Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 057 058 Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana Publisher: Diwakar PrakashanPage 62
________________ दोनों देव अपने-अपने स्थान पर चले गये। प्रभु पार्श्वनाथ ने वहाँ से विहार किया। वाराणसी के पास आश्रमपद उद्यान में पधारे। धातकी वृक्ष (आँवले का पेड़) के नीचे प्रभु ध्यान में लीन खड़े थे। प्रभु पार्श्वनाथ को दीक्षा लिये तिरासी दिन बीत चुके थे। चौरासीवाँ दिन चल रहा था। वह गर्मी का पहला महीना और प्रथम पक्ष था। चैत्र कृष्ण चतुर्थी के दिन पूर्वा के समय तेला तप का पालन करते हुए ध्यानमग्न थे । भावों की विशुद्ध श्रेणी पर आरोहण करते हुए प्रभु को केवलज्ञान-दर्शन उत्पन्न हुआ। हजारों देवों का समूह आकाश से धरती पर आने लगा। प्रभु को वन्दना कर कैवल्य महोत्सव मनाया। समवसरण की रचना की। उद्यानपाल ने राजा अश्वसेन को सूचना दी - "महाराज ! उद्यान में विराजित प्रभु पार्श्वनाथ को केवलज्ञान प्राप्त हुआ है। देवगण उत्सव मना रहे हैं।" 60 Jain Education International For Private & Personal Use Only क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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