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उपशम क्षयोपशमने क्षायिक भावयोः रंगाया जीवो ते माटे राम जो, समता सीता सतीना स्वामी रामजी; नामी पण निश्चयथी जे निर्नाम जो. अभिमान रावणने मारी लावीया, समता सीता सतीने जे निज घेरजो; अनंत सुखडां पाम्या ते श्री रामजी, भोगवता ते मुक्ति सुखनी ल्हेर जो रामराम. ॥ ३ ॥ पिण्ड सृष्टिकर्ता हर्त्ता श्री रामजी;
नहि ब्रह्मांडता कर्त्ता कहेवाय जो..
पिण्डे वसीने अपिण्ड आतम ओळख्यो; सत्यराम आतम पिण्डे परखाय जो. रामराम ॥ ४ ॥ पिण्डतजीने के रामो सिद्धिया; ash रामो सिद्ध थशे निर्धारजो, रामराम रटनाथी आतम राम थै; पामे भवसागरनो जल्दी पार जो. समज्याविण भूल्या रामनामथी मानवी; शब्दभेदथी करता ताणताण जो, रामनाम लक्ष्यार्थे राम जगावीने;
रामराम ।। ५ ।।
पामो अनुभव रङ्गे सुखनी खाण जो. रामराम ॥६॥
"अप्पा सो परमप्पा" पिण्डे राम छे; अनेकान्त दर्शनथी तेनुं ध्यानजी, बुद्धिसागर रामराम रटना थकी; शुद्ध बुद्ध चेतनजी श्री भगवान जो.
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रामराम. ॥२॥
रामराम. ||७||