Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 057 058
Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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वसुंधरा ने कमठ से कहा- “जेठानी को हमारी पाप-लीला का पता चल गया है। वह कभी मुझे मार डालेगी ।"
कमठ क्रोध में आग-बबूला होकर जलती लकड़ी लेकर अपनी पत्नी वरुणा पर झपटा–‘“तेरी यह हिम्मत ! मेरे सुख में अड़ंगा लगाती है ? आज तुझे जलाकर राख कर डालूँगा।”
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उधर सामने ही मरुभूति आता मिल गया। उसने भाई का हाथ पकड़ लिया- "तात ! क्षमा करो ! मेरी माता तुल्य भाभी को क्यों मारते हो ?"
कमठ बड़बड़ाता वहीं रुक गया।
उसने पूछा - "भाभी ! क्या बात हो गई ?"
वरुणा ने दोनों की पाप--कहानी सुनाकर कहा - "तुम तो घर में रहते नहीं हो। पीछे से यह पाप-लीला चलती है।"
मरुभूति (कानों पर हाथ रखकर ) - "नहीं ! नहीं ! मेरा बड़ा भाई ऐसा नीच काम नहीं
कर सकता।"
वरुणा के बार-बार कहने पर मरुभूति बोला- "मैं कानों सुनी बात पर विश्वास नहीं करता। आँखों से देखकर ही कोई निर्णय लूँगा।”
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क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
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