Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 02
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कीर्तिना मोहे जो पडशा, तो अंत बहु रोशी रे. कीति.८ कीर्ति गांडाने पण व्हाली, कीति छे लटकाळी रे कीर्ति कामणगारी जगमां, कीर्ति छे महाकाली रे. कीर्ति.९ कीर्तिनी पूजारी दुनिया, सन्तो समजे साधु रे; नाम कर्मना उदये कीर्ति, तेमां शुं हुं राचुं रे. कीर्ति.१० कीर्तिनी लालचने छंडी, सद्गुण कीर्ति करशो रे; बुद्धिसागर मंगलमाला, धर्मोदयथी वरशो रे. कीर्ति. ११
काया अने चेतन चर्चा.
गग धीराना पदनो. बोले काया शाणीरे, चेतन तमे क्यां वसिया, माझ मारु मानीर, मायावश केम फसिया: चेतन तुं मुसाफर जगमां, बसियो मारे घेर, यूँ नहि मारो हुँ नहि तारो, माने शुं मन हेर. चेत चेतन ज्ञानेरे, अन्तर अनुभव रसिया. बोले. ॥१॥ चेतन हवे बोलेरे, व्हाली काया शुं बोले, प्राण थकी प्यारीरे, नहि कोइ तुज तोले, ग्ववरा, पीवरावू तुजने, नवरावु बहु पेर; हवा दवाथी तुजने पोधू, वसियो त्हारे घेर, वस्त्रोथी शणगारुरे, मारे तुं मुंघा मोले. चेतन. ॥ २ ॥ हरतां फरतां तारी खबरो, लउं छं वारंवार, रंग रसीली अमरकाया, तुं छे प्राणाधार; बोल नहि खाटुं रे, मन मारु बहु डोले. चेतन. ॥३॥ काया पाछी कहेती रे, चेतन हुँतो नहि हारी; नने हुं नथी परणी रे, हजी हुं बाळकुंवारीः
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330