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[४] भारतीय विद्या अनु पूर्ति
[ वर्ष २ आम अपूर्ण छतांय ए 'प्राचीनगूर्जरकाव्यसंग्रह'ना प्रकाशनथी, आपणी भाषाना तत्कालीन प्राचीन खरूपनां अध्ययन अने अन्वेषणमां घणी कीमती मदत मळी छे; अने एना अवलोकनथी, आपणी भाषानी विशिष्ट पुरातनता, समुन्नतता अने विकस्वरता विषयक जूनी पेढीमा जे अति अल्पज्ञता छवाएली हती ते दूर थई छ ।
उक्त प्राचीन गूर्जरकाव्यसंग्रहमां मुख्यपणे वि० सं० १४०० सुधीमां रचाएली कृतिओनो संचय करवामां आवेलो छ । एमां सौथी जूनी कृति तरीके जे प्रकट करवामां आवी छे ते महेन्द्रसूरिशिष्य धर्म नामना विद्वाने बनावेल जंबूस्वामिरास छ । सं० १२६६मां ते रासनी रचना पूर्ण थई छे, एम तेनी छेल्ली कडीमां कहेलं छे ।
ते वखतना अवलोकन दरम्यान पाटणना भंडारमा शुद्ध गुजराती भाषानी जूनामां जूनी जे एक स्वतंत्र रचना जोवामां आवी ते ए जंबूस्खामिरासरूप हती अने तेथी भाई श्री दलाले पोताना उक्त साहित्यपरिषद्वाळा निबंधमां ते रासनी नोंध आपतां लख्युं हतुं के 'गूजराती भाषामा अत्यार सुधी मळी आवेला रासोमां आ सौथी जूनो छे' । ___ आजे हुँ जे रास गूर्जर गिरानी गुरुताना उपासकोना हाथमा उपस्थित करूं छु ते उक्त जंबूस्खामिरास करतां२५ वर्ष पूर्वे बनेलो छ । एनीरचना, जेम प्रारंभमां ज जणाव्युं छे तेम, वि० संवत् १२४१मां थएली छे। ठीक ते ज वर्षमां-जे वर्षमा सोमप्रभाचार्य कुमारपालप्रतिबोध नामक प्राकृत महाग्रंथनी (जेमां काईक संस्कृत अने कांईक अपभ्रंशना पण प्रकरणो छे) पाटणमां पूर्णाहुति करी हती । प्रस्तुत रासना कर्ता शालिभद्र सूरि पोताना स्थाननो को निर्देश नथी करता । पण घणा भागे ते पाटण ज होय एम लागे छ ।
गुजरातना अनन्य ज्ञानसूर्य आचार्य हेमचंद्रने खर्गवास थए ते वखते मात्र १०-११ वर्ष ज व्यतीत थयां हतां । तेथी आपणे आ रासने हैमयुगनीज एक कृति तरीके स्वीकारिए तो ते असंगत नथी । अने आ रीते प्रस्तुत रासरूपे आपणने हैमयुगनी चालू गुजराती भाषानो एक खतंत्र अने सुबद्ध प्रबंध मळी आवे छे । एथी कोई अन्य प्राचीनतर कृति उपलब्ध यतां सुधीमां आपणे एने गुजराती भाषाना इतिहासमां सर्व प्रथम स्थान आपq जोईए ।
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