Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 02
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 302
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir લ सम्यग् लही वाच्यार्थ हृदयमां रटना धारो, अनंत कर्म कटाय मणत्रयी चित्त विचारो; सालंबन छे ध्यान मगवतुं शास्त्रे भाख्युं, धरी प्रणवनुं ध्यान योगियोर सुख चारुपुं. ओंकार मंगल आद्य छे जग श्वासोश्वासे ध्याइए, बुद्धिसागर शिव सनातन सिद्ध लीला पाइए. ॥ ३ ॥ हृदयकमलमां प्रणव स्थापना प्रेमे करीये, कोटी भवनां पाप घडीमां क्षण हरीए, भगटे लब्धि चित्र वचननी सिद्धि थावे, अन्तर त्राटक सिद्ध करे ते स्थिरता पावे. आत्मशक्ति खीलवाने, ॐकार अर्थ विवेक छे, बुद्धिसागर प्रणव मंगल ध्यान साची टेक छे. आनंद अपरंपार हृदयमां झळके ज्योति, असंख्यमदेशी चिघन चेतन परखे मोती; नाते माया हूर हृदयमां ब्रह्म प्रकाशे, परम भावनी ध्यान दशामां हंस विकासे; प्रेममशाला दीप्याला ब्रह्म अमृत पीजीए, बुद्धिमागर ब्रह्मलीला पामी निशदिन रोझीए. ॥ ५ ॥ प्रणवमंत्री निंदा विकथा दोष टळे छे, प्रणवमंत्री अष्ट सिद्धिओ तुर्न मळे छे; मंत्री संयम शक्ति प्रगटे सारी, प्रणवमंत्रथी झळहळ ज्योति जगजयकारी, मणवमंत्र ओंकारमा दिलमां ध्यातां सुख भासतं; बुद्धिसागर मण मंत्र सत्य तच प्रकाश. नाभिकमलमां प्रणव मंगने मेमे स्थापो, स्थिरता अंतर्मुहूर्त्त थवाथी टळे बळापो; ६८ For Private And Personal Use Only ॥ ४ ॥ 8 ॥ ६ ॥

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