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| इक्कीस साधु अवस्था में निवृत्ति प्रधान । उनके गृहस्थाश्रम का अनुकरण श्रीकृष्ण के जीवन में देखा जा सकता है और उनके सन्त जीवन का अनुसरण भगवान् अरिष्टनेमि के जीवन में ।
राजीमती का जीवन महिला समाज के मुख को उज्ज्वल करने वाला है । वह जिसे उपास्य मान लेती है उससे शारीरिक सम्बन्ध न होने पर भी वह अपने हृदयधन महान् निश्चय का स्वागत करती है । केवलज्ञान प्राप्त होने पर जब अरिष्टनेमि आत्म-कल्याण का मार्ग उपस्थित करते हैं तब वह आमंत्रण को स्वीकार कर प्रेम का उदात्तीकरण उपस्थित करती है ।
रथनेमि को आत्म-साधना में पुनः स्थिर कर राजीमती ने उस परम्परा की रक्षा की जो ब्राह्मी और सुन्दरी ने चलाई थी । पुरुष को कर्तव्य बोध का सुन्दर पाठ पढ़ाया । उसने अपनी रक्षा ही नहीं की, अपितु रथनेमि के पतन को भी बचा लिया ।
ग्रन्थ में एक प्रसंग आया है जिसका स्पष्टीकरण करना मैं आवश्यक समझता हूँ- प्रतिवासुदेव जरासंध के भय से यादव मथुरा को छोड़कर सौराष्ट्र में पहुँचते हैं और वहां पर वे समुद्र के किनारे नव्य भव्य द्वारिका का निर्माण करते हैं । यादव श्रीकृष्ण को वहां का अधिपति बनाते हैं । वर्षों तक श्रीकृष्ण वहां पर राज्य करते हैं किन्तु जरासंध को इसका पता भी नहीं चलता, अन्त में व्यापारियों के द्वारा सूचना प्राप्त होने पर वह युद्ध के लिए प्रस्थित होता है ।
प्रस्तुत घटना को पढ़कर वैज्ञानिक युग में पले-पुसे मानवों के मानस में यह सहज ही शंका उद्बुद्ध हो सकती है कि यह किस प्रकार संभव है कि वर्षों तक पता ही न चले । आज वैज्ञानिक साधनों को प्रचुरता व सुलभता से दुनिया इतनी सिमट कर लघु हो गई है कि मानव घर के बंद कमरे में बैठकर भी रेडियो व टेलीविजन के द्वारा विश्व के समाचार सुन सकता है, देख सकता है । फोन के द्वारा हजारों मील की दूरी पर बैठे हुए वार्तालाप कर सकता । एरोप्लेन और राकेट के द्वारा कुछ ही समय में आधुनिक विश्व की प्रदक्षिणा कर सकता है । पर जिस युग की यह घटना है उस युग में इस प्रकार के वैज्ञानिक साधन सुलभ नहीं थे । यहाँ तक कि आस-पास के गाँवों तक का भी पता नहीं चलता ।
व्यक्ति से
लाओत्से ने तीन हजार वर्ष पहले चीन के गाँव की घटना लिखी है— "हमारे पिता तथा वृद्ध व्यक्ति कहते हैं कि हमारे गाँव के पास एक नदी बहती
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