Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 02
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 325
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२० धन्य दीवस ने धन्य घडी आ, बंधु सघम मळीया; सत्य सुधारा करवा माटे, मनना मनोरथ फळीयाः खे० ॥३॥ करजोडी स्मरण करी जिन, प्रथम मंगल उच्चरीए; धर्म टेक ने एक सम्पथी, विजयपताका वरीए. विनय विवेकी सज्जन शुरा, कहेणी रहेणी करशो; बुद्धिसागर जैन श्वेताम्बर, श्रावक मंगल वरशो. वे० ॥ ५ ॥ श्वे० ॥ ४ ॥ ॥ अथ पंचमी परभावपरिहारक्रिया || दुहा. रागद्वेष परभावथी, चेतन पामे दुःख; रागद्वेष परिहारथी, चेतन पामे सुख. रागद्वेष संसार छे, रागादिक परिहारः कीजे आत्मस्वभावथी, जगमां जयजयकार. चारित्रपद शुभ चित्तवस्यु - पराग, चेतन निजगुण राचए, दूर त्यागीएहो रागादिक भाव; चेतनवीर्य उल्लासथी, परपरिणतिनो थावे अटकाव, चेतन ॥१॥ काल अनादिथी जाणीए, परपरिणतिहो चेतन दुःखकार; रागादिक परभावथी, चारगतिमांहो नाना अवतार. चेतन ॥२॥ कर्माष्टकनी वर्गणा, ग्रहे चेतन हो अज्ञाने सदाय, परपुद्गलमां परिणम्यो, भव्य जाणो हो क्षीरनीरनो न्याय.चे. ३ भेद ज्ञान महिमाथकी, परपुदगलनी मूको सहु आश; परपरिणता त्यागीने, झट करशो हो चेतन पदवास. चेतन. ४ रागादिक वैरी हणी, पाम्या मुक्ति हो जग जीव अनंत; आत्मज्ञान जगदिनमणि, झटपामी हो शिवमांविलसंत. चेतन. १ कर्म संहारीने, ध्रुव लेवुं हो शाश्वतपद राज; बुद्धिसागर बोधथी, उपयोगी हो राखे निज लाज. चेतन. ६ For Private And Personal Use Only ॥ १ ॥ ॥ २ ॥

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