Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 02
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 305
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सहज चेतन ध्यान करवा प्रणव प्रथमोपाय छ, बुद्धिसागर सहज रुद्रि प्रणवमंत्र थाय छे. ॥ १५ ॥ परमेष्टि आधाक्षरथी ओंकार भण्यो छे, समंत्रमा आयमंत्र ओंकार गण्यो छः सर्व मंत्रमा प्रणवमंत्र के शिव सुखकारी, आपक्षिक जिन वचनो समजो नर ने नारी. प्रणवमंत्रे सत्वशक्तिज प्रगटती दिलमां खरी, (द्धिसागर प्रणवमंत्रे शांतता मनमां दरी. ॥१६॥ प्रणवमंत्रमा सर्व मंत्रनो सार समातो, प्रणवमंत्रनो महिमा जगमां बहु वखणातो; प्रणवमंत्रो जगमा मुनिवर प्रेमे साधे, प्रणवमंत्रथी सूर्यसमो महिमा जग वाधे. कंठचक्रमां प्रणवमंत्रेज वचनसिद्धि थाय छ, टळे पिपासा प्रणवमंत्रे कंठसंयम थाय छे. ॥१७॥ त्रिपुटीमां प्रणवमंत्रनुं ध्यानज साधु, तंद्रावस्था जयकारी ओंकारे राचं; प्रणवमंत्रे दर्शन आपे अनेक देवो, सालंबन कार मंत्रने प्रेमे सेवो. सालंबन ओंकारमंत्र देवदर्शन थाय छे. बुद्धिसागर प्रणवमंत्रे सत्यशांति पमाय छ. ॥१८॥ दर्शन आच्छादन टनुं ओंकार प्रभावे, त्रिपुटीमां प्रणवमंत्रथी ज्ञानी गावे त्रिपुटीमां सालंबन संयमनी रीति, मन वश करवा माटे सालबननी नीति. त्रिपुटीमां प्रणवम यी द.प सघळा झट टळे, For Private And Personal Use Only

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