Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 057 058 Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana Publisher: Diwakar PrakashanPage 60
________________ से जंगल चमक उठा। वृक्ष पानी में डूब गये। पहले जल प्रभु के घुटनों तक आया फिर बढ़ता-बढ़ता कंधों तक आ गया। प्रभु अभी भी अविचल खड़े रहे। तभी स्वर्ग में धरणेन्द्र देव का आसन डोलने लगा। देव -"यह क्या हो रहा है? कोई शत्रु आ रहा है या किसी महापुरुष पर संकट आया है ?" ___धरणेन्द्र ने ध्यान लगाया और अचानक बोलने लगे-"अनर्थ ! घोर अनर्थ ! परम उपकारी प्रभु संकट में हैं। दुष्ट असुर मेघमाली उपद्रव मचा रहा है।" पास बैठी देवी पद्मावती बोलीं-"स्वामी ! चलें हम प्रभु की सेवा में।" दोनों ही दिव्य गति से नीचे आते हैं। प्रभु को नमस्कार करते हैं-'हे देवाधिदेव ! यह दुष्ट आपको कष्ट पहुँचा रहा है।" ___ तभी एक विशाल कमल प्रभु के नीचे उठता है। प्रभु जल से ऊपर उठते हैं। नीचे से एक नागदेव प्रकट होता है। प्रभु के समूचे शरीर को लपेटता हुआ मस्तक पर अपने सात फन फैलाकर छत्र बनाता है। ज्यों-ज्यों जल बढ़ता है। कमल पर स्थित प्रभु का आसन ऊँचा उठता जाता है। 58 क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use OnlyPage Navigation
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