Book Title: Bharateshwar Bahubali Ras tatha Buddhiras
Author(s): Shalibhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya

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Page 20
________________ अंक १] भरतेश्वर-बाहुबली रास [७ मंति महाधर मंडलिय, अंतेउरि परिवारि । सामंतह सीमाड सह, कहि न कुसल सविवार ॥ दूत पभणइ, दूत पभणइ, बाहुबलि राउ; भरहेसर चक्कघर, कहि न कवणि दूहवणह किजइ । जिहु लहु बंधव तूंय, सरिस गडयडंत गज मीम गजइ । जइ अंधारइ रवि किरण, भड भंजइ वर वीर। तु भरहेसर समर भरि, जिप्पइ माहरी धीर । ठवणि ३. वेगि सुवेग सु बुल्लइ, संभलि बाहूबलि । राउत कोइ तुह तुलइ, ईणिइं अछइ रवितलि ॥ जां तव बंधव भरह नरिंदो, जसु भुई कंपई सग्गि सुरिंदो। जीणई जीतां भरह छ षंड, म्लेच्छ मनाव्या आण अखंड ॥ ८० भडि भडंत न भूयबलि भाजइ, गडयइंतु गढि गाढिम गाजइ । सहस बतीस मउडाघा राय, [य बंधव सवि सेवई पाय ॥ ८१ चऊद रयण घरि नवई निहाण, संख न गयघड जसु केकाण ।। हूंय हवडा पाटह अभिषेको, तूंय नवि आवीय कवण विवेको॥ ८२ विण बंधव सवि संपय ऊणी, जिम विण लवण रसोइ अलूणी । तुम्ह दंसण उतकंठिउ राउ, नितु नितु वाट जोइ तुह भाउ ॥ ८३ वडत सहोयर अनई वड वीर, देव ज प्रणमई साहस धीर । एक सीह अनई पाखरीउ, भरहेसर नई तई परवरीउ ॥ ८४ ठवणि ४. तु बाहूबलि जंपइ, कहि वयण म काचुं। ___ मरहेसर भय कंपइ, जं जग तुं साचुं॥ समरंगणि तिणि सिलं कुण काछइ, जीह बंधव मई सरिसउ पाछइ । जावंत जंबुदीवि वसु आण, वां अम्ह कहीइ कवण ए राण ॥ ८६ जिम जिम सुजि गढ गाढिम गाढउ, हय गय रह वरि फरीय सनादु । तस अरषासण आपइ इंदो, तिम तिम अम्ह मनि परमाणंदो ॥ ८७ जुन आव्या अमिषेकह वार, तु तिणि अम्ह नवि कीधा सार । वरउराउ अम्ह वडउ जि भाई,जहिं भावह विहां मिलिसिउं जाई॥८८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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