Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 057 058
Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 66
________________ (१) गणधर शुभदत्त (शुभ), (२) आर्य हरिदत्त, (३) आचार्य समुद्रसूरि, (४) आर्य केशी श्रमण । आर्य श्री केशी श्रमण का समय भगवान पार्श्वनाथ के निर्वाण के १६६ से २५० वर्ष तक माना जाता है । आप बड़े ही प्रभावशाली आचार्य थे। आर्य श्री केशी श्रमणाचार्य ने अपने श्रमणसंघ की एक विराट सभा की। आचार्य केशी श्रमण ने अपने साधुओं को स्वकर्त्तव्य समझाते हुए कहा कि " श्रमणो ! आपने जिस उद्देश्य को लक्ष्य में रखकर संसार का त्याग किया था, वह समय आपके लिये आ पहुँचा है। जगत् का उद्धार आप जैसे त्यागी महात्माओं ने किया है और करेंगे। अतः धर्म प्रचार हेतु तैयार हो जाइये।" आर्य श्री केशी श्रमण का वीरतापूर्वक उपदेश सुनकर सभी श्रमणों ने कहा कि "जिस प्रकार आपका आदेश होगा, उस तरह हम धर्म-प्रचार हेतु कटिबद्ध हैं।" आर्य श्री केशी श्रमण ने श्रमणों की योग्यता पर अलग-अलग नौ समूह बनाकर सुदूर देशों में विचरण की आज्ञा प्रदान की। ५०० मुनिओं के साथ वैकुण्ठाचार्य को तैलंग प्रान्त की ओर । ५०० मुनिओं के साथ कलिकापुत्राचार्य को दक्षिण महाराष्ट्र प्रान्त की ओर । ५०० मुनिओं के साथ गर्गाचार्य को सिन्ध सौवीर प्रान्त की ओर । ५०० मुनिओं के साथ यवाचार्य को काशी कौशल की ओर । ५०० मुनिओं के साथ अर्हन्नाचार्य को अंग बंग कलिंग की ओर । ५०० मुनिओं के साथ काश्यपाचार्य को सुरसेन (मथुरा) प्रान्त की ओर। ५०० मुनिओं के साथ शिवाचार्य को अवन्ती प्रान्त की ओर । ५०० मुनिओं के साथ पालकाचार्य को कोंकण प्रदेश की ओर। और स्वयं ने एक हजार मुनिओं के साथ मगध प्रदेश में रहकर सर्वत्र उपदेश द्वारा धर्म प्रचार किया। आचार्यश्री ने निम्न सम्राटों को भी उपदेश देकर जिनधर्मानुरागी बनाया (१) वैशाली नगरी का राजा चेटक, (२) राजगृह का राजा प्रसेन्नजीत, (३) चम्पा नगरी का राजा दधिवाहन, (४) क्षत्रियकुण्ड का राजा सिद्धार्थ, (५) कपिलवस्तु का राजा शुद्धोदन, (६) पोलासपुर का राजा विजयसेन, (७) साकेतपुर का राजा चन्द्रपाल, (८) सावत्यी नगरी का राजा अदीन शत्रु, (६) कंचनपुर नगर का राजा धर्मशील, (१०) कंपीलपुर नगर का राजा जयकेतु, (११) कौशाम्बी का राजा संतानीक, (१२) सुग्रीव नगर का राजा बलभद्र, (१३) काशी- कौशल के अठारह गणराजा, (१४) श्वेताम्बिका नगरी का राजा प्रदेशी । श्री पार्श्वनाथ सन्तानीय केशी श्रमण और भगवान महावीर के प्रथम गणधर इन्द्रभूति गौतम का मिलन श्रावस्ती नगरी के तन्दुकवन उद्यान में हुआ था और धर्म चर्चा के पश्चात् उत्तराध्ययन सूत्र के २३वें अध्ययन के वर्णन के अनुसार केशी श्रमण ने पंचमहाव्रत को स्वीकार कर भगवान महावीर के शासन की आराधना करते हुए परमपद को प्राप्त किया । 64 Jain Education International For Private & Personal Use Only 00 क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ www.jainelibrary.org

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