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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
तीर्थङ्कर और अन्य मुक्त आत्माओं में अन्तर :
जैन धर्म का यह स्पष्ट मन्तव्य है कि तीर्थङ्कर और अन्य मुक्त होने वाली आत्माओं में आन्तरिक दृष्टि से कोई फर्क नहीं है। केवलज्ञान और केवल दर्शन प्रभति आत्मिकशक्तिया दोनों में समान होने के बावजूद भी तीर्थङ्कर में कुछ बाह्य विशेषताएं होती हैं । उन बाह्य विशेषताओं (अतिशयों) का वर्णन इस प्रकार है१ मस्तक के केश, दाढी, मूछ, रोम और नखों का मर्यादा से
अधिक न बढ़ना। २ शरीर का स्वस्थ और निर्मल रहना। ३ रक्त और मांस का गाय के दूध के समान श्वेत रहना। ४ पद्म गंध के समान श्वासोच्छ वास का सुगन्धित होना । ५ आहार और शौच क्रिया का प्रच्छन्न होना। ६ तीर्थङ्कर देव के आगे आकाश में धर्म चक्र रहना। ७ उनके ऊपर तीन छत्र रहना । ८ दोनों ओर श्रेष्ठ चंवर रहना। है आकाश के समान स्वच्छ स्फटिक-मणि का बना पादपीठ
वाला सिंहासन होना। १० तीर्थङ्कर देव के आगे आकाश में इन्द्रध्वज का चलना। ११ जहां-जहां पर तीर्थङ्कर भगवान ठहरते हैं या बैठते हैं
वहाँ पर उसी क्षण पत्र, पुष्प, और पल्लव से सुशोभित छत्र, ध्वज, घंट, एवं पताका सहित अशोक वृक्ष का उत्पन्न
होना। १२ कुछ पीछे मुकुट के स्थान पर तेजोमंडल का होना, तथा
अन्धकार होने पर दस दिशाओं में प्रकाश होना। १३ जहां-जहां पर तीर्थङ्कर पधारें वहा के भूभाग का समतल
होना। १४ जहां-जहां पधारें वहां-वहां कंटकों का अधोमुख हो जाना। १५ जहाँ-जहाँ पधारें वहाँ ऋतुओं का अनुकूल होना। १६ जहाँ-जहाँ पधारें वहाँ-वहाँ संवर्तक वाय द्वारा एक योजन
पर्यन्त क्षेत्र का शुद्ध होना ।
६. समवायाङ्ग ३४, सूत्र, १ पृ० ७१, मुनि कमल सम्पादित
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