Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 02
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 328
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनिवर गुरुगम ज्ञान लहीने, सत्य नीतिमां चुस्त रहीने, बुद्धिसागर रचना श्रेष्ठ रचावशोरे. जैनो० ॥६॥ विमळाचळवासी म्हारा व्हाला सेवकने विसारो नहीं विसारो नहीं-ए राग. करो सत्य सुधारा विचारी भला, सुखकारी सदा, (३) जशे संपे कुसंप दुःख नावे कदा, चित्त धारो मुदा. चित्तः जिन शासननी भक्ति करतां, तीर्थकर पद पाय; जैन धर्म फेलावो करतां, अनंत सुख सदाय. सदा सुखकारी. ? व्यवहारिक ने धार्मिक विद्या, सर्वोन्नति आधार; बोर्डिंग स्कुलो स्थापन करतां, थाशे जग जयकार. सदा मु०२ जुनां पुस्तक फेर लखावो, शुद्ध छपावो बेश; सहाय करो साधुने भणतां; करशे सदा उपदेश. सदा सु०३ बाळकशान कन्याशाळा, जनतच विस्तार; साधर्मी बंधुनी भक्ति, करतां सफळ अवतार. सदा सु. ४ कुमारपाळने संपति नृपति, वस्तुपाळ तेजपाल धर्मी शूरा पूर्व जैन क्यां, हाल बन्या बेहाल. सदा सु. ५ बोलो तेवू पाळो भव्यो, थाशो जग जाहेर; बुद्धिसागर जय जय बोलो, कोन्फरन्स मुख ल्हेर. सदा सु०६ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः समाप्त. For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 326 327 328 329 330