Book Title: Bharateshwar Bahubali Ras tatha Buddhiras
Author(s): Shalibhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya

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Page 17
________________ ४] भारतीय विद्या ® अनुपूर्ति [वर्ष २ खर रवि बूंदीय मेहरवि, महियलि मेहंघार तु । उजूआलइ आउध तणई, चालई रायखंघार तु ।। मंडिय मंडलवइ न मुहे, ससि न कवई सामंत तु । राउत राउतवट रहीय, मनि मूंझई मतिवंत तु ॥ कटक न कवणिहिं भर तणुं, भाजइ भेडि भडंत तु। रेलई रयणायर जमले, राणोराणि नमंत तु॥ साठि सहस संवच्छरह, भरहस भरह छ खंड तु । समरंगणि साधइ सधर, वरतइ आण अखंड तु॥ बार वरिस नमि विनमि, भड भिडीय मनावीय आण तु। आवाठी तडि गंग तणइ, पामइ नवह निहाण तु ॥ छत्रीस सहस मउडुध सिलं, चऊद रयण संपत्त तु । आविउ गंगा भोगवीय, एक सहस वरसाउ तु ॥ ठवणि २. तउ तिहिं आउधसाल, आवइ आउधराउ नवि । तिणि खिणि मणि भूपाल, भरह भयह लोलावडओ॥ ४३ बाहिरि बहूय अणालि, अलुआरीय अहनिसि करइए। अति उतपात अकालि, दाणव दल वरि दाषवइ ए॥ ४४ मतिसागर किणि काजि, चक्क त(न) पुरि परवेस करइ । तई जि अम्हारइ राजि, धोरीय धर घरीउ धरहं ॥ देव कि थंभीउ एय, कवणि कि दानव मानविहिं । एउ आखि न मुझ भेउ, वयरीय वार न लाईइ ए॥ बोलइ मंत्रिमयंक, सांभलि सामीय चक्कधरो। अवर नही कोइ वंकु, चकरयण रहवा तणउ ।। संकीय सुरवर सामि, भरहेसर तूंय भूय भवणे । नासई ति सुणीय नामि, दानव मानव कहि कवणि ।। नवि मानई तूंय आण, बाहूबलि बिहुँ बाहुबले । वीरह वयर विनाणु, विसमा विहडई वीरवरो ॥ तीणि कारणि नरदेव, चक न आवइ नीय नयरे । विण बंधव तूंय सेव, सहू कोइ सामीय साचवह ए॥. ५० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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