Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 02
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 295
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २९.० नात जातमां कांइ न तारुं, घर दिलमां वैराग्य; विवेकी विचारीरे थातुं मनमांही त्यागी. मोह. ॥ १ ॥ शाने माठे पाप करेछे, फोगट भूले भव्य आतम ते परमातम साचो, करं ते कर्तव्य, चेतन चित्त चेतोरे, समजलें सोभागी. मोह. ॥ २ ॥ चोरी जारी चुगली निंदा, हिंसानो कर त्याग, दगा प्रपंचो सर्वे छंडी, धरशो धर्मनो राग; बुद्धिसागर मेमेरे, लय प्रभु गुण लागी. मोह. ॥ ३ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चेतजीव. जी० टेक. " श्रीराना पदनो राग जोवलडा चेती लेजेरे, वखत वह्यो जाय छे; मोहमांशुं मुंझ्योरे, भूलण शुं भूलाय छे. आधि व्याधि उपाधिथी, जनमां वर्ते दुःख, लाख चोराशीमां बहु दुःखो, क्यांय न वर्ते सुख; भूली भूलेलारे भव भटकाय छे. पर वस्तुथी कदी न शान्ति, निश्चय मनमां धार; परने पोतानु मान्याथी, थाशे न सुख लगार, लाकडनो लाडु खातां तो पामर पस्ताय छे. जी० ॥ २ ॥ जीव० ॥ १ ॥ 21 मृगनी नाभीमा कस्तुरी, पण शोधे छे बहार, अंतरमांहि सुख घणुं छे, भूले जीव गमार; भटके छे भारीरे, खत्ता घणा खाय छे. 'माडाना वाचक भरतां, कांइ न आवे हाथ; मृगजल तृष्णामां लोभातां, कां न आवे साथ, ज्ञानीयोए गायुंरे, समजुने समजाय छे. For Private And Personal Use Only जीव० ॥ ३ ॥ जीव० ॥ ४ ॥

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