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सोलह |
(२) पृष्ठ ६२ में इसी तरह घोर अंगिरस भगवान नेमिनाथ का ही नाम है । यह धर्मानन्दकौशाम्बी के मतानुसार लिखा गया है। मेरे विचार में वह भी ठीक नहीं है । घोर अंगिरस व नेमिनाथ भिन्न भिन्न व्यक्ति थे।
(३) पृष्ठ ७२ में वसुदेव को वृष्णिकुल और समुद्रविजय को अन्धककुल का लिखा गया है । पर वे दोनों भाई-भाई थे अतः दोनों के कुलों के नाम अलग-अलग देने से भ्रम होता है । वास्तव में वे दोनों अन्धक वृणिकुल के ही थे ऐसा मेरा मत है।
(४) मुनि नथमल जी के द्वारा सम्पादित उत्तराध्ययन के अभिमतानुसार मुनि जी ने भी द्वधराज्य की बात लिखी है पर वह भी विचारणीय है। उत्तराध्ययन सूत्र में समुद्रविजय और वसुदेव दोनों को सौरियपुर का राजा लिखा है । इसी से यह धारणा बनायी गयी है। पर समुद्रविजय बड़े थे
और वसुदेव उनके छोटे भाई थे अतः दोनों को राजा लिखने से द्वैध राज्य नहीं होता। आज भी बड़ा भाई महाराजा कहलाता है और छोटे भाई को महाराज कहा जाता है । उदाहरणार्थ-बीकानेर के महाराजा रायसिंह के सुप्रसिद्ध छोटे भाई कविवर पृथ्वीराज महाराज के रूप में प्रसिद्ध थे।
(५) पृष्ठ १८२ में मीराबाई के नरसी के मायरे का उल्लेख व उद्धरण है--जो आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के इतिहास के अनुसार दिया गया है, वह मायरा भी मीराबाई के द्वारा रचित नहीं हैं ।
और भी कुछ बातें संशोधनीय हैं और कहीं-कहीं मुद्रण दोष की भी अशुद्धियां रह गयी है जिसका परिष्कार शुद्धि पत्र में किया गया है, पर इससे नन्थ के महत्व में कोई कमी नहीं आती। ग्रन्थ वास्तव में ही उच्चकोटि का एवं मौलिक है।
विद्वान् मुनिवर्य देवेन्द्र मुनि जी ने इधर कुछ वर्षों में काफी अच्छे-अच्छे महत्वपूर्ण और विविध विद्याओं के ग्रन्थ लिखकर हिन्दी जैन साहित्य की उल्लेखनीय अभिवृद्धि की है । अभी उनसे और बहुत सी आशाए है । जैन समाज उनके ग्नन्थों के पठन-पाठन में अधिकाधिक रुचि दिखाये और वे जैन साहित्य का भण्डार निरन्तर भरते रहें यही शुभ कामना है।
बीकानेर ता० २०-३-७१
- अगरचन्द नाहटा
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