Book Title: Bharateshwar Bahubali Ras tatha Buddhiras
Author(s): Shalibhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya
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[८] भारतीय विद्या अनुपूर्ति
[वर्ष २ भाषामां रासा विगेरेनी रचना करेली छे । छतां प्रस्तुत 'बुद्धिरास'नी भाषा अने शैलीनो सूक्ष्म अभ्यास करतां, आ कृति पण ए ज कर्तानी होय एम विशेष संभवित लागे छे ।
ए बुद्धिरासमां प्रथम तो सर्वसाधारण - सामान्य जनताने जीवनमा आचरवा अने विचारवा जेवां केटलांक उत्तम शिक्षासूत्रो-बोध वचनो गुंथ्यां छ; अने छेवटे थोडांक शिक्षावचनो खास श्रावकवर्गने आचरवा अने मनन करवा माटे कह्यां छे । आ बधां बोधवचनो बहु ज ढूंका अने तद्दन सरळ छे । दरेक माणसने कंठे करवा जेवां छे । __ भंडारोना अन्वेषण उपरथी जणाय छे के आ बुद्धिरास, गत ६-७ सैकाओमां खूब ज जनप्रिय थई पड्यो हतो। सेंकडो नर - नारीओ एने कंठस्थ करता अने एनुं निरंतर वाचन - मनन करता । ए कारणथी जूना भंडारोमां ज्यां त्यां एनी अनेकानेक प्रतिओ मळी आवे छे । अने ए रीते ए रासनी प्रचार - अधिकताने लईने, एनी जुदी जुदी प्रतिओमां केटलाक खास पाठभेदो अने भाषानां बहुविध रूपान्तरो थयेलां पण मळी आवे छे । आ साथे जे वाचना मुद्रित करवामां आवी छे ते मने मळेली जूनामां जूनी प्रतिनी छे । आ कृतिनी सैकावार लखाएली एवी घणी य प्रतिओ मळी आवे छे अने तेमां उपर सूचव्या प्रमाणे भाषाना वरूप-भेदो पण खूब ज मळी आवे छे; तेथी एनी एक पर्यालोचनात्मक पाठवाळी आवृत्ति थवी आवश्यक छ । एवी पर्यालोचना परथी आपणने ए जणाशे के कालक्रमे केवी रीते आपणी भाषामां शब्दोना उच्चारणोमां अने वर्णसंयोजनोमां फेरफारो थया छे, विगेरे विगेरे । अत्यारे तो केवळ प्रकाशमां मूकवानी दृष्टिए ज एनी एक यथालिखित पुरातन वाचना अहिं मुद्रित करवामां आवी छे । ईश्वरेच्छा हशे तो यथावसरे ए विषे विशेष प्रयत्न कराशे ।।
प्रस्तुत बुद्धिरासना अनुकरण रूपे, पाछळथी सारशिखामणरास, हितशिक्षारास आदि केटली य नानी मोटी रचनाओ थई छे, जे उपरथी आ रासनी विशिष्टता जणाई आवे छे ।
आशा छ के गुजराती भाषाना अध्यापको अने अभ्यासको आ प्रयत्नने आदर आपी, एर्नु उचित अवलोकन करशे । भारतीय विद्या भवन । आन्ध्रगिरि (अन्धेरी)
-जिन विजय विजयादशमी, सं० १९९७ )
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