________________
८] भारतीय विद्याअनुपूर्ति
[वर्ष २ अम्ह ओलगनी वाट न जोई, मड भरहेसर विकर न होइ । मझ बंधव नवि फीटइ कीमइ, लोमीया लोक भणइ लख ईम्हाई ॥ ८९
ठवणि ५. चालि म लाइसि वार, बंधव भेटीजइ ।
चूकि म चीति विचार, मूंय वयण सुलीजइ ।। वयण अम्हारं तूय मनि मानि, भरह नरेसर गणि गजदानि । संतूठउ दिइ कंचण भार, गयघड तेजीय तुरल तुषार ॥ ९१ गाम नयर पुर पाटण आपइ, देसाहिव थिर थोभीय थापइ । देय अदेय नं देतु विमासइ, सगपणि कह नवि किंपि विणासइ ॥ १२ जा ण राउ ओलगिउं जाणइ, माणण हार विरोषिई मारइ । प्रतिपन्नउं प्रगट प्रतिपालइ, प्रारथिउ नवि घडी विमरालइ ॥ ९३ विणि सिउं देव न कीजइ ताडउ, सु जि मनाविइ मांड म आडउ । हुं हितकारणि कहुं सुजाण, कूडूं कहूं तु भरहेसर आण ॥ ९४
वस्तु-राउ जंपइ, राउ जंपइ, सुणि न सुणि दूत;
त विहि लहीउ भालहलि, तं जि लोय भवि भविहिं पामइ । ईमइ नीसत नर ति(नि) गुण, उत्तमांग जण जणह नामइ । खंभ पुरंदर सुर असुर, तीहं न लंघइ कोइ । लन्भइ अधिक न ऊण पणि, भरहेसर कुण होइ ॥
९५
ठवणि ६.नेसि निवेसि देसि घरि मंदिरि, जलि थलि जंगलि गिरि गुह कंदरि ।
दिसि दिसि देसि देसि दीपंतरि, लही लाभइ जुगि सचराचरि॥९६ अरिरि दूत सुणि देवन दानव, महिमंडलि मंडल वैमानव । कोइ न लंघइ लहीया लीह, लाभइ अधिक न उछा दीह ॥ ९७ धण कण कंचण नवइ निहाण, गय घड तेजीय तरल केकाण । सिर सरवस सपतंग गमीजइ, तोइ नीसत्त पणइ न नमीजह ॥ ९८
ठवणि ७. दूत भणइ यहु भाई, पुन्निहिं पामीजह ।
पइ लागीजइ भाई, अम्ह कही कीजह ।।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com