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भंक १] भरतेश्वर बाहुबलि रास- किंचित् प्रास्ताविक [३] भाषाना अभ्यासनी सामग्रीनो सौथी प्राथमिक परिचय मने ते समये थयो, अने त्यारथी में तेनो उत्साह पूर्वक संग्रह आदि करवानो प्रारंभ कर्यो ।
बेत्रण वर्ष पाटणना भंडारोनुं अवलोकन कर्या पछी, उक्त पूज्य मुनिवरोना वात्सल्यपूर्ण सहवासमां ज परिभ्रमण करतां, मारुं वडोदरा आवq थयु । त्यो भाई श्री चिमनलाल दलालना विशिष्ट समागम अने सौहार्दपूर्ण सहकारथी में मारा प्राचीन साहित्यना संशोधन अने संपादन कार्यनो व्यवस्थित उपक्रम आरंभ्यो ।
भाई दलाले पण ए ज समयमा गायकवाडस् ओरिएन्टल सीरीझना संपादन अने प्रकाशननुं काम हाथमां लीधुं । ए सीरीझना प्रारंभ समये ज काव्यमीमांसा, हमीरमदमर्दन, वसंतविलास, मोहराजपराजय, कुमारपाल प्रतिबोध, उदयसुंदरी कथा आदि अनेकविध संस्कृत -प्राकृत ग्रंथो साथे गुजराती भाषाना प्राचीन साहित्यना संग्रहरूपे पण एक ग्रंथ तैयार करवानो विचार थयो । ए विचार अने कार्यमां अमे बने सहयोगी- सहसंपादक हता । एना फळरूपे ए ग्रंथमाळामां प्रसिद्ध थएल ते प्राचीन गूर्जरकाव्यसंग्रह छ । ए संग्रहमा प्रकट थएल सामग्रीमाथी केटलीक मारी मेळवेली हती अने केटलीक भाई दलालनी हती । ए संग्रहमा प्रथम तो मात्र पद्यात्मक कृतिओ ज संग्रहवानी योजना हती, अने तेथी प्रथम पृष्ठ उपरनुं मुख्य नाम पण ए ज वस्तुसूचक राखवामां आव्युं । पण पाछळथी एमां अमुक समय पर्यंतनो गद्य संग्रह पण आपवानो विचार स्फुर्यो अने ते साथे गद्यमय समग्र पृथ्वीचंद्र चरित पण दाखल करवानो निर्णय थयो । अने ए रीते, पाछळथी गद्य पद्य-उभयना संग्रह तरीके एनी संकलना करवामां आवी । ए संग्रह छपातो हतो ते दरम्यान ज-बीजे वर्षे मारु मुंबई अने ते पछी पूना तरफ प्रयाण थयुं । १९१८ना चोमासाना भयंकर इन्फ्लुएंजामा, वडोदरामां भाई चिमनलाल अने पूनामां हुं-बन्ने सारीरीते सपडाया । तेमां भाई चिमनलाल तो ईश्वराज्ञाए, आ लोकयी निर्वेद यई परलोक तरफ चालता पया, अने हुं भ्रमिष्ठ चित्त बनी महिनाओ सुपी निश्चेष्ट थई रह्यो । खैर. भाई दलालनी इच्छा ए प्राचीन गूर्जरकाव्यसंग्रहने बहु ज विस्तृत नोटस् आदि साथे तैयार करवानी हती, अने ए माटे घणी धणी नोंधो अमे तैयार पण करी इती। परंतु तेमना ए अकाल अवसानने लीघे ए कार्य अपूर्ण रह्यु अने गुजराती भाषा अने साहित्यना अभ्यासमां, ए नोंधोथी जे विशिष्ट सामग्री मळवानी आशा हती ते अफळ बनी ।
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