Book Title: Bharateshwar Bahubali Ras tatha Buddhiras
Author(s): Shalibhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya
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शालिभद्रसूरिकृत भरतेश्वर-बाहुबली रास (एक प्राचीनतम गूर्जरभाषा - पद्यकृति)
॥ नमोऽर्हयः॥ रिसह जिणेसर पय पणमेवी, सरसति सामिणि मनि समरेवी;
नमवि निरंतर गुरुचलणा ॥ १ भरह नरिंदह तणुं चरिचो, जं जुगी वसहांवलय वदीतो;
बार वरिस बिडं बंघवहं ॥ २ हुं हिव पमणिसु रासह छंदिहिं, तं जनमनहर मन आणदिहिं;
भाविहिं भवीयण संभलेउ ॥ ३ जंबुदीवि उवझाउरि नयरो, धणि कणि कंचणि रयणिहिं पवरो;
__ अवर पवर किरि अमर परो ॥ ४ करह राज तर्हि रिसह जिणेसर, पावतिमिर मयहरण दिणेसर;
तेजि तरणि कर तहिं तपइए ॥ ५ नामि सुनंद सुमंगल देवि, राय रिसहेसर राणी बेवि;
रूवरेहि रति प्रीति जिन ॥ विवि बेटी जनमी सुनंदन, तेह जि तिहूयण मन आनंदन;
भरह सुमंगल देवि वणु ॥ ७ देवि सुनंदन नंदन बाहूबलि, भंजइ भिउड महाभड भूयबलि;
___ अवर कुमर वर वीर धर ॥ ८ पूरव लाख वेणि वेयासी, राजतणी परि पुहवि पयासी;
जुगि जुग मारग दाषीउए । अवमापरि भणेखर थापीय, वक्षशिला बाहुबलि आपीय;
___अवर अपणुं वर नयर ॥ दान दिया जिणवर संवत्सर, विसयविरच बहइ संजमभर;
मुर असुरा नरि-सेवीहए ॥ ११
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