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१०] भारतीय विद्या अनुपूर्ति छ
[वर्ष २ सरवसु सुंपि मनावि न भाई, कहि कुणि कूडी कुमति विलाई । मूंझिम मूरष मरि म गमार, पय पणमीय करि करि न समार॥ ११२ गढ गंजिउ भड भंजिउ प्राणि, तई हिव सारइ प्राण विनाणि । अरे दूत बोली नवि जाण, तुंह आव्या जमह प्राण ॥ ११३ कहि रे भरहेसर कुण कहीइ, मई सिउं रणि सुरि असुरि न रहीइ । जे चक्किइं चक्रवृत्ति विचार, अम्ह नगरि कुंभार अपार ॥ ११४ आपणि गंगातीरि रमंता, धसमस धूंधलि पडीय धमंता। तई ऊलालीय गयणि पडतउ, करुणा करीय वली झालंतउ ॥ ११५ ते परि कांइ गमार वीसार, जु तुडि चडिसि तु जाणिसि सार । जउ मउडुधा मउड ऊतारउ, रुहिरु रिल्लि जु न हय गय तारउं॥११६ जउ न मारलं भरहेसर राउ, तउ लाजइ रिसहेसर ताउ ।
भड भरहेसर जई जणावे, हय गय रह वर वेगि चलावे ॥ ११७ वस्तु-दूत जंपइ, दूत जंपइ, सुणि न मुणि राज;
तेह दिवस परि म न गिणसि, गंगतीरि खिल्लंत जिणि दिणि । चलंतई दल भारि जसु, सेससीस सलसलइ फणिमणि । ईमई याण स मानि रणि, भरहेसर छइ दूरि । आपापू वेढिउं गणे, कालि ऊगंतइं सूरि ।।
११८ __ दूत चल्लिउ, दूत चल्लिउ, कहीय इम जाम; मंतीसरि चिंतविउ, तु पसाउ दूतह दिवारइ । अवर अठाणूं कुमर वर, वाइ सोइ पहतु पचारइ । तेह न मनिउ आविउ, वलि भरहेसरि पासि ।
अखई य सामिय संधिबल, बंधवसिउ म विमासि ॥ ११९ ठवणि १०. तउ कोपिहिं कलकलीउ काल के...य कालानल,
कंकोरइ कोरंबीयउ करमाल महाबल । काहल कलयलि कलगलंत मउडाधा मिलीया, कलह तणइ कारणि कराल कोपिहिं परजलीया ॥ हऊउ कोलाहल गहगहाटि गयणंगणि गजिय, संचरिया सामंत सुहड सामहणीय सज्जीय ।
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