Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 02
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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२२१ भवजंजाळे मुखनी भ्रांति, राखे नाहक लोक, स्वमानी सुखलडी जेवी, दुनीयांबाजी फोक; बुद्धिसागर ज्ञानेरे परमपद पाय छे. जीव० ॥५॥
प्रमुखरूप.
धीराना पदनो राग. प्रभुनु रुप पेखीरे, सात धात रंगाणी; प्रभुनुं रुप न्यारं रे, जाणे प्रेम मस्तानी. टेक. असंख्यप्रदेशी निर्भय देशी, रुपारुप सुहाय, साकार साचो निराकार पण, अनुभवथी ए जणाय; प्रभुनी शक्ति साचीरे, लीधी ध्यान थकी ताणी. प्र० ॥१॥ काल अनादि देह सृष्टिनो, कर्त्ता पर प्रयोग, अनंत निजगुण सृष्टि कर्ता, चेतन शुद्ध प्रयोग; बुद्धिसागर प्रेमेरे, प्रभुनी वात परखाणी. प्र० ॥ २ ॥
उपाधिमां दुःख.
राग धीराना पदनो. उपाधि दुःखदायीरे, उपाधिथी छे गोटा उपाधिमां भ्रांतिरे, थाय नहि कोइ मोटा. उपाधिक उपाधि छे मोटी व्याधि, मन चंचल करनार, उपाधिथी अनेक वांका, शांति सुख हरनार; उपाधिथी मोटारे, जुओ जगमा छोटा. उ० ॥१॥ दुःख दावानळ छे उपाधि, भूलावे निज भान, दुनियादारीमां लपटावे, उपाधि दुःखखाण; उपाधि अंधारुरे, उपाधिना नहि जोटा. उ० ॥२॥
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