SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २] भारतीय विद्या के अनुपूर्ति छ [वर्ष २ परमतालपुरि केवलनाणुं, तस ऊपन्नू प्रगट प्रमाणूं; जाण हq भरहेसरहं ॥ १२ तिणि दिणि आउधसालहं चक्को, आवीय अरीयण पडीय ध्रसको; भरह विमासइ गहगहीउ ॥ १३ धनु धनु हुं धर मंडलि राउ, आज पढम जिणवर मुझ तार; __ केवल लच्छि अलंकीयउ॥ १४ पहिलं ताय पाय पणमेसो, राजरिद्धि राणिमा फल लेसो; चकरयण तव अणसरचं ॥ १५ वस्तु-चलीय गयवर, चलीय गयवर, गडीय गजंत, हूं पत्तउ रोसभरि, हिणहिणंत हय थट्ट हल्लीय । रह भय भरि टलटलीय मेरु, सेसु मणि मउड खिल्लीय । सिउं मरुदेविहिं संचरीय, कुंजरी चडिउ नरिंद । समोसरणि सुरवरि सहिय, वंदिय पढम जिणंद ॥ पढम जिणवर, पढम जिणवर, पाय पणमेवि, आणंदिहिं उच्छव करीय, चक्करयण वलिवलिय पुज्जइ । गडयडंत गजकेसरीय, गरुय नदि गजमेह गज्जइ । बहिरीय अंबर तूर रवि, वलिउ नीसाणे घाउ । रोमंचिय रिउ रायवरि, सिरि भरहेसर राउ ॥ ठवणि १. प्रहि उगमि पूरवदिसिहि, पहिलउं चालीय चक तु । धूजीय धरयल थरहर ए, चलीय कुलाचल चक तु ॥ पूठि पीया' तउ दियए, भयबलि भरह नरिंद तु । पिडि पंचायण परदलहं, इलियलि अवर सुरिंद तु॥ वज्जीय समहरि संचरीय, सेनापति सामंत तु । मिलीय महाधर मंडलीय, गाढिम गुण गजंत तु ॥ गडयडतु गयवर गुडीय, जंगम जिम गिरिशंग तु ।। सुंड दंड चिर चालवई, वेलई अंगिहिं अंग तु ॥ गंजई फिरि फिरि गिरि सिहरि, भंजई तरुअर डालि तु । अंकस वसि आवई नहीं य, करई अपार अणालि तु॥ १८ २२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034776
Book TitleBharateshwar Bahubali Ras tatha Buddhiras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShalibhadrasuri, Jinvijay
PublisherBharatiya Vidya
Publication Year
Total Pages38
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy