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किंचित् प्रास्ताविक
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भारतीय विद्या भवनना सुयोग्य सूत्र-संचालन नीचे, एना पो
| अभिनव रचाएला भव्य भवनना प्रशस्त प्रांगणमां, शरत्पूर्णिमा जेवा शुभ्रतर अने शुभकर पर्वदिवसे भराता, गुजराती साहित्य परिषद् संमेलनना, १४मा अधिवेशनरूप आनन्दोत्सव प्रसंगे, गूर्जरगिराना गुण-गौरवमां गर्व अनुभत्रनारा सुविज्ञ सज्जनोना करकमलमां, गुजराती भाषानी अद्यावधि अप्रकाशित अने अपरिचित एवी एक सौधी प्राचीन पद्यकृति सादर समर्पित करुं हुं ।
आ कृतिनुं नाम भरतेश्वर बाहुबलि रास छे । एना कर्ता जैन श्वेतांबर संप्रदायना राजगच्छ नामना आम्नायमां थरला शालिभद्र सूरि छे । आनो रचना समय विक्रम संवत् १२४१, ना फाल्गुन मासनी पंचमी तिथि छे ।
आपणने गुजराती भाषाना पुरातन साहित्यना विशाल संग्रहनी वास्तविक अने विश्वस्त ओळखाण तथा भाळ आपवानुं प्रथम मान सद्गत विद्वान् चीमनलाल डाह्याभाई दलाल एम्. ए. ने प्राप्त थाय छे । इ. स. १९१४नी अन्तमां, वडोद-राना साहित्यविलासी सद्गत श्रीसयाजीराव महाराजनी आज्ञाथी, मने पाटणना जैन भंडारोनुं व्यवस्थितरीते निरीक्षण करवानो परम सुयोग प्राप्त थयो; अने तेमां, पाटणना भंडारोना अग्र उद्धारक पूज्यपाद प्रवर्तक मुनिवर श्रीकांतिविजयजी महाराज तथा तेमना अनन्य सहायक अने शास्त्रसुरक्षक स्वर्गस्थ शिष्यवर श्रीमुनि चतुरविजयजी महाराजनी विशिष्ट सहानुभूति भरेली इष्ट सहायता थी, तेमनुं ए निरीक्षणकार्य बहु ज सुंदररीते सफळ थयुं । तेमणे ए भंडारोमां छुपाएली विशाळ साहित्य संपत्तिनी सारा प्रमाणमां व्यवस्थित नोंध करी; अने ते उपरथी, सन् १९१५मां भराएली पांचमी गुजराती साहित्य परिषद् वास्ते एक विस्तृत निबंध तैयार कर्यो, जेमां 'पाटणना भंडारो अने खास करीने तेमां रहेलुं अपभ्रंश तथा प्राचीन गुजराती साहित्य' ए विषय उपर गूर्जर साक्षरोने बहु ज विगतपूर्ण अने अभिनव प्रकाश आप्यो ।
ए पहेलां, आपणी जूनी पेढीना बुजर्ग विद्वानो, गुजराती भाषाना आदि कवि तरीके नरसी महेताने ओळखता अने 'मुग्धावबोध औक्तिक' मां मळी आवतां गुजराती वाक्योने गुजराती भाषाना आदि गद्य तरीके उल्लेखता ।
घणुं करीने, ख० मनःसुख कीरतचंद महेता अने मनःसुखलाल खजी भाई महेताए, जैन साहित्यना कांईक सविशेष अवलोकनथी, पुराकालीन जैन (1)
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