Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 02
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२९.६
अनुभव वण अंधानुं टोलु, चलवे छे पाखंड, मूर्खजनोनी आगळ फावे, राखे जूठ घमंड; दृष्टिरागे खूचीरे, पामर सुख हारे छे. गाडरी. ॥ ३ ॥ कपटी पाखंड चलवे भारे, अज्ञजनो सपडाय, कलियुगमां कपटीनी पूजा, ज्यां त्यां नजरे जणाय; संतोपर भाव ओछोरे, कोइक तो विचारे छ.गाडरी. ॥ ४ ॥ संतसमागम करशे जे जन, ते लेहेशे सुख सार, बुद्धिसागर चित्तमां चेती, पोताने तुं तार; अनुभव ज्ञानेरे, सत्य पन्थ भाळे छे. गाडरी. ॥५॥
ॐकार स्तुतिः
छप्पय छंद. औ नम; मंगल सुखकारी जग जयकारी, ओ नमः मंगलपदनी जगमा बलिहारी; औ नमः अजरामर अनंत शक्ति विलासी, ओ नमः परमेश्वर शक्ति सत्य प्रकाशी. ओकार ध्याने आत्म शक्ति प्रगटती जगमां खरी, बुद्धिसागर प्रणव मंगल ध्यानथी सिद्धि वरी. ॥१॥ अगम निगमनो सार प्रणव ओकार विचारो, परब्रह्मनी शक्ति खीलववा मनमा धारो चित्त दोषनो नाश करे छे जाप कर्याथी, सात्विक शक्ति प्रगटावे छे ध्यान धर्याथी. अलख अगोचर रुप वरवा प्रणव साचो मंत्र छे, बुद्धिसागर सत्य निर्भय देश वरवा यंत्र छे ॥२॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330