासनी पछी ६३ कडीनो एक टुंको प्रबंध नामे बुद्धि रा स आपवामां आव्यो छे, जेना कर्ता पण शालिभद्र सूरि ज छे। जो के कर्ताए एमां, जेम 'भरतेश्वर बाहुबलि रास'मां आप्यां छे तेम, पोताना गच्छ अने गुरु आदिनां नाम नथी आप्यां, अने तेथी सर्वथा निश्चितरूपे तो एम न ज कही शकाय के आ रास पण ए ज शालिभद्र सूरिनी कृति छे। कारण के शालिभद्र सूरि नामना एक-बे बीजा पण ग्रंयकारो थई गया छे अने तेमणे पण गुजराती Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८] भारतीय विद्या अनुपूर्ति [वर्ष २ भाषामां रासा विगेरेनी रचना करेली छे । छतां प्रस्तुत 'बुद्धिरास'नी भाषा अने शैलीनो सूक्ष्म अभ्यास करतां, आ कृति पण ए ज कर्तानी होय एम विशेष संभवित लागे छे । ए बुद्धिरासमां प्रथम तो सर्वसाधारण - सामान्य जनताने जीवनमा आचरवा अने विचारवा जेवां केटलांक उत्तम शिक्षासूत्रो-बोध वचनो गुंथ्यां छ; अने छेवटे थोडांक शिक्षावचनो खास श्रावकवर्गने आचरवा अने मनन करवा माटे कह्यां छे । आ बधां बोधवचनो बहु ज ढूंका अने तद्दन सरळ छे । दरेक माणसने कंठे करवा जेवां छे । __ भंडारोना अन्वेषण उपरथी जणाय छे के आ बुद्धिरास, गत ६-७ सैकाओमां खूब ज जनप्रिय थई पड्यो हतो। सेंकडो नर - नारीओ एने कंठस्थ करता अने एनुं निरंतर वाचन - मनन करता । ए कारणथी जूना भंडारोमां ज्यां त्यां एनी अनेकानेक प्रतिओ मळी आवे छे । अने ए रीते ए रासनी प्रचार - अधिकताने लईने, एनी जुदी जुदी प्रतिओमां केटलाक खास पाठभेदो अने भाषानां बहुविध रूपान्तरो थयेलां पण मळी आवे छे । आ साथे जे वाचना मुद्रित करवामां आवी छे ते मने मळेली जूनामां जूनी प्रतिनी छे । आ कृतिनी सैकावार लखाएली एवी घणी य प्रतिओ मळी आवे छे अने तेमां उपर सूचव्या प्रमाणे भाषाना वरूप-भेदो पण खूब ज मळी आवे छे; तेथी एनी एक पर्यालोचनात्मक पाठवाळी आवृत्ति थवी आवश्यक छ । एवी पर्यालोचना परथी आपणने ए जणाशे के कालक्रमे केवी रीते आपणी भाषामां शब्दोना उच्चारणोमां अने वर्णसंयोजनोमां फेरफारो थया छे, विगेरे विगेरे । अत्यारे तो केवळ प्रकाशमां मूकवानी दृष्टिए ज एनी एक यथालिखित पुरातन वाचना अहिं मुद्रित करवामां आवी छे । ईश्वरेच्छा हशे तो यथावसरे ए विषे विशेष प्रयत्न कराशे ।। प्रस्तुत बुद्धिरासना अनुकरण रूपे, पाछळथी सारशिखामणरास, हितशिक्षारास आदि केटली य नानी मोटी रचनाओ थई छे, जे उपरथी आ रासनी विशिष्टता जणाई आवे छे । आशा छ के गुजराती भाषाना अध्यापको अने अभ्यासको आ प्रयत्नने आदर आपी, एर्नु उचित अवलोकन करशे । भारतीय विद्या भवन । आन्ध्रगिरि (अन्धेरी) -जिन विजय विजयादशमी, सं० १९९७ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शालिभद्रसूरिकृत भरतेश्वर-बाहुबली रास (एक प्राचीनतम गूर्जरभाषा - पद्यकृति) ॥ नमोऽर्हयः॥ रिसह जिणेसर पय पणमेवी, सरसति सामिणि मनि समरेवी; नमवि निरंतर गुरुचलणा ॥ १ भरह नरिंदह तणुं चरिचो, जं जुगी वसहांवलय वदीतो; बार वरिस बिडं बंघवहं ॥ २ हुं हिव पमणिसु रासह छंदिहिं, तं जनमनहर मन आणदिहिं; भाविहिं भवीयण संभलेउ ॥ ३ जंबुदीवि उवझाउरि नयरो, धणि कणि कंचणि रयणिहिं पवरो; __ अवर पवर किरि अमर परो ॥ ४ करह राज तर्हि रिसह जिणेसर, पावतिमिर मयहरण दिणेसर; तेजि तरणि कर तहिं तपइए ॥ ५ नामि सुनंद सुमंगल देवि, राय रिसहेसर राणी बेवि; रूवरेहि रति प्रीति जिन ॥ विवि बेटी जनमी सुनंदन, तेह जि तिहूयण मन आनंदन; भरह सुमंगल देवि वणु ॥ ७ देवि सुनंदन नंदन बाहूबलि, भंजइ भिउड महाभड भूयबलि; ___ अवर कुमर वर वीर धर ॥ ८ पूरव लाख वेणि वेयासी, राजतणी परि पुहवि पयासी; जुगि जुग मारग दाषीउए । अवमापरि भणेखर थापीय, वक्षशिला बाहुबलि आपीय; ___अवर अपणुं वर नयर ॥ दान दिया जिणवर संवत्सर, विसयविरच बहइ संजमभर; मुर असुरा नरि-सेवीहए ॥ ११ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २] भारतीय विद्या के अनुपूर्ति छ [वर्ष २ परमतालपुरि केवलनाणुं, तस ऊपन्नू प्रगट प्रमाणूं; जाण हq भरहेसरहं ॥ १२ तिणि दिणि आउधसालहं चक्को, आवीय अरीयण पडीय ध्रसको; भरह विमासइ गहगहीउ ॥ १३ धनु धनु हुं धर मंडलि राउ, आज पढम जिणवर मुझ तार; __ केवल लच्छि अलंकीयउ॥ १४ पहिलं ताय पाय पणमेसो, राजरिद्धि राणिमा फल लेसो; चकरयण तव अणसरचं ॥ १५ वस्तु-चलीय गयवर, चलीय गयवर, गडीय गजंत, हूं पत्तउ रोसभरि, हिणहिणंत हय थट्ट हल्लीय । रह भय भरि टलटलीय मेरु, सेसु मणि मउड खिल्लीय । सिउं मरुदेविहिं संचरीय, कुंजरी चडिउ नरिंद । समोसरणि सुरवरि सहिय, वंदिय पढम जिणंद ॥ पढम जिणवर, पढम जिणवर, पाय पणमेवि, आणंदिहिं उच्छव करीय, चक्करयण वलिवलिय पुज्जइ । गडयडंत गजकेसरीय, गरुय नदि गजमेह गज्जइ । बहिरीय अंबर तूर रवि, वलिउ नीसाणे घाउ । रोमंचिय रिउ रायवरि, सिरि भरहेसर राउ ॥ ठवणि १. प्रहि उगमि पूरवदिसिहि, पहिलउं चालीय चक तु । धूजीय धरयल थरहर ए, चलीय कुलाचल चक तु ॥ पूठि पीया' तउ दियए, भयबलि भरह नरिंद तु । पिडि पंचायण परदलहं, इलियलि अवर सुरिंद तु॥ वज्जीय समहरि संचरीय, सेनापति सामंत तु । मिलीय महाधर मंडलीय, गाढिम गुण गजंत तु ॥ गडयडतु गयवर गुडीय, जंगम जिम गिरिशंग तु ।। सुंड दंड चिर चालवई, वेलई अंगिहिं अंग तु ॥ गंजई फिरि फिरि गिरि सिहरि, भंजई तरुअर डालि तु । अंकस वसि आवई नहीं य, करई अपार अणालि तु॥ १८ २२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंक१] भरतेश्वर-बाहुबली रास [३ हीसई हसमिसि हणहणई ए, तरवर तार तोषार तु । खंदई खुरलई खेडवीय, मन मानइं असुवार तु ॥ पाखर पंखि कि पंखरू य, ऊडाऊडिहिं जाइ तु । हुंफई तलपई ससई धसई, जडइं जकारीय धाइ तु ॥ फिरइं फेकारइं फोरणई, फुड फेणाउलि फार तु । तरणि तुरंगम सम तुलई, तेजीय तरल ततार तु ।। घडहढंत घर द्रमद्रमीय, रह रूंघई रहवाट तु । रव भरि गणइं न गिरि गहण, थिर थोभई रहथाट तु ॥ यमरचिंध धज लहलहई ए, मिल्हई मयगल माग तु । वेगि वहंता तींह तणइं ए, पायल न लहइं लाग तु ॥ दडवडंत दह दिसि दुसह ए, सरिय पायक चक्क तु । अंगोमंगिइं अंगमई, अरीयणि असणि अणंत तु ॥ वाकई तलपई तालि मिलिइं, हणि हणि हणि पभणंत तु । आगलि कोइ न अछइ भलु ए, जे साहमु झूझत तउ ॥ २९ दिसि दिसि दारक संचरीय, वेसर वहई अपार तु । संष न लामई सेन तणी, कोइ न लहई मुघि सार तु ॥ ३० बंधव बंधवि नवि मिलई ए, न बेटा मिलई बाप तु । सामि न सेवक सारवई, आपिहिं आप विथाप तु ॥ गयवडि घडीउ चकघरो, पिडि पयंड भूयदंड तु । चालीय चिटुं दिसि चलचलीय, दिइं देसाहिव दंड तु ॥ वज्जीय समहरि द्रमद्रमीय, घण निनाद नीसाण तु । संकीय सुरवरि सग्ग सवे, अवरहं कमण प्रमाण तु ॥ ढाक दूक त्रंबक तणई ए, गाजीय गयण निहाण तु । षट पंडह पंडाहिवहं, चालतु चमकीय भाण तु ॥ भेरीय रख भर तिहुं भूयणि, साहित किमई न माइ तु । कंपिय पय भरि शेष रहिउ, विण साहीउ न जाइ तु ॥ सिर डोलावइ धरणिहिं ए, टूक टोल गिरिशंग तु । __ सायर सयल वि झलझलीय, गहलीय गंग तुरंग तु ॥ ३६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४] भारतीय विद्या ® अनुपूर्ति [वर्ष २ खर रवि बूंदीय मेहरवि, महियलि मेहंघार तु । उजूआलइ आउध तणई, चालई रायखंघार तु ।। मंडिय मंडलवइ न मुहे, ससि न कवई सामंत तु । राउत राउतवट रहीय, मनि मूंझई मतिवंत तु ॥ कटक न कवणिहिं भर तणुं, भाजइ भेडि भडंत तु। रेलई रयणायर जमले, राणोराणि नमंत तु॥ साठि सहस संवच्छरह, भरहस भरह छ खंड तु । समरंगणि साधइ सधर, वरतइ आण अखंड तु॥ बार वरिस नमि विनमि, भड भिडीय मनावीय आण तु। आवाठी तडि गंग तणइ, पामइ नवह निहाण तु ॥ छत्रीस सहस मउडुध सिलं, चऊद रयण संपत्त तु । आविउ गंगा भोगवीय, एक सहस वरसाउ तु ॥ ठवणि २. तउ तिहिं आउधसाल, आवइ आउधराउ नवि । तिणि खिणि मणि भूपाल, भरह भयह लोलावडओ॥ ४३ बाहिरि बहूय अणालि, अलुआरीय अहनिसि करइए। अति उतपात अकालि, दाणव दल वरि दाषवइ ए॥ ४४ मतिसागर किणि काजि, चक्क त(न) पुरि परवेस करइ । तई जि अम्हारइ राजि, धोरीय धर घरीउ धरहं ॥ देव कि थंभीउ एय, कवणि कि दानव मानविहिं । एउ आखि न मुझ भेउ, वयरीय वार न लाईइ ए॥ बोलइ मंत्रिमयंक, सांभलि सामीय चक्कधरो। अवर नही कोइ वंकु, चकरयण रहवा तणउ ।। संकीय सुरवर सामि, भरहेसर तूंय भूय भवणे । नासई ति सुणीय नामि, दानव मानव कहि कवणि ।। नवि मानई तूंय आण, बाहूबलि बिहुँ बाहुबले । वीरह वयर विनाणु, विसमा विहडई वीरवरो ॥ तीणि कारणि नरदेव, चक न आवइ नीय नयरे । विण बंधव तूंय सेव, सहू कोइ सामीय साचवह ए॥. ५० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक ] भरतेश्वर-बाहुबली रास [५ तं ति सुणीय तीणइ तालि, ऊठीउ राउ सरोसभरे । भमइ घडावीय मालि, पमणइ मोडवि मूछि मुहे ॥ जु न मानइ मझ आण, कवण सु कहीइ बाहुबले । लीलहं लेसु ए राण, भंज मुज भारिहिं भिडीय ॥ स मतिसागर मंति, वलि वसुहाहिव वीनवइ । नवि मनि कीजइ खंति, बंधव सिउं कहि कवण बलो॥ ५३ दूत पठावीयइ देव, पहिलघु वात जणावीइ ए । जु नवि आवइ देव, तु नरवर कटकई करउ ।। तं मनि मानीय राउ, वेगि सुवेगहं आइसइ ए । जईय सुनंदाजालं, आण मनावे आपणीय ॥ जां रथ जोत्रीय जाइ, सु जि आएसिहि नरवरहं । फिरि फिरि साहमु थाइ, वाम तुरीय वाहणि तणउ ।। काजलकाल बिराल, आवीय आडिहिं ऊवरइ ए। जिमणउ जम विकराल, खरु खु-रव ऊछलीय ॥ सूकीय बाउल डालि, देवि बइठीय सुर करइ ए। झंपीय झाल मझालि, धूक पोकारइ दाहिणओ ॥ जिमणइं गमई विषावि, फिरीय फिरीय शिव फे करइ ए। डावीय डगलइ सादि, भयरव भैरव खु करइ ए॥ वड जखनइं कालीयार, एकऊ बेढुं ऊतरह ए । नींजलीउ अंगार, संचरतां साहमु हुइ ए ॥ काल भुयंगम काल, दंतीय दंसण दाखवइ ए । आज अखूटउ काल, छूटर रहि रहि इम भणइ ए॥ जाइ जाणी दूत, जीवह जोषि अांगमइ ए। जेम भमंतउ भूव, गिणइ न गिरि गुह वण गहण ॥ सईद नेसमि वेस, न गिणइ नइ दह नींझरण । लंघीय देस असेस, गाम नयर पुर पाटणह ।। बाहरि बहूव बाराम, सुरवर नइ तां नीझरण । मणि वोरण अमिराम, रेहड धवलीय धवलहरो॥ ६४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६] भारतीय विद्या अनुपूर्ति पोयणपुर दीसंति, दूत सुवेग सु गहगहीउ । व्यवहारीया वसंति, धणि कणि कंचणि मणि पवरो॥ धरणि तरणि ताडंक, जेम तुंग त्रिगढुं लहइ ए । एह कि अभिनव लंक, सिरि कोसीसां कणयमय । पोढा पोलि पगार, पाडा पार न पामीइं ए । संख न सीहदूंयार, दीसई देउल दह दिसिइं ॥ पेखवि पुरह प्रवेसु, दूत पहूतउ रायहरे । सिउं प्रतिहार प्रवेसु, पामीय नरवर पय नमइ ए॥ चउकीय माणिक थंभ, माहि बईठउ बाहुबले । रूपिहिं जिसीय रंभ, चमरहारि चालई चमर ।। मंडीय मणिमइ दंड, मेघाडंबर सिरि धरिय । जस पयडे भूयुदंडि, जयवंती जयसिरि वसई ए॥ जिम उदयाचलि सूर, तिम सिरि सोहइ मणिमुकुटो। कसतुरीय कुसुम कपूर, कुचूंबरि महमहइ ए॥ झलकइ ए कुंडल कानि, रवि शशि मंडीय किरि अवर । गंगाजल गजदानि, गाढिम गुण गज गुडअडइं ए॥ उरवरि मोतीय हार, वीरवलय करि झलहलइ ए। तवल अंगि सिणगार, खलक ए टोडर वाम[इ] ए ॥ पहिरणि जादर चीर, कंकोलइ करिमाल करे । गुरूउ गुणि गंभीर, दीठउ अवर कि चक्कधर ॥ रंजिउ चित्ति सु दूत, देषीय राणिम तसु तणीय । धन रिसहेरपूत, जयवंतु जुगि बाहुबले ॥ बाहुबलि पूछेइ कुवण, काजि तुम्हि आवीया ए। दूत भणइ निज काजि, भरहेसरि अम्हि पाठव्या ए॥ वस्तु-राउ जंपइ, राउ जंपइ, सुणि न सुणि दूत; भरहखंड भूमीसरहं, भरह राउ अम्ह सहोयर । : सवाकोडि कुमरिहिं सहीय, सूरकुमर तहिं अवर नरवर । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक १] भरतेश्वर-बाहुबली रास [७ मंति महाधर मंडलिय, अंतेउरि परिवारि । सामंतह सीमाड सह, कहि न कुसल सविवार ॥ दूत पभणइ, दूत पभणइ, बाहुबलि राउ; भरहेसर चक्कघर, कहि न कवणि दूहवणह किजइ । जिहु लहु बंधव तूंय, सरिस गडयडंत गज मीम गजइ । जइ अंधारइ रवि किरण, भड भंजइ वर वीर। तु भरहेसर समर भरि, जिप्पइ माहरी धीर । ठवणि ३. वेगि सुवेग सु बुल्लइ, संभलि बाहूबलि । राउत कोइ तुह तुलइ, ईणिइं अछइ रवितलि ॥ जां तव बंधव भरह नरिंदो, जसु भुई कंपई सग्गि सुरिंदो। जीणई जीतां भरह छ षंड, म्लेच्छ मनाव्या आण अखंड ॥ ८० भडि भडंत न भूयबलि भाजइ, गडयइंतु गढि गाढिम गाजइ । सहस बतीस मउडाघा राय, [य बंधव सवि सेवई पाय ॥ ८१ चऊद रयण घरि नवई निहाण, संख न गयघड जसु केकाण ।। हूंय हवडा पाटह अभिषेको, तूंय नवि आवीय कवण विवेको॥ ८२ विण बंधव सवि संपय ऊणी, जिम विण लवण रसोइ अलूणी । तुम्ह दंसण उतकंठिउ राउ, नितु नितु वाट जोइ तुह भाउ ॥ ८३ वडत सहोयर अनई वड वीर, देव ज प्रणमई साहस धीर । एक सीह अनई पाखरीउ, भरहेसर नई तई परवरीउ ॥ ८४ ठवणि ४. तु बाहूबलि जंपइ, कहि वयण म काचुं। ___ मरहेसर भय कंपइ, जं जग तुं साचुं॥ समरंगणि तिणि सिलं कुण काछइ, जीह बंधव मई सरिसउ पाछइ । जावंत जंबुदीवि वसु आण, वां अम्ह कहीइ कवण ए राण ॥ ८६ जिम जिम सुजि गढ गाढिम गाढउ, हय गय रह वरि फरीय सनादु । तस अरषासण आपइ इंदो, तिम तिम अम्ह मनि परमाणंदो ॥ ८७ जुन आव्या अमिषेकह वार, तु तिणि अम्ह नवि कीधा सार । वरउराउ अम्ह वडउ जि भाई,जहिं भावह विहां मिलिसिउं जाई॥८८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८] भारतीय विद्याअनुपूर्ति [वर्ष २ अम्ह ओलगनी वाट न जोई, मड भरहेसर विकर न होइ । मझ बंधव नवि फीटइ कीमइ, लोमीया लोक भणइ लख ईम्हाई ॥ ८९ ठवणि ५. चालि म लाइसि वार, बंधव भेटीजइ । चूकि म चीति विचार, मूंय वयण सुलीजइ ।। वयण अम्हारं तूय मनि मानि, भरह नरेसर गणि गजदानि । संतूठउ दिइ कंचण भार, गयघड तेजीय तुरल तुषार ॥ ९१ गाम नयर पुर पाटण आपइ, देसाहिव थिर थोभीय थापइ । देय अदेय नं देतु विमासइ, सगपणि कह नवि किंपि विणासइ ॥ १२ जा ण राउ ओलगिउं जाणइ, माणण हार विरोषिई मारइ । प्रतिपन्नउं प्रगट प्रतिपालइ, प्रारथिउ नवि घडी विमरालइ ॥ ९३ विणि सिउं देव न कीजइ ताडउ, सु जि मनाविइ मांड म आडउ । हुं हितकारणि कहुं सुजाण, कूडूं कहूं तु भरहेसर आण ॥ ९४ वस्तु-राउ जंपइ, राउ जंपइ, सुणि न सुणि दूत; त विहि लहीउ भालहलि, तं जि लोय भवि भविहिं पामइ । ईमइ नीसत नर ति(नि) गुण, उत्तमांग जण जणह नामइ । खंभ पुरंदर सुर असुर, तीहं न लंघइ कोइ । लन्भइ अधिक न ऊण पणि, भरहेसर कुण होइ ॥ ९५ ठवणि ६.नेसि निवेसि देसि घरि मंदिरि, जलि थलि जंगलि गिरि गुह कंदरि । दिसि दिसि देसि देसि दीपंतरि, लही लाभइ जुगि सचराचरि॥९६ अरिरि दूत सुणि देवन दानव, महिमंडलि मंडल वैमानव । कोइ न लंघइ लहीया लीह, लाभइ अधिक न उछा दीह ॥ ९७ धण कण कंचण नवइ निहाण, गय घड तेजीय तरल केकाण । सिर सरवस सपतंग गमीजइ, तोइ नीसत्त पणइ न नमीजह ॥ ९८ ठवणि ७. दूत भणइ यहु भाई, पुन्निहिं पामीजह । पइ लागीजइ भाई, अम्ह कही कीजह ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भंक १] भरतेश्वर-बाहुबली रास [९ अवर अठाणूं जु जई पहिलं, मिलसिई तु तुझ मिलिउं न सयलु। कहि विलंब कुण कारणि कीजइ, माम म नीगमि वार वलीजइ॥१०० वार वरापह करसण फलीजइ, ईणि कारणि जई वहिला मिलीइ। जोइ न मन सिउं वात विमासी, आगइ वारूअ वात विणासी॥ १०१ मिलिउ न किहां कटक मेलावइ, तउ भरहेसर तइं तेडावइ । जाण रपे कोइ झूझ करेसिइ,सहू कोइ भरह जि हियडइ धरेसिइ॥१०२ गाजंता गाढिम गज मीम, ते सवि देसह लीधा सीम । भरह अछइ भाई भोलावउ, तउ तिणि सिउ न करीजइ दावउ ॥ १०३ वस्तु-तव सु जंपइ, तव सु जपइ, बाहुबलि राउ; अप्पह बाह भजां न बल, परह आस कहइ कवण कीजह । सु जि मूरष अजाण पुण, अवर देषि बरवयइ ति गज्जइ । हुं एकल्लउ समर भरि, भड भरहेसर घाइ । भंज भुजबलि रे मिडिय, भाह न भेडि न थाइ ॥ १०४ ठवणि ८. जइ रिसहेसर केरा पूत, अवर जि अम्ह सहोयर दूत । ते मनि मान न मेल्हई कीमई, आलईयाण म झंषिसि ईम्हइ ।। १०५ परह आस किणि कारणि कीजइ, साहस सइंवर सिद्धि वरीजइ । ही अनइ हाथ हत्थीयार, एह जि वीर तणउ परिवार ॥ १०६ जइ कीरि सीह सीयालिइं खाजइ, तु बाहुबलि भूयबलि भाजइ । जु गाई वापिणि पाई जइ, अरे दूत तु भरह जि जीपइ ॥ १०७ ठवणि ९. जु नवि मनसि आण, बरबहं बाहूबलि । लेसिइ तु तूं प्राण, भरहेसर भूयबलि ॥ १०८ जस छन्नवइ कोडि छई पायक, कोडि बहुत्तरि फरकई फारक । नर नरवर कुण पामइ पारो, सही न सकीइ सेनाभारो॥ १०९ जीवंता विहि सहू संपाडइ, जु तुडि चडिसि तु चडिउ पवाडइ । गिरि कंदरि अरि छपिउ न छूटइ, तूं बाहूबलि मरि म अखूटइ॥११० गय गदह हय हड जिम अंतर, सीह सीयाल जिसिउ पटंतर । भरहेसर अन्नहतूंय विहरउ, छुटिसि किम्हइ करंत न निहरु॥ १११ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०] भारतीय विद्या अनुपूर्ति छ [वर्ष २ सरवसु सुंपि मनावि न भाई, कहि कुणि कूडी कुमति विलाई । मूंझिम मूरष मरि म गमार, पय पणमीय करि करि न समार॥ ११२ गढ गंजिउ भड भंजिउ प्राणि, तई हिव सारइ प्राण विनाणि । अरे दूत बोली नवि जाण, तुंह आव्या जमह प्राण ॥ ११३ कहि रे भरहेसर कुण कहीइ, मई सिउं रणि सुरि असुरि न रहीइ । जे चक्किइं चक्रवृत्ति विचार, अम्ह नगरि कुंभार अपार ॥ ११४ आपणि गंगातीरि रमंता, धसमस धूंधलि पडीय धमंता। तई ऊलालीय गयणि पडतउ, करुणा करीय वली झालंतउ ॥ ११५ ते परि कांइ गमार वीसार, जु तुडि चडिसि तु जाणिसि सार । जउ मउडुधा मउड ऊतारउ, रुहिरु रिल्लि जु न हय गय तारउं॥११६ जउ न मारलं भरहेसर राउ, तउ लाजइ रिसहेसर ताउ । भड भरहेसर जई जणावे, हय गय रह वर वेगि चलावे ॥ ११७ वस्तु-दूत जंपइ, दूत जंपइ, सुणि न मुणि राज; तेह दिवस परि म न गिणसि, गंगतीरि खिल्लंत जिणि दिणि । चलंतई दल भारि जसु, सेससीस सलसलइ फणिमणि । ईमई याण स मानि रणि, भरहेसर छइ दूरि । आपापू वेढिउं गणे, कालि ऊगंतइं सूरि ।। ११८ __ दूत चल्लिउ, दूत चल्लिउ, कहीय इम जाम; मंतीसरि चिंतविउ, तु पसाउ दूतह दिवारइ । अवर अठाणूं कुमर वर, वाइ सोइ पहतु पचारइ । तेह न मनिउ आविउ, वलि भरहेसरि पासि । अखई य सामिय संधिबल, बंधवसिउ म विमासि ॥ ११९ ठवणि १०. तउ कोपिहिं कलकलीउ काल के...य कालानल, कंकोरइ कोरंबीयउ करमाल महाबल । काहल कलयलि कलगलंत मउडाधा मिलीया, कलह तणइ कारणि कराल कोपिहिं परजलीया ॥ हऊउ कोलाहल गहगहाटि गयणंगणि गजिय, संचरिया सामंत सुहड सामहणीय सज्जीय । १२० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२१ अंक १] भरतेश्वर-बाहुबली यस [११ गडयडंत गय गडीय गेलि गिरिवर सिर ढालई, गूगलीया गुलणइ चलंत करिय ऊलालई ।। जुडइं मिडई भडहडई खेदि खडखडई खडाखडि, घाणीय घूणीय धोसवई दंतूसलि दोत[तडा]डि । खुरतलि खोणि खणंति खेदि तेजीय तरवरिया, समइं घसई धसमसइं सादि पय सई पापरिया ॥ १२२ कंधग्गल केकाण कवी करडई कडीयाली, रणणई रवि रण वखर सखर घण घाघरीयाला । सींचाणा वरि सरई फिरई सेलई फोकारई, उडई आडई अंगि रंगि असवार विचारई ॥ धसि धामइं धडहडइं धरणि रथि सारथि गाढा । जडीय जोध जडजोड जरद सनाहि सनाढा । पसरिय पायल पूर कि पुण रलीया रयणार । लोह लहर वरवीर वयर वहवटिइं अवायर ॥ रणणीय रवि रण तूर तार त्रंबक त्रत्रहीया, ढाक ढुक ढम ढमीय ढोल राउत रहरहीया । नेच नीसाण निनादि नींझरण निरंभीय, रणभेरी भुंकारि भारि भूयबलिहिं वियंमीय ।। चल चमाल करिमाल कुंत कडतल कोदंड, झलकई साबल सबल सेल हल मसल पयंड । सीगिणि गुण टंकार सहित बाणावलि ताण, परशु उलालई करि घरई भाला ऊलालई ॥ तीरीय तोमर भिंडमाल डबतर कसबंध, सांगि सकति तरुआरि छुरीय अनु नागतिबंध । हय खर रवि उछलीय खेह छाईय रविमंडल, घर धूजइ कलकलीय कोल कोपिउ काहहुल ॥ टलटलीया गिरिटक टोल खेचर खलभलीया, कडडीय कूरम कंधसंधि सायर झलहलीया । १२४ १२५ १२७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [वर्ष २ १२८ १२९ १२] भारतीय विद्या अनुपूर्ति चल्लीय समहरि सेससीसु सलसलीय न सकइ, कंचणगिरि कंधार भारि कमकमीय कसका ॥ कंपीय किंनर कोडि पडीय हरगण हडहडीया, संकिय सुरवर सम्गि सयल दाणव दडवडीया । अतिप्रलंब लहकई प्रलंब वलविंध चिहुं दिसि, संचरीया सामंत सीस सीकिरिहिं कसाकसि ।। जोईय भरह नरिंद कटक मूंछह वल घल्लई, कुण बाहूबलि जे उ बरव मई सिउं बल बुल्लइ । जइ गिरि कंदरि विचरि वीर पइसंतु न छूटइ, जइ थली जंगलि जाइ किम्हइ तु मरइ अषूटइ ॥ गज साहणि संचरीय महु णर वेढीय पोयणपुर । वाजीय बूंब न बहकीयउ बाहूबलि नरवर । तसु मंतीसरि भरह राउ संभालीउ साचुं, ए अविमांसिउं कीउं काई आज जि तई काचुं ॥ बंधव सिउं नरवीर काइं इम अंतर देषइ, लहु बंधव नीय जीव जेम कहि काइं न लेखइ । तउ मनि चिंतइ राय किसिउं एय कोइ पराठीउ, ओसरी उवनि वीर राउ रहीउ अवाठीउ ॥ गय आगलीया गलगलंत दीजई हय लास, हुइं हसमस..... भरहराय केरा आवास । एकि निरंतर वहई नीर एकि ईंधण आणइं, एक आलसिई परतणुं पांगु आणिउं तृण ताणइं॥ एकि ऊतारा करीय तुरीय तलसारे बांधई, इकि भरडई केकाण खाण इकि चारे रांधई। इकि झीलीय नय नीरि तीरि तेतीय बोलावई, एकि वारू असवार सार साहण वेलावई ॥ एकि आकुलीया तापि तरल तडि चडीय झंपावई, एकि गूडर साबाण सुहड चउरा दिवरावई । ३१ १३२ १३३ १३४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३५ १३५ १३६ १३७ अंक १] भरतेश्वर-बाहुबली रास [१३ सारीय सामि स नामि आदिजिण पूज पयासई, कसतूरीय कुंकुम कपूरि चंदनि वनवासई ॥ पूज करीउ चक्ररयण राउ बइठउ भू जाई, वाजीय संख असंख राउ आव्या सवि धाई। मंडलवइ मउडुध मु(सु?)हड जीमई सामंतह, सई हत्थि दियइ तंबोल कणय कंकण झलकंतह ।। वस्तु-दूत चलीउ, दूत चलीउ, बाहुबलि पासि; भणइ भूर नरवर निसुणि, भरह राउ पयसेव कीजइ। भारिहिं भीम न कवणि रणि, एउ भिडंत भूय भारि भजइ । जइ नवि मूरष एह तणी, सिरवरि आण वहेसि । सिउं परिकरिइं समर भरि, सहूइ सयरि सहेसि ॥ राउ बुल्लइ, राउ बुल्लइ, सुणि न सुणि दूत; ताय पाय पणमंतय, मुझ बंधव अति खरउ लज्जइ । तु भरहेसर तसतणीय, कहि न कीम अम्हि सेव किजइ । भारिइं भूयबलि जु न भिडउं, भुज भंजु भडिवाउ । तउ लजइ तिहूयण धणी, सिरि रिसहेसर ताउ ।। ठवणि ११. चलीय दूत भरहेसरहं तेय वात जणावइ, कोपानलि परजलीय वीर साहण पलणावइ । लागी य लागि निनादि वादि आरति असवार, बाहूबलि रणि रहिउ रोसि मांडिउ तिणि वार । ऊड कंडोरण रणंत सर बेसर फूटइं, अंतरालि आवइंई याण तीहं अंत अखूटई। राउत-राउति योध-योधि पायक-पायक्किहिं, रहवर-रहवरि वीर-वीरि नायक-नायक्किई । वेढिक विढई विरामि सामि नामिहिं नरनरीया, मारइं मुरडीय मूंछ मेच्छ मनि मच्छर भरीया । ससई हसइं धसमसई वीरघड वड नरि नाचई, राषसरी रा रव करंति रुहिरे सवि राचई ॥ १३८ १३९ १४० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ वर्ष २ १४] भारतीय विद्या - अनुपूर्ति छ चांपीय चुरई नरकरोडि भूयबलि भय भिरडई, विण हथीयार कि वार एक दांतिहिं दल करडई । चालई चालि चम्माल चाल करमाल ति ताकइं, पडइं चिंध झूझई कबंध सिरि समहरि हाकई ॥ रुहिर रल्लि तहिं तरइं तुरंग गय गुडीय अमूंझइ, राउत रण रसि रहित बुद्धि समरंगणि सूझई । पहिलइ दिणि इम झूझ हर्बु सेनह मुखमंडण, संध्या समइ ति वारणुं ए करई भट बिहुँ रण ॥ १४२ १४३ १४३ ठवणि १२. हिवं सरस्वती धउल तउ तहिं बीजए दिणि सुविहाणि, ऊठीउ एक जि अनलवेगो, सडवड समहरे वरसए बाणि, छयल सुत छलीयए छावडु ए । अरीयण अंगमइ अंगोअंगि, राउतो रामति रणि रमई ए, लडसड लाडउ चडीय चउरंगि, आरेयणि सयंवर वरई ए॥ १४४ त्रूटक-वर वरई सयंवर वीर, आरेणि साहस धीर । मंडलीय मिलिया जान, हय हीस मंगल गान । हय हीस मंगल गानि गाजीय, गयण गिरि गुह गुमगुमई, धमधमीय धरयल ससीय न सकइ, सेस कुलगिरि कमकमई। धसधसीय धायई धारधा वलि, धीर वीर विहंडए, सामंत समहरि, समु न लहई, मंडलीक न मंडए । १४५ धउल-मंडए माथए महीयलि राउ, गाढिम गय घड टोलवए, पिडि पर परबत प्राय, भडधड नरवए नाचवइ ए। काल कंकोलए करि करमाल, झाझए झूझिहिं झलहलइए, भांजए भड घड जिम जम जाल, पंचायण गिरि गडयडए ॥ १४६ त्रूटक-गडयडई गजदलि सीहु, आरेणि अकल अबीह । . धसमसीय हयदल धाई, भडहडई भय भडिवाइ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक १] भरतेश्वर-बाहुबली रास [१५ भडहडइं भय भडवाइ भुयबलि, भरीय हुइ जिम भीभरी, तहिं चंद्रचूडह पुत्र परबलि, अपिउ नरवइ नर नरतरी । वसमतीय नंदण वीर विस, सेल सर म दिखाडए, रह रहु रे हणि हणि......भणंतू, अपड पायक पाडए ॥ १४७ धउल-पाडीय सुखेय सेणावए दंत, पूंठिहिं निहणीय रणरणीय, सूर कुमारह राउ पेखंत, भिरडए भूयदंड बेउ......। नयणिहिं निरषीय कुपीयउ राउ, चक्करयण तउ संभरइए, मेल्हइए तेह प्रति अति सकसाउ, अनलवेगो तहिं चिंतवइ ए ॥ १४८ Jटक-चिंतवईय सुहडह राउ, जो अई उषूटउं आउ । हिव मरण एह जि सीम, रंजईअ चक्रवृत्ति जीम ॥ रंजवईय चक्रवृत्ति जीम इम, भणि चकु मुहिहिं षडषली, संचरिउ सूरउ सूरमंडलि, चकु पुहचइ तहिं वली । षडषडीउ नंदण चंद्रचूडह, चंद्रमंडल मोहए, झलहलीय झालि झमालि तुहिहिं, चक्क तहिं तहिं रोहए ॥ १४९ धउल-रोहीउ राउत जाइ पातालि, विजाहर विजाबलिहिं, चक्क पहूचए पूठि तीणि तालि, बोलए बलवीय सहसजखो । रे रे रहि रहि कुपीउ राउ, जित्थु जाइसि तित्थु मारिखु ए, तिहूयणि कोइ न अछइ अपाय, जय जोषिम जीणइ जीवीइ ए ॥१५० Jटक-जीविवा छंडीय मोह, मनि मरणि मेल्हीय थोह, समरीय तु तीणि ठामि, इकु आदि जिणवर सामि । [इकु आदि जिणवर सामिा] समरीय, वजपंजर अणसरइ, नरनरीउ पालि फिरीउ तस सिरु, चक्क लेई संचरइ । पयकमल पुज्जइ भरह भूपति, बाहुबलि बल खलभलइ, चक्रपाणि चमकीय चीति कलयलि, कलह कारणि किलगिलह ॥ १५१ * मूळ प्रतिमा अहिं लखनारना हाये आ पादनो ए पूर्व अर्ध भाग लखतां छूटी गयो छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६] भारतीय विद्या अनुपूर्ति [वर्ष २ धउल-कलगिलइ चक्रधर सेन संग्रामि, बोलए कवण सु बाहुबले, तउ पोयणपुर केरउ सामि, बरवहं दीसए दस गणु ए । कवण सो चक्क रे कवण सो जाख, कवण सु कहीइ ए भरह राउ । सेन संहारीय सोधउं साष, आज मल्हावर्ड रिसहवंसो॥ १५२ ठवणि १३. हिवं चउपई चंद्रचूड विज्जाहर राउ, तिणि वातई मनि विहीय विसाउ । हा कुलमंडण हा कुलवीर, हा समरंगणि साहसधीर ॥ १५३ कहीइ कहि नई किसिउं घj, कुल न लजावित्रं तइं आपणउं । तइं पुण भरह भलाविउ आप, भलु भणाविउ तिहूयणि बापु ॥१५४ सु जि बोलइ बाहूबलि पासि, देव म दोहिलुईं हीइ विमांसि । कहि कुण ऊपरि कीजइ रोसु, एह जि दैवहं दीजइ दोसु ॥ १५५ सामीय विसमु करम विपाउ, कोइ न छूटइ रंक न राउ । कोइ न भांजइ लिहिया लीह, पामइ अधिक न ओछा दीह ॥१५६ भंजउ भूयबलि भरह नरिंद, मई सिउं रणि न रहइ सुरिंद । इम भणि बरवीय बावन वीर, सेलइ समहरि साहस धीर ॥ १५७ धसमस धीर धसई धडहडई, गाजइ गजदलि गिरि गडयडइं। जसु भुइ भडहड हडइ भडक, दल दडवडइ जि चंड चडक ॥ १५८ मारइ दारइ खल दल खणइ, हेड हणोहणि हयदल हणइ, अनलवेग कुण कुखई अछइ, इम पचारीय पाडइ पछइ॥ १५९ नरु निरुवइ नरनरइ निनादि, वीर विणासइ वादि विवादि । तिनि मास एकल्लउ भिडइ, तउ पुण पूरसं चक्कह चडइ ॥ १६० चऊद् कोडि विद्याधर सामि, तउ झूरइ रतनारी नामि । दल दंदोलि दउढ वरीस, तउ चक्किइं तसु छेदीय सीस ॥ १६१ रतनचूड विद्याधर धसइ, गंजइ गयघड हीयडइ हसइ । पवनजय भड भरहु नरिंद, सु जि संहारीय हसई सुरिंद ॥ १६२ बाहुलीक भरहेसरतणु, भड भांजणीय भिडीउ घणु । सुरसारी बाहूबलिजाउ, भडिउ तेण तहिं फेडीय ठाउ ॥१६३ अमितकेत विद्याधर सार, जस पामीइ न पौरुष पार । चल्लीउ चक्रधर वाजइ अंगि, चूरिउ चक्रिहिं चडिउ चउरंगि॥ १६४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक १] भरतेश्वर-बाहुबली रास [१७ समरबंध अनइ वीरह वंध, मिलीउ समहरि बिहुँ सिउं बंध । सात मास रहीया रणि वेउ, गई गहगहीया अपछरा लेउ ॥ १६५ सिरताली दुरीताली नामि, भिडई महाभड बेउ संग्रामि । आव्या बरवहं बाथोबाथि, परभवि पुहता सरसा साथि ॥ १६६ महेन्द्रचूड रथचूड नरिंद, झूझई हडहड हसइं सुरिंद । हाकई ताकइंतुलपइंतुलई, आठि मासि जई जिमपुरि मिलई ॥ १६७ दंड लेई घसीउ युरदादि, भरतपूत नरनरइ निनादि । गंजीउ बलि बाहूवलितणउ, वंस मल्हाविउ तीणि आपणु ॥ १६८ सिंहरथ ऊठीउ हाकंत, अमितगति झंपिउ आवंत ।। तिनि मास धड धूजिउ जास, भरह राउ मनि वसिउ वासु ॥ १६९ अमिततेज प्रतपइ तहिं तेजिं, सिउं सारंगिई मिलिउ हेजि । धाइं धीर हणई बे बाणि, एक मासि नीवड्या नीयाणि ॥ १७० कुंडरीक भरहेसरजाउ, जस भड भडत न पाछउ पाउ । द्रठडीय दलि बाहूबलि राय, तउ पयपंकइ प्रणमीय ताय ॥ १७७ सूरिजसोम समर हाकंत, मिलिया तालि तोमर ताकत । पांच वरिस भर भेलीय घाइ, नीय नीय ठामि लिवारिआराइ॥१७२ इकि चूरई इकि चंपई पाय, एकि डारइं एकि मारई धाइ । झलझलंत झूझइ सेयंस, धनु धनु रिसहेसर, वंस ॥ सकमारी भरहेसरजाउ, रण रसि रोपइ पहिलउ पाउ । गिणइ न गांठइ गजदल हणइ, रणरसि धीर धणावइ धणइ ॥ १७४ वीस कोडि विद्याधर मिली, ऊठिउ सुगति नाम किलिगिली । सिवनंदनि सिउं मिलीउ तालि, बासठि दिवसि बिहुँ जम जालि॥१७५ कोपि चडिउ चलिउ चक्रपाणि, मारचं वयरी बाणविनाणि । मंडी रहिउ बाहुबलि राउ, भंजउं भणइ भरह भडिवाउ ॥ १७६ बिहुँ दलि वाजी रणि काहली, खलदल खोणि खे खलभली । धूजई घसकीय धड थरहरई, वीर वीर सि सयंवर वरइं॥ १७७ उडीय खेह न सूझइ सूर, नवि जाणीइ सवार असूर । पडई सुहड धड धायई धसी, हणई हणोहणि हाकई हसी ॥ १७८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८] भारतीय विद्या अनुपूर्ति [वर्ष २ गडयड गयघड ढींचा ढलइं, सूना समा तुरंग मल तुलई। वाजई धणुही तणा धोंकार, भाजई भिडत नभेडीगार ॥ १७९ वहई रुहिर नइ सिरवर तरई, रीरी या टरणि राषस करई । हयदल हाकइ भरह नरिंद, तु साहसु लहइ सम्गि सुरिंद ॥ १८० भरहजाउ सरभु संग्रामि, गांजइ गजदल आगलि सामि । तेर दिवस भड पडीउ घाइ, धूणी सीस बाहूबलि राइ ॥ १८१ तीह प्रति जंपइ सुरवर सार, देषी एवडु भडसंहार । काइ मरावउ तम्हि इम जीव, पडसिउ नरकि करंता रीव ।। १८२ गज उतारीय बंधव बेउ, मानिउं वयण सुरिंदह तेउ । पइसई मालाखाडइ वीर, गिरिवरं पाहिइं सबल सरीर ॥ १८३ वचनझुझि भड भरहु न जिणइ, दृष्टिझूझि हारिउं कुण अ णइ। दंडिझूझि झड झंपीय पडइ, बाहु पासि पडिउ तडफडइ ॥ १८४ गूडासमु धरणि मझारि, गिउ बाहूबलि मुष्टिप्रहारि । भरह सबल तई तीण घाइ, कंठसमाणउ भूमिहिं जाइ ।। १८५ कुपीउ भरह छ खंडह धणी, चक्र पठावइ भाई भणी । पाखलि फिरी सु वलीउं जाम, करि बाहूबलि धरि ताम ॥ १८६ बोलइ बाहुबलि बलवंत, लोहखंडि तउं गरवीउ हंत । चक्रसरीसउ चूनउ करउं, सयलहं गोत्रह कुल संहरउं ॥ १८७ तु भरहेसर चिंतइ चींति, मई पुण लोपीय भाईय भीति ।। जाणउं चक्र न गोत्री हणइ, माम महारी हिव कुण गिणइ॥ १८८ तु बोलइ बाहूबलि राय(उ), भाईय मनि म म धरसि विसाउ । तई जीत मई हारिलं भाइ, अम्ह शरण रिसहेसर पाय ॥ १८९ ठवणि १४. तउ तिहिं ए चिंतइ राउ, चडिउ संवेगिई बाहुबले । दूहविउ ए मई वडु भाय, अविमांसिइं अविवेकवंति ॥ १९० धिग धिग ए एय संसार, घिग धिग राणिम राजरिद्धि । एवडु ए जीवसंहार, कीधउ कुण विरोधवसि ॥ १९१ कीजइ ए कहि कुण काजि, जउ पुण बंधव आवरई ए । काज न ए ईणइं राजि, घरि पुरि नयरि न मंदिरिहि ॥ १९२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक १] भरतेश्वर-बाहुवली रास [१९ सिरिवरि ए लोच करेइ, कासगि रहीउ बाहुबले ।। भंसूर ए अंखि भरेउ, तस पय पणमए भरह भडो॥ १९३ बांधव ए कांइ न बोल, ए अविमांसि मई की ए। मेल्हिम ए भाई निटोल, ईणि भवि हुं हिव एकलु ए ॥ १९४ कीजई ए आजु पसाउ, छडि न छंडि न छयल छलो । हीयडइ ए म धरि विसाउ, भाई य अम्हे विरांसीया ए ॥ १९५ मानई ए नवि मुनिराउ, मौन न मेल्हइ मन्नवीय । मुक्कई ए नहु नीय माण, वरस दिवस निरसण रहीय ॥ १९६ बंभीउ ए सुंदरि बेउ, आवीय बंधव बूझवई ए। ऊतरि ए माणगयंद, तु केवलिसिरि अणसरइ ए॥ २९७ ऊप, ए केवल नाण, तु विहरइ रिसहेस सिउं । आवीउ ए भरह नरिंद, सिर परगहि अवझापुरी ए॥ २९८ हरिषीया ए हीइ सुरिंद, आपण पई उच्छव करई ए । वाजई ए ताल कंसाल, पडह पखाउज गमगमई ए॥ आवई ए आयुधसाल, चक्क रयण तउ रंगभरे। संख न ए जस केकाण, गयघड रहवर राणिमहं॥ २०० दस दिसि ए वरतई आण, भड भरहेसर गहगहइ ए। रायह ए गच्छ सिणगार, वयरसेण सूरि पाटधरो ॥ २०१ गुणगणहं ए तणु भंडार, सालिभद्र सूरि जाणीइ ए । कीधउं ए तीणि चरितु, भरहनरेसर राउ छंदि ए॥ २०२ . जो पढइ ए वसह वदीत, सो नरो नितु नव निहि लहइ ए । संवत ए बार" कएतालि" फागुण पंचमिई एउ कीउ ए ॥ २०३ २९९ ॥ इति भरतेश्वर-बाहूबलि रास श्रीसालिभद्रसूरिकृतसमाप्तः ॥ ॥श्लोक संख्या ३४० ॥ छ । विमलमतिगणिविलोकनाय ॥ कल्याणं भूयाश्चिरं नन्दतु यावश्चन्द्र-रवी॥ * * Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शालिभद्रसूरिकृत बु द्धि रा स पणमवि देवि अंबाई, पंचाइण गामिणी । समरवि देवि सीधाई, जिण सासण सामिणि ॥ १ पणमिउ गणहरु गोयम स्वामि, दुरिउ पणासइ जेहनइ नामिछ। सुहगुरु वयणे संग्रह कीजई, भोलां लोक सीषामण दीजइ ॥ २ केई बोल जि लोकप्रसिद्धा, गुरुउवएसिई केई लीद्धा । ते उपदेश सुणउ सवि रूडा, कुणहइ आल म देयो कूडा ॥ ३ जाणीउ धरमु म जीव विणासु, अणजाणिइ घरि म करिसि वासु । चोरीकारु चडइ अणलीधी, वस्तु सु किमइ म लेसि अदीधी ।। ४ परि घरि गोठि किमइ म जाइसि, कूडउ आलु तुं मुहियां पामिसि । जे घरि हुइ एकली नारि, किमई म जाइसि तेह घरबारि ॥ ५ घरपच्छोकडि राषे छीडी, वरजे नारि जि बाहिरि हीडी। परस्त्री बहिनि भणीनइ माने, परस्त्री वयण म धरजे काने ॥ ६ मइ एकलउ मारगि जाए, अणजाणिउ फल किमई म पाए । जिमतां माणस द्रेठी म देजे, अकहिं परि घरि किंपि म लेजे ॥ ७ वडां ऊतर किमइं न दीजई, सीष देयंतां रोस न कीजई। ओछइ वासि म वसिजे कीमई, धरमहीणु भव जासिइ ईमइ ॥८ छोरू वीटी ज हुइ नारि, तउ सीषामण देजे सारी । अति अंधारइ नइ आगासई, डाहउ कोइ न जिमवा बइसई ॥ ९ सीषि म पिसुनपणु अनु चाडी, वचनि म दूमिसि तू निय माडी। मरम पीयारु प्रगट न कीजइ, अधिक लेइ नवि ऊर्छ दीजइ ॥१० विसहरु जातु पाय म चांपे, आविइ मरणि म हीयडइ कांपे।। ग्रहणा पाषइं व्याजि म देजे, अणपूछिइ घरि नीर म पीजे ॥ ११ कहिसि म कुणहनीय घरि गूझो, मोटां सिर म मांडिसि झूजो। अणविमास्यां म करिसि काज, तं न करेवं जिणि हुई लाज ॥ १२ जणि वारितउ गामि म जाए, तं बोले जं पुण निरवाहे । षातु काइ हीडि म मागे, पाछिम राति बहिल जागे ॥ १३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुद्धि रास [२१ हियडइ समरि न कुल आचारो, गणि न असार एह संसारो । पांचे आंगुलि जं धन दीजई, परभवि तेहतणुं फलु लीजइ ॥ १४ ठवणि १. मरम म बोलिसि वीरु, कुणहइ केरउ कुतिगिहिं । जलनिहि जिम गंभीरु, पुहविइ पुरुप प्रसंसीइ ए ॥ उछिनु धनु लेउ, त्यागि भोगि जे वीद्रवइ ए । पवहणि तडि पगु देउ, जाणे सो साइरि पडइ ए । एक कन्हइ लिइ व्याजि, वीजाह्रइं व्याजि दीयए।। सो नर जीविय काजि, विस वह्नि वन संचरइ ए' ॥ उडइ जलि म न पइसि, अधिक म बोलिसि सुयणस्युं । सुनइ घरि म न पइसि, चउहटइ म विढिसि नारिस्युं ॥ बोल विच्यारिय बोलि, अविचारीय घांघल पडइ ए। मूरष मरइ निटोल, जे धण जौवण वाउला ए ॥ बल ऊपहरऊ कोपु, बल ऊपहरी वेढि पुण । म करिसि थापणि लोप, कूडओ किमइ म विवहरसे ।। २० म करिस जूयारी मित्र, म करिसि कलि धन सांपडए । घणुं लडावि म पुत्र, कलह म करिजे सुयण सिंउं तु ।। धनु ऊपजत देषि, बाप तणी निंदा म करे । म गमु जन्मु अलेषि, धरम विहूणा धामीयहं । कंठ विहूणुं गानु, गुरु विहूणउ पाढ पुण । गरथ विहू' अभिमान, ए त्रिहूई असुहामणा ए ॥ र ठवणि २. हास म करिसि कंठई कूया, गरथि मूढ म खेलि जूया, ___ म भरिसि कूडी साषि किहई ॥ २४ गांठि सारि विणज चलावे, तं आरंभी जं निरवाहे। निय नारी संतोष करे ॥ २५ मोटइ सरिसुं वयर न कीजई, वडां माणस वितउ न दीजइ । बइसि म गोठि फलहणीया' ॥ २६ १ वीजी प्रतिमां 'विसनेलि विष संहरइ ए' आवो पाठ छ । २ पाठान्तर- 'जु हियह सुहाए'। ३ पा० 'चउवटए'। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२] भारतीय विद्या अनुपूर्ति [वर्ष २ गुरुयां उपरि रीस न कीजइ,' सीष पूछतां कुसीष म देजे। . विणउ करंतां दोस नवि ॥ २७ म करिसि संगति वेशासरसी, धण कण कूड करी साहरसी । मित्री नीचिइ सि म करे ॥ २८ थोडामाहि थोडेरुं देजे, वेला लाधी कृपणु म होजे । गरव म करीजे गरथतणुं ॥ व्याधि शत्रु ऊठतां वारउ, पाय ऊपरि कोइ म पचारु । ___ सतु म छेडिसि दुहि पडीउ ॥ ३० अजाण्यारहि पद म थाए, साजुण पीड्यां वाहर धाए । मंत्र म पूछिसि स्त्री कन्हए ॥ ३१ अजाणि कुलि म करि वीवाहो, पाछइ होसिई हीयडइ दाहो। ____ कन्या गरथिइ म वीकणसे ॥ ३२ देिव म भेटिसि ठालइ हाथि, अणउलषीतां म जाइसि साथिई । गूझ म कहिजे महिलीयह ॥ ३३ पिरहुणइं आव्यइ आदर कीजई, जूनुं ढोर न कापड लीजई। हूतइ हाथ न खांचीइए ॥ ३४ गाढई घाई ढोर म मारउ, मातइ कलहि म पइसि निवारु ।। पर घरि मा जिमसि जा सकूया ॥ ३५ भगति म चूकीसि बापह मायी, जूठउ चपल म छंडिसि भाई। गुरवु म करि गुरु सुहासिणी य ॥ ३६ नीपनई धानि म जाइसि भूषिउ, गांठि गरथि म जीविसि लूषउं । मोटां पातक परहरउ ए ॥ ३७ गिउ देशांतरि सूयसि म रातिइ, तिम न करे जिम टल पांतिई। तृष्णा ताणिउ म न वहसे ॥ ३८ धणि फीटई विवसाई लागे, आंचल उडी म साजण मागे। कुणहइ कोइ न ऊधरीउ॥ १ पाठान्तर-'गरुआसिउं अभिमान न कीजउ' । + आ कडीओ बीजी बीजी प्रतोमा आगळ पाछळ लखेली मळे छ, तेम ज वधती ओछी पण मळे छ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक] बुद्धि रास [२३ [जिीवतणुं जीवि राषीजइ, सविहुं नइ उपगार करीजइ । ___सार संसारह एतलु ॥] ४० माणसि करिवा सवि व्यवहारु, पापी घरि म न लेजे आहार । म करिस पूत्र पडीगणुं ए॥ ४१ जइ करिवं तो आगइ म मागिं, गांधीसिउं न करेवउं भागि । मरतां अरथु म लेसि पुण ॥ ४२ उसड म करिसि रोग अजाणिइं, कुणहं गुरथु म लेसि पराणि ।। सिरज्यां पाषइ अरथ नवि ॥ ४३ धरमि पडीगे दुत्थित श्रवण, अनि आवतुं जाणे मरण । माणस धरम करावीइ ए ॥ ४४ इसि परि वइदह पाप न लागई, अनइ जसवाउ भलेरउ जागइ । राषे लोभिई अंतरीउ ॥ ४५ ४६ ५७ ४८ ठवणि ३. हिव श्रावकना नंदनह, बोलेसु केई बोल । ___ अवघड मारगि हीडंतां ए, विणसई धरम नीटोल ॥ तिण पुरि निवसे जिण हवए, देवाला पोसाल । भूष्यां त्रिस्यां गोरूयह, छोरू करि न संभाल ॥ तिहिवार जिण पूज करे, सामायक' बे वार । माय बाप गुरु भक्ति करे, जाणी धरम विचारु ॥ करमबंध हुइ जिण वयणि, ते तसं बोलि म बोलि । अधिके ऊणे मापुले, कुडउं किमइ म तोलि ॥ अधिक म लेसि मापुलइं, उच्छं किमइ म देसि । एकह जीवह कारणिहि, केतां पाप करेसि ।। जिणवर पूठिई म न वससे, म राखे सिवनी देठि । राउलि आगलि म न वससे, बहूअ पाडेसिई वेठि ॥ ४९ 1 केटलीक प्रतोमां आ कही नभी मळती, तेथी क्षेपक लागे छे । १ बीजी प्रतमा 'पडिकमणुं' शब्द छे। २ प्रत्यंतरमा 'काटलेऊ' शब्द छ। ३ प्रत्यंतरमा 'हेठलि' शब्द छे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [वर्ष २ २४] भारतीय विद्या अनुपूर्ति राषे घरि बि' बारणां ए, ऊधत राषे नारि । ईंधणि कातणि जलवहणि, होइ सछंदाचारि ॥ षटकसाल पांचइ तणीय, जयणा भली करावि । आठमि चउदसि पूनीमिहि, धोयणि गारि वरावि ॥ [+ अणगल जल मन वावरू ए, जोउ तेहनउ व्याप। आहेडी मांछी तणूं ए, एक चलुं ते पाप ॥ लोह मीण लष धाहडी य, गली य चरम विचारि । एह सविनूं विवहरण, निश्चउ करीय निवारि ॥ सुइमुहि जेतुं चांपीह ए, जीव अनंता जाणि। कंद मूल सवि परहरु ए, धरम म न करइ हाणि ॥ रयणी भोजन म न करिसि, बहूय जीव सिंहार। सो नर निश्चइ नरयफल, होसिइ पाप प्रमाणि ॥] जांत्र जोत्र ऊषल मुशल, आपि म हल हथीयार । सई हथि आगि न आपीइ ए, नाच गीत घरबारि ॥ पाटा पेढी म न करसे, करसण नइ अधिकारि । न्याई रीतिइं विवहरु ए, श्रावक एह आचार ॥ वाच म घालिसि कुपुरसह, फूटइ मुहि महसेसि । बहुरि म आस पिराईह, बहु ऊधारि म देसि ॥ वइद विलासणि दूइडीय, सुइआणीसु संगु । राषे बहिनर वेटडी य, जिम हुइ शील न भंगु॥ गुरु उपदेसिइ अति घणा ए, कहूं तु लहुं न पार । एह बोल हीयडइ धरीउ, सफल करे संसार । सालिभद्रगुरु संकुलीय, सिविहूं गुर उपदेसि । पढइ गुणइ जे संभलहिं, ताहइ विघ्न टलेसि ॥ ॥ इति बुद्धिरास समाप्तमिति ॥ १ पा. 'बहु'। २ पा० 'तीह सवि टलइ किलेस तु। आ कोष्ठक बच्चे आपेली ४ कडीओ सौथी जूनी प्रतिमां नथी मळती । बीजी बीजी प्रतोमां आ बधी आडी अवळी अने वधती ओछी संख्यामां मळे छ । एमांना वर्णन उपरथी ज जणाय छे के ए पाछळनो थएलो उमेरो छे. मूळ कर्तानी कहेली नथी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ bollers Ath Printed by Ramchandra Yesu Shedge, at the Nirnaya Sagar Press, 26-28, Kolbhat Street, Bombay. Published by Dr. MANILAL PATEL, Director, Bharatiya Vidya Bhavan, Andheri, Bombay. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com