Book Title: Bharateshwar Bahubali Ras tatha Buddhiras
Author(s): Shalibhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya
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६] भारतीय विद्या अनुपूर्ति
पोयणपुर दीसंति, दूत सुवेग सु गहगहीउ । व्यवहारीया वसंति, धणि कणि कंचणि मणि पवरो॥ धरणि तरणि ताडंक, जेम तुंग त्रिगढुं लहइ ए । एह कि अभिनव लंक, सिरि कोसीसां कणयमय । पोढा पोलि पगार, पाडा पार न पामीइं ए । संख न सीहदूंयार, दीसई देउल दह दिसिइं ॥ पेखवि पुरह प्रवेसु, दूत पहूतउ रायहरे । सिउं प्रतिहार प्रवेसु, पामीय नरवर पय नमइ ए॥ चउकीय माणिक थंभ, माहि बईठउ बाहुबले । रूपिहिं जिसीय रंभ, चमरहारि चालई चमर ।। मंडीय मणिमइ दंड, मेघाडंबर सिरि धरिय । जस पयडे भूयुदंडि, जयवंती जयसिरि वसई ए॥ जिम उदयाचलि सूर, तिम सिरि सोहइ मणिमुकुटो। कसतुरीय कुसुम कपूर, कुचूंबरि महमहइ ए॥ झलकइ ए कुंडल कानि, रवि शशि मंडीय किरि अवर । गंगाजल गजदानि, गाढिम गुण गज गुडअडइं ए॥ उरवरि मोतीय हार, वीरवलय करि झलहलइ ए। तवल अंगि सिणगार, खलक ए टोडर वाम[इ] ए ॥ पहिरणि जादर चीर, कंकोलइ करिमाल करे । गुरूउ गुणि गंभीर, दीठउ अवर कि चक्कधर ॥ रंजिउ चित्ति सु दूत, देषीय राणिम तसु तणीय । धन रिसहेरपूत, जयवंतु जुगि बाहुबले ॥ बाहुबलि पूछेइ कुवण, काजि तुम्हि आवीया ए। दूत भणइ निज काजि, भरहेसरि अम्हि पाठव्या ए॥
वस्तु-राउ जंपइ, राउ जंपइ, सुणि न सुणि दूत;
भरहखंड भूमीसरहं, भरह राउ अम्ह सहोयर । : सवाकोडि कुमरिहिं सहीय, सूरकुमर तहिं अवर नरवर ।
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