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भूमिका
[ झ भक्तमाल के कई संस्करण, (१) नृत्यलाल शोल, कलकत्ता, (२) पंजाब कानोमिकल प्रेस, लाहौर, (३) चश्म-ए-नूर प्रेस, अमृतसर का भी उल्लेख है। पर ये संस्करण मेरे देखने में नहीं आये। 'हिन्दी पुस्तक साहित्य' के पृष्ठ ५३ में तुलसीराम तथा हरिबख्स मुंशी की भक्तमाल का भी उल्लेख है।
(११) मलूकदास लिखित भक्तमाल टीका-इसका विवरण सन् १९४१ से १९४३ की खोज रिपोर्ट के पृष्ठ १०५३ में छपा है। ना० प्र० सभा, काशी के पुस्तकालय में संवत् १९६२ की लिखी २६० पत्रों की प्रति है। मलूकदास बैष्णवदास के शिष्य थे और छत्रपुर रियासत में रविसागर के निकट रहते थे।
उक्त खोज रिपोर्ट के पृष्ठ १०५२ में भक्तचरितावली ग्रन्थ का विवरण छपा है जिसमें पौराणिक-चरितों का अभाव है । पर महाराजा बदनसिंह, विजयसिंह, शिवराम भट्ट आदि १९वीं शताब्दी के भक्तों का वर्णन भी है। ग्रन्थ खण्डित है। ग्रन्थ की शैली भक्तमाल के समान प्रौढ न होते हुये भी उत्तम बतलाई गई है।
(१२) जानकीप्रसाद की उर्दू टीका-पं० उदयशंकरजी शास्त्री की सूचनानुसार नवलकिशोर प्रेस, लखनऊ से यह छप चुकी है।
(१३) छप्पयों पर फारसी टीका-पं० उदयशंकरजी शास्त्री के कथनानुसार मन्नूलाल पुस्तकालय, गया में इसकी हस्तलिखित प्रति है।
(१४) संस्कृत भक्तमाला-श्री चंद्रदत्त ने नाभादांस की भक्तमाल (एवं टीका) के आधार से संस्कृत-पद्य-बद्ध इस ग्रन्थ को बहुत विस्तार से लिखा है। इसके तीन खण्ड-विष्णु, शिव और शक्ति में से केवल विष्णु खण्ड ही ६,७०० श्लोक परिमित वेंकटेश्वर प्रेस से छपा हुपा हमारे संग्रह में है। श्री बाल गणक कृत और जयपुर नरेश की प्रेरणा से रचित दो अन्य संस्कृत भक्तमाल का उल्लेख वृन्दावन से प्रकाशित भक्तमाल के पृष्ठ ६५७ में है ।।
(१५) भक्ति-रसायनी व्याख्या-श्री रामकृष्णदेव गर्ग को यह आधुनिक व्याख्या वृन्दावन से सन् १९६० में प्रकाशित हुई है। इसमें भक्तमाल व प्रियादास की टीका भी दी गई है। करीब १००० पृष्ठ का यह ग्रन्थ भी विशेष महत्त्व का है। इसके प्रारम्भ में श्री उदयशंकर शास्त्री ने प्रियादास के बाद उनके पौत्र वैष्णवदास रचित 'भक्ति-उर्वशो' टोका का उल्लेख करते हुये वैष्णवदासजी को मथुरा में किसी सरकारी पद पर होना बतलाया है। तीसरी टीका संवत् १८६८ में रोहतक के निवासी
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