Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 02
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 315
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बंदु.॥३॥ वंदु. ।। ४ ॥ ज्ञानरविथी प्रकाशतो, दर्शन चन्द्र समान; चेतन द्रव्यने वन्दना, करतां नासे छे मान. चेतन त्रण्य प्रकार छे, बाहिर अन्तर जाण; परमेश्वर अवबोधथी, निश्चय समकित स्थान. स्वपर प्रकाशक जीवने, वंदन करतां कल्याण; संग्रहनय कृत दृष्टिथी, वंदन सर्व प्रमाण. चेतन लक्षण चेतना, सातनयोथी विचार; चेतननी शुद्धव्यक्तिथी, वन्दन वार हजार. निश्चय ने व्यवहारथी, चउनिक्षेप प्रमाण; द्रव्यने भावथी वंदना, चेतन गुणगण खाण. अन्तर्यामीने वंदना, करतां मंगलमाल; बुद्धिसागर वंदना, चेतन शुद्ध विशाल. वंदु. ॥५॥ वंदु.॥ ६॥ वंदु. ॥ ७॥ वंदु.॥ ८॥ अथ षष्ठी ध्यानक्रिया. दुहा. आर्त रौद्र वे त्यागीन, धरीए धर्मनुं ध्यानः शुकलध्यानने ध्यावतां, चिदानंद भगवान्. ___ सांभळजो मुनि संयमरागे-एराग. चेतन धर तुं ध्यान स्वरूपy, परपरिणति दूरवारीरे, ध्याने कर्म खरे छे सघळां, शुद्ध परिणति धारोरे. चेतन. १ पदस्थ पिंडस्थ रूपस्थ रूपातीत, चार ध्यान चित्त धरीएरे धर्मध्यान ने शुक्ल ध्यानथी, शाश्वत सुख झट वरीएरे. चे०२ सालंबन ध्याने चित्त ठारी, अशुभ विचारो हरीएरे; निरालंबन ध्यान धरीने, भवसागर झट तरीएरे. ०४ विक्षिप्त यातायात सुश्लिष्ट, मुलीनता मनभेदरे; अनुक्रमे अभ्यास करीने, टालो सघला खेदरे. चेतन. ॥ ५ ॥ For Private And Personal Use Only

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