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अंक १] भरतेश्वर वाहुबलि रास-किंचित् प्रास्ताविक [७]
प्रस्तुत रासनी भाषा आदिना खरूपना विषयमा हुँ अहिं विशेष चर्चा करवा नयी इच्छतो। एनी भाषा अने शैलीनुं खरूप, ते समयनी अर्थात् ते सकानी अने तेनी आसपासनी बीजी उपलब्ध कृतिओ-जेवी के, उक्त जंबूखामिरास, तया विजयसेनसूरि कृत रेवंतगिरिरास, अज्ञातनाम कृत आबूगिरिरास आदि - ना जेवी ज छे । छन्दोरचना पण लगभग ए अन्य कृतिओमां मळी आवे छे तेवी ज छ । दोहा, वस्तु अने चउपइ जेवा ते समयना सौथी प्रसिद्ध अने प्रचलित मात्रामेळ छन्दो उपरांत अमुक लढणमां गवाय एवा ढाळवाळा रागना छन्दोनो पण आमां उपयोग थएलो छे, जे छन्दोने कर्ता पोते रासा छन्दो कहे छे । दरेक ठवणि पछी जे छन्दोवाळी पंक्तिओ-कडीओ आवे छे ते जुदा जुदा रागमां गवाय एवां आ रा सा छ न्दो छे ।।
रासगत कथावस्तु जैन साहित्यमां बहु ज सुप्रसिद्ध छे । युगादि पुरुष भगवान् ऋषभदेवना पुत्र नामे भरत अने बाहुबलि-ए बंने वच्चे राजसत्ताना स्वीकारमाटे परस्पर जे विग्रह थयो अने तेनो जे रीते अंत आव्यो तेनुं एमां वर्णन करवामां आव्युं छे । कविनी शैली ओजसू भरी छे अने शब्दोनी झमक पण सारी छे । वीर रसनो वेग वधारे विकसित लागे छे। कथाना प्रसंगो बहु ज संक्षेपयी वर्णववामां आव्या छे तेथी कविने पोतानो काव्यरस खिलववानो अहिं अवकाश ज नथी, एटले एनी काव्यशक्तिनो विशेष विचार करवो अप्राप्त छे। छतां
परह आस किणि कारणि कीजइ, साहस सहवर सिद्धि वरीजइ ।
हीउं अनइ हाथ हत्थीयार, एह जि वीर तणउ परिवार ॥ १०६॥ आवी जे केटलीक हृदयंगम उक्तिओ मळी आवे छे ते उपरथी एनी रसमय वाणीनी कल्पना यत्किचित् थई शके तेम छे ।
बुद्धिरास आ रासनी पछी ६३ कडीनो एक टुंको प्रबंध नामे बुद्धि रा स आपवामां आव्यो छे, जेना कर्ता पण शालिभद्र सूरि ज छे। जो के कर्ताए एमां, जेम 'भरतेश्वर बाहुबलि रास'मां आप्यां छे तेम, पोताना गच्छ अने गुरु आदिनां नाम नथी आप्यां, अने तेथी सर्वथा निश्चितरूपे तो एम न ज कही शकाय के आ रास पण ए ज शालिभद्र सूरिनी कृति छे। कारण के शालिभद्र सूरि नामना एक-बे बीजा पण ग्रंयकारो थई गया छे अने तेमणे पण गुजराती
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