Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 02
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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आत्माऽसंख्य प्रदेशमयी छे, अक्रिय रूपारूपरे, प्रतिप्रदेशे अतगुणो छे, पर्यायानंत चिद्रुपरे. অষণ ও संग्रहनयथी सिद्धसमाना, चारगतिना जीवरे, भेदज्ञानथी व्यक्तिप्रकाशे, होवे जीव ते शीवरे. श्रवण. ८ एकतानता श्रवण प्रतापे, प्रगटे अनुभव तानरे, कर्मवर्गणा त्वरित क्षरंती, निर्मल हंस ज्यु भानुरे. श्रवण. ९
आण करी शुद्धात्म द्रव्यनु, पाम्या मोक्ष अनंतरे, श्रवण क्रिया छे चेतन पूना, राची रह्या त्यां संतरे. श्रवण १० चिदानन्द चेतन देह वसियो, तेनुं श्रवण सुखकाररे, बुद्धिसागर श्रवणक्रियाथी, धन्य धन्य अवताररेः श्रवण. ११
अथ द्वितीय कीर्तन क्रिया.
दुहा. कथन करे जीव द्रव्यर्नु, गुण पर्यायाधार, द्रव्य अने पर्यायथी, नित्यानित्य विचार.
व्हाला वीर जिनेश्वर ए-राग. जीवना कीर्तनथी शिव शाश्वतसुख पमायछेरे, बीजी कीर्तन क्रिया करवाथी दुःख जायछरे; कीर्तन करतां दुःख टळेछे, कामादिकनो वेग गळेछे, चेतन कीर्तन करतां समाकित निर्मल थायछेरे. जीवना. १ अनुभवसुखनी ल्हेरी प्रगटे, मोह मायादिक वेगे विघटे, चेतन कीर्तन योगे क्षायिक मुख पमायछेरे. जीवना. २ वचन क्रियाना दोषो नाशे, चेतन सूर्यसमान प्रकाशे, चेतन कीर्तनथी परने उपकार करायछेरे, जीवना. ३ परा पश्यंतीथी प्रभु गावो, करशो निर्मल प्रभु वधावो,
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