Book Title: Bhaktamar Stotra Author(s): Hiralal Jain Publisher: Shastra Swadhya Mala View full book textPage 7
________________ प्रकाशकीय दो शब्द 'भक्तामर स्तोत्र' का असली नाम 'आदिनाथ स्तोत्र' है । इसमें प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ की भक्ति-भाव-पूर्ण स्तुति की गई है। इसके प्रारम्भ में 'भक्तामर' शब्द का प्रयोग होने से इस स्तोत्र का नाम भी 'भक्तामर स्तोत्र' प्रसिद्ध हो गया है। इसके रचयिता श्री मानतुंगाचार्य थे। इसकी रचना राजा भोज और कवि कालिदास के समय में विशेष परिस्थिति में हुई थी। इस विषय की कथा आगे "परिचय" में दी गई है। भक्तामर-महिमा भी दी जारही है। __इस स्तोत्र का दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों जैन परम्पराओं में बहुत महत्व तथा व्यापक प्रचार है। ऐसा माना जाता है कि इसे भक्ति-भावपूर्वक पढ़ने से सब प्रकार के विघ्न तथा बाधायें दूर होती हैं, मनवाञ्छित कार्य सिद्ध होते हैं तथा जीवन सुखशान्ति-मय बनता है। __इस स्तोत्र में आचार्य मानतुंग स्वामी ने एकाग्र मन से भक्तिविभोर होकर जिस तन्मयता से भगवान आदिनाथ की स्तुति की है उससे इसके प्रत्येक शब्द में एक चमत्कार उत्पन्न हो गया है। यहाँ तक कि आगे चलकर इसके प्रत्येक श्लोक का मंत्र के रूप में प्रयोग होने लगा और इसके पढ़ने का अधिकाधिक प्रचार हुआ। अब सस्कृत भाषा का प्रचार कम हो जाने से आज का युग यह नहीं जानता कि इसमें कौनसा अमृत भरा है। पर इसको पढ़कर जैन और जैनेतर सभी ज्ञानीजन प्रभावित और मुग्ध हो जाते हैं। उसके फलस्वरूप अनेक कवियों ने अपनी भाषाओं में इसका भावपूर्ण छन्दोबद्ध अनुवाद भी किया है। इसमें अन्य अनुवादों के साथ सुप्रसिद्ध विद्वान् पं० गिरिधर शर्मा कृत हिन्दी अनुवाद भी दिया गया है। अन्य अनेक भाषाओं में भी भक्तामर स्तोत्र के अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं।Page Navigation
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