Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 02
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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३१८ तुर्या वाचक संज्ञका मुनिवरा प्रेमे नमो क्षेमदा, श्री श्वेतांबर कोन्फरन्स विजये आपो सदा संपदा ॥१॥
जागो जोगी अलख स्वरूपी-ए राग. जिनवर मन्दिरथी शोभितुं, राजनगर जयकारी, तत्र मळी पंचम श्वेतांबर कोन्फरन्स बहु भारी; आजे आनन्द रे मंगलमाला वरती, प्रगटी सुखसागर भरती.
आजे. ॥ १ ॥ श्री जिनशासन जग जयकारी, जैन धर्म बलीहारी; जैनोनी उन्नति अर्थे, सहु कीधी तैयारी, आजे. ॥ २ ॥ धीर वीर विवेकी विचक्षण, श्रावक गुण अधिकारी; रायवहादूर सीतावचन्द्रजी, प्रमुख पदवी धारी. आजे.॥३॥ धार्मिक व्यवहारिक केळवणी, शिक्षण भाषण था. देश काल अनुसरता ठरावो, प्रमुखना वंचाशे. आजे. ॥४॥ कजीया क्लेश ने कुलग्नोने देशवटो देवाशे धर्म शुरातन एक संपता, धर्म स्नेह सचवाशे. आजे. ॥५॥ भेदभाव सहु दूर निवारी, सत्य टेक निरधारी; विजयपताका जग वर्तावो, शाणा नर ने नारी. आजे.॥६|| जापानीझनी पेठे आर्यों, सत्य सुधारा करवा; बुद्धिसागर वीरना भक्तो, पाछा पग नहीं धरवा. आजे. ७
मनमायाना करनारारे-ए राग. शुभ धर्मना पन्थ सुधारीरे, करो सत्य सुधारा विचारी, ए टेक. संघ चतुर्विध उन्नति अर्थे, ज्ञानना ग्रन्थ वधारी; जीर्ण पुस्तक उद्धार करावी, सजो केळवणी शिख सारीरे.
करो० ॥१॥
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