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बीस ]
श्रीकृष्ण गोपाल थे, उन्होंने बाल्यकाल में गौए चराई थीं, जिसके कारण वैदिक परम्परा में गौ-पूजा का महत्व स्थापित हुआ। गाय को माता और वृषभ को पिता माना गया। गाय से रहित स्थान को श्मशान माना गया। आज भारतवर्ष में गौवध का सबसे बड़ा पाप माना जाता है वह हमारी दृष्टि से श्रीकृष्ण की देन है।।
भगवान् अरिष्टनेमि श्रीकृष्ण से भी आगे बढ़े, उन्होंने गाय को ही नहीं, अपितु समस्त प्राणी के वध को हेय बताया, उन्होंने समस्त प्राणियों की रक्षा पर बल दिया। मांसाहार का तीव्र विरोध किया, जिसके फलस्वरूप जैन परम्परा ही नहीं, अपितु वैदिक परम्परा भी मांसाहार को बुरा मानने लगी।
यह पूर्ण सत्य है कि श्रीकृष्ण की अपेक्षा राम अधिक मर्यादा पालक थे इसीलिए उन्हें मर्यादापुरुषोत्तम कहा जाता है। वाल्मीकिरामायण और रामचरितमानस के अभिमतानुसार श्रीराम शिकार करते थे और मांसाहार भी, किन्तु वैदिक परम्परा के ग्रन्थों में भी श्रीकृष्ण के जीवन का एक भी ऐसा प्रसंग नहीं आया है जिसमें श्रीकृष्ण ने शिकार खेला हो और मांसाहारी किया हो, यह उन पर भगवान् अरिष्टनेमि का ही प्रभाव था, उनके प्रभाव से ही उनके मन में मांसाहार के प्रति घृणा थी।
समस्त भारतवर्ष में गौ पालन और गोशालाओं का महत्व दिखलाई दे रहा है वह श्रीकृष्ण की देन है। गुजरात-सौराष्ट्र और राजस्थान आदि में गौओं के साथ ही अन्य प्राणियों को भी रखा जाता है, उनका भी पालनपोषण किया जाता है जिसे पांजरापोल कहते हैं, यह भगवान अरिष्टनेमि की देन है।
श्रीकृष्ण के जीवन में प्रवृत्ति की प्रधानता थी इसीलिए वे कर्मयोगी के नाम से विश्रुत हैं जबकि अरिष्टनेमि के जीवन में निवृत्ति की प्रधानता है । वैदिक संस्कृति प्रवृत्तिप्रधान है और श्रमण संस्कृति निवृत्ति प्रधान। इस प्रकार दोनों ही महापुरुषों में भारतीय संस्कृति, जो श्रमण और वैदिक संस्कृति का मिला-जुला रूप है वह देखा जा सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो भगवान् श्री ऋषभदेव गृहस्थाश्रम में प्रवृत्तिप्रधान रहे और
८. (क) गोर्मेमाता ऋषभः पिता
(ख) गावो विश्वस्य मातरः ६. धेनोश्च रहितं स्थानं श्मशानमेब मुच्यते
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